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आदरणीय आडम्बर जी

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             वे किस दर्ज़े के  थे मैं नहीं समझ पा रहा हूं. लेकिन उनका दर्ज़ा सबसे ऊंचा है वे ऐसा जतलाते थे सो सब मानते थे भी ऐसा ही.. लोगों से एक निश्चित दूरी सहज ही स्थापित करने वाले वे "जी साहब"  मेरी नज़र में आदरणीय आडम्बर जी  थे . उनके  सामने तो न कहता था पर अक्सर सोचता था अपने दिल की बात कह दूं उनको.           थे तो नहीं पर ड्रेस-कोड मक़बूल दद्दा की घांईं (के समान). किसी ने झूठ-मूठ पूछा कि दादा बहुत दिनों से दर्शन नहीं हुए ..? बस बताय देते थे-”अरे, आजकल फ़ुरसत किसको है, अब बताओ आपके घर ही न आ सका गुप्ता जी के नि:धन पर दिल्ली गया था ”लौटा तो जाना कि गुप्ता जी की असमायिक ..किसी को मुम्बई की सेमिनार का झटका तो किसी हो आगरे में पेंटिंग प्रदर्शनी की व्यस्तता का किस्सा गाहे बगाहे सुनाया करते जाते तो थे पर पाटन-शहपुरा से आगे नहीं.                     गुप्ता जी का लड़का पूरे शहर की खबर रखता था.  उसे मालूम था आडम्बर जी का पूरा दिन कहवाघर में रात दारू खोरी में बीतती है, मन ही मन हंस दिया उसे यह भी तो मालूम था कि बाबूजी की शवयात्रा में  उनका लड़का आया था शमशान में किसी से  क