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बुधवार, जून 13, 2012

पापा, क्यों भौंकते हैं................ये कुत्ते ?

बात दसेक साल पुरानी है. मेरी बिटिया श्रद्धा ने पूछा-"पापा, क्यों भौंकते हैं................ये कुत्ते ?"
         जवाब क्या दूं सोच में पड़ गया. नन्हीं सी बिटिया को जवाब देने से इंकार भी तो नहीं कर सकता थी और न ही जवाब सोच पा रहा था . अक्सर बच्चों के पूछे गये सवालों को से अचकचाकर जवाब न होने की स्थिति में  गार्ज़ियन्स इधर उधर की बात  करने लगते हैं अपन भी तो आम अभिभावक ही हैं. अपने राम को ज़्यादा सोचने का न तो वक़्त था और न ही कोई ज़वाब जो बाल सुलभ सवाल को हल कर दे. अब आप ही बताइये क्या ज़वाब देता. फ़िर भी हमने छत्तीसगढ़ के  सुप्रसिद्ध ब्लॉग लेखक श्री  अवधिया जी के कथन   को उत्तर बनाया :-"संसार में भला ऐसा कौन है जिसके भीतर कभी बदले की भावना न उपजी हो 
मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक के भीतर बदले की भावना उपजती है। 
यही कारण है कि कुत्ता कुत्ते पर और कभी कभी इन्सान पर भी गुर्राने लगता है ।"
पापा, क्यों भौंकते हैं................ये कुत्ते ?
अब आप इस सवाल का विग्रह कीजिये एक ....पापा, क्यों भौंकते हैं.........?
एक भाग है:.."पापा, क्यों भौंकते हैं......?"
और दूसरा:- "ये कुत्ते ?"
अमेरिकन एस्किमो डॉग जिसे हम
पामेरियन कहते हैं
                            हा हा समझ गये तभी हँस   रहें न आप सचमुच में कितने समझदार हैं..!
.हों भी क्यों न  ... ऐसा सवाल तो आपके बच्चों ने भी तो किया होगा. बच्चे सच ही तो बोलते हैं.वास्तव में सवाल तो यही था कि-"पापा आप भौंकते क्यों हैं...?
          बिटिया को क्या बताता -जस संगति तस गुन दिखलावा... ये अलग बात है कि संदल का असर सांप पर और सांप का असर संदल पर नहीं पड़ता पर "कुत्तव भौंक" के मामले में यह सिद्धांत लागू नहीं होता.हर एक भौंक का गहरा असर हम पर पड़ता है. हम भौंकना इनसे ही सीखते हैं गाहे बगाहे अपनी बात बनती न देख भौंकने लगते हैं.अगर पास से भौंकना न हो सका तो दूर जाकर . कुछ कुत्ते जो पामेरियन नस्ल के सफ़ेद बाल वाले होते हैं उनकी भौंकने की स्टाइल आपने देखी ही होगी.. वे अपने घर के दरवाजे से खतरे की ओर मुंह करके भौंकते हैं .. अगर आसन्न खतरा उसे देख ले तो पामेरियन साहब झट से कमरे में घुस जाते हैं.. कोई कोई तो मालिक-मालकिन की गोद तक खोजतें हैं. कुछ बहादुर किस्म के "पामेरियन साहब" खतरे की और मुंह कर भौंकते रहते हैं किंतु हौले हौले पीछे खिसकते हुए. 
      ठीक ऐसे ही कुछ कुत्तव-गुण हम पर भी तारी हैं तभी तो बच्चे पूछने लगे हैं..पापा, क्यों भौंकते हैं.....?          
  उत्तर  में हमआप कह सकते हैं "संसार में भला ऐसा कौन है जिसके भीतर कभी बदले की भावना न उपजी हो ?  
मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक के भीतर बदले की भावना उपजती है। 
यही कारण है कि इंसान तक इंसान पर और कभी कभी कुत्तों पर भी गुर्राने लगता है ।
विग्रह के उपरांत शेष बचे वाक्य को देखिये-"ये कुत्ते....?"
ये कुत्ते का ज़वाब अब आप खोजते रहिये हम तो चले कुत्तों से माफ़ी मांगने ........  
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कुत्ते पर इंसानी नस्ल का रंगत  
चढ़ गई ये जानकर
अपनी वफ़ादारी का यशगान कर
एक बुज़ुर्ग कुत्ता
इन दिनों 
कुत्ता सुधार अभियान 
चला रहा है !!
नई पौध को आदमियत से 
बचाव के नुस्खे बता रहा है.
सामने भीड़ में बैठे कुत्ते 
उसपर भौंक रहे थे..
उसे कुत्ता सुधार अभियान 
जारी रखने से रोक रहे थे..
एक कुत्ते ने मीडिया को बताया 
"इस अभियान से कई घरेलू कुत्तों  के रोजगार पर पड़ेगा ..
जो कुत्ता बंगलों मे रह रहा है 
बेचारा सड़क पर कुत्ते की मौत मरेगा ?
इस खूसट को कौन बताए 
हम कुत्तों पर किसका रंग  चढ़ेगा..?
हम पर इंसानी रंग कभी न चढ़ पाएगा
हमारी बात कुत्ते कुत्ते तक पहुंचाइये
इस बूढ़े-खूंसठ से हमारा पिण्ड छुड़वाइये "
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शनिवार, मई 28, 2011

समापन किस्त : कुत्ते भौंकते क्यों हैं...?


मिसफ़िट पर पिछली पोस्ट में आपने बांचा 
(इस वाक़ये से एक चिंतन का दरवाज़ा खुलता है. वो दरवाज़ा जो हमारे मन में पनप रहे कुत्तावृत्ति का परिचय देगा सोचते रहिये यही सोचेंगे जो मै लिख रहा हूं)
चित्र क्रमांक 01
कुत्तावृत्ति का प्रमुख परिचय भौंक है, जिसका अर्थ आप सभी बेहतर तरीके से जानते हैं. जिसका क्रिया रूप "भौंकना" है. भौंक एक तरह से  आंतरिक-भयजन्य   आवेग का समानार्थी भाव है. जो आत्म-रक्षार्थ प्रसूतता है. अब बांये चित्र में ही देखिये ये चारों लोग जो मयकश जुआरी हैं नशा आते ही इनके चिंतन पर हावी होगा भय. कहीं मैं हार न जाऊं.और दूसरे को हारता देख खुश होंगे खुद को हारने का भय भी होगा.. फ़िर टुन्न होकर अचानक चिल्लाने लगेंगे ध्यान से सुनने पर आप को साफ़ तौर पर  कुत्तों के लड़ने की ही  आवाज़ आएगी. 
     जब आप कभी अपने आपको आसन्न खतरे से बचाना चाहते हैं तो आप बचाने के राह खोजने से पहले आप चीखेंगे अपना चेहरा देखना तब कुत्ते सा ही लगेगा आपको.मेरे एक परिचित हैं जिनकी आवाज़ वैसे ही गूंजती है जैसे  देर रात मोहल्ले में कुत्तों के सामूहिक भौंक काम्पिटिशन चलता है. 
चित्र क्रमांक 02
हां एक बात और हाथी के बहुत करीब आकर कुत्ते कभी नहीं भौंकते दूर से भौंकते हैं . कारण साफ़ है हाथी कद काठी ताकत वाकात में सबका बाप जो होता है. 
घरेलू किस्म के कुत्तों में सबसे कायर कुत्ता पामेरियन नस्ल का होता है ससुरा खतरे की ओर मुंह करके पीछे खिसक-खिसक के   भौंकता है. ऐसी वृत्ति सरकारी गैर सरकारी संस्थानों में कार्यरत व्यक्तियों में देखी जा सकती है. 
                   घरेलू कुत्तों में एक आदत ये होती है-कि उनके भोजन करते वक्त कोई भूल से भी उसके पास आए तो मानिए गुर्राहट तय है जो बाद में भौंक में बदल जाती है.उसे लगता है पास आने वाला उसके आहार को खाएगा .   
(सारे चित्रों के लिए गूगल बाबा का  आभार इन पर किसी का भी  कोई अधिकार हो तो बताएं)     

शुक्रवार, मई 27, 2011

कुत्ते भौंकते क्यों हैं...?


अवधिया जी ने आलेख के लिये भेजा है इसे 
उस्ताद – जमूरे, ये क्या है..?
जमूरा-    कुत्ता... उस्ताद...कुत्ता...!
उस्ताद – कुत्ता हूं ?  नमकहराम
जमूरा -   न उस्ताद वो कुत्ता  है पर आप नमक...
 उस्ताद – क्या कहा ?
जमूरा -   पर आप नमक दाता !
उस्ताद – हां, तो बता कुत्ता क्या करता है..?
जमूरा -   ... खाता है..?
उस्ताद –  क्या खाता है ?
जमूरा -    उस्ताद , हड्डी  और और क्या..!
उस्ताद –  मालिक के आगे पीछे क्या करता है
जमूरा -   टांग उठाता के
उस्ताद –  क्या बोल  बोल जल्दी बोल
जमूरा -   सू सू और क्या ?
उस्ताद – गंवार रखवाली  करता है, और क्या  
जमूरा -   पर उस्ताद, ये भौंकता क्यों है.......
उस्ताद :- जब भी इसे मालिक औक़ात समझ में आ जाती है तो भौंकने लगता है.
जमूरा  :- न उस्ताद, ऐसी बात नही है..
 उस्ताद :- तो फ़िर कैसी है ?
जमूरा  :-  उस्ताद तो आप हो आपई बताओ
उस्ताद :-  हां, तो जमूरे कान खोल के सुन – जब उसके मालिक पर खतरा आता है  तब भौंकता है
जमूरा  :-   न, कल आप खुर्राटे मार रए थे तब ये भौंका  
उस्ताद :-   तो,
जमूरा  :-  तो ये साबित हुआ कि उसकी भौंक इस कारण नहीं निकलती  
उस्ताद :- तो किस वज़ह से निकलती है. कोई वो खबरिया चैनल है जो जबरिया  
             ही ?
जमूरा  :- वेब कास्टर  भी तो नहीं है जो दिन भर ?
उस्ताद :- तो तू ही बता काहे भौंकता है कुत्ता बता
जमूरा  :-  सही बताऊंगा तो
उस्ताद :-  तो क्या होगा ?
जमूरा  :-  तुम मेरी बात अपने मूं से उगलोगे !
उस्ताद :-   तो क्या , उस बात की रायल्टी लेगा,
जमूरा  :-   न, तुमको ऐलानिया बोलना होगा कि ये बात “जमूरे” ने बताई है.
उस्ताद :-  बोलूंगा
जमूरा  :-  तो सुनो जब कुत्ता डरता है तब वो भौंकता है समझे उस्ताद !
उस्ताद :-  हां,समझा
          उस्ताद और जमूरे के बीच का संवाद में दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक  तत्व के शामिल होते ही सम्पूर्ण कुत्ता-जात में तहलका मच  गया. इधर ब्लॉगजगत ने त्वरित आलेखन चालू किया अवधिया जी की राय है कि :-"
संसार में भला ऐसा कौन है जिसके भीतर कभी बदले की भावना न उपजी हो ? मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक के भीतर बदले की भावना उपजती है। यही कारण है कि कुत्ता तक कुत्ते पर और कभी कभी इन्सान पर भी गुर्राने लगता है।"   

प्रवक्ता पर  गिरीश पंकज जी से साभार 
                उधर अखिल भारतीय कुत्ता परिषद में उनके नेता ने कहा :- वीर कुत्तो, हमारी प्रज़ाती को एक मक्कार  ज़मूरे ने "डरपोक" कहा है.  धर्मेंदर की उमर देख के हमने माफ़ किया , पर न केवल जमूरा वरन  हम सब इन्सानों को बता देना चाहते हैं कि अब हम किसी भी इन्सान को अपना मुंह न चाटने देंगे. 
एक एक आदमी को इतना काटेंगे कि सारे रैबीज खत्म हो जाएं 


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