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मैक सिंह के युधिष्ठिर का जाना अखर रहा है..!

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आज हमारे बीच से बीएस पाबला विदा हो गए। 2007 में हम सब ने अंतरजाल पर लिखना शुरू किया था उस शुरुआती दौर में एक दिन एसएमएस आया दिन था 29 नवंबर का। यह दिन मेरा जन्म दिवस है। पाबला जी को उस दौर के हर चिट्ठाकार जन्मदिन विवाह की तिथि याद थी। और सभी को शुभकामनाएं सबसे पहले भेजा करते थे। चिट्ठे पर लिखते भी धाराप्रवाह प्रांजल भाषा का प्रयोग करते हुए उनके विचार खास तौर पर एक आर्टिकल याद है जिसमें उनकी कार छत्तीसगढ़ से एक लंबी यात्रा में क्षतिग्रस्त हो गई थी यह यात्रा वृतांत बेहद रोमांचक और अविस्मरणीय है। पाबला जी का जीवन संघर्ष भरा ग्रंथ कहा जाए तो गलत ना होगा। पूज्यनिया भाभी साहब का जाना पुत्र विछोह उनके जीवन का सबसे दर्दनाक हिस्सा रहा है। पाबला जी से हमारी से शरीर में वर्ष 2011 में विश्व ब्लॉगिंग सम्मेलन में दिल्ली में हुई थी।  व्यक्तित्व बड़ा शानदार और आलीशान था। उनका हमारे बीच से असमय जाना एक दर्दनाक पहलू है। पाबला साहब बहुत सहज और सुलभ थे। पाबला जी को ब्लॉगिंग तकनीकी का गहरा ज्ञान था। हमारी गलतियों और भूलों के कारण अगर हमारे ब्लॉग में कोई गलती या कमी होती है तो हम बेधड़क उनको कॉल

पहाड़ पर लालटेन थे मंगलेश डबराल

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आजादी के  1 साल बाद 16 मई  1948 को जन्मे मंगलेश डबराल का जन्म टिहरी गढ़वाल प्ले हुआ और आज 9 दिसंबर 2020 को मंगलेश जी  परम यात्रा पर निकल गए। मंगलेश डबराल को भाषित करने के लिए यह वक्त नहीं है लेकिन उनके मोटे तौर पर किए गए कार्य की चर्चा करना जरूरी है। उनके 1981 में कविता संग्रह पहाड़ पर लालटेन घर का रास्ता 1988 तथा हम जो दिखते हैं 1995 आवाज भी एक जगह है नए युग में शत्रु यह । मंगलेश डबराल जी को ओमप्रकाश स्मृति सम्मान 1982 श्रीकांत वर्मा सम्मान 1989 साहित्य अकादमी का पुरस्कार 2000 प्राप्त हुआ है खास यह बात थी कि ऐसी कोई खबर इनके जीवन वृत्त में  दर्ज नहीं है कि उन्होंने असहिष्णुता पूर्व सम्मान को लौटाया हो। मंगलेश डबराल  के एक कविता संग्रह है आवाज भी एक जगह है का इटली भाषा में अनुवाद अनखीला वह चाहिए उन लोगों को तथा अंग्रेजी में 20 नंबर डज नॉट एक्जिस्ट प्रकाशित हुई डबराल जी  के दो कविता संग्रह 2 भाषाओं में अनुवाद किए गए किंतु खुद डबराल जी ने पाब्लो नेरुदा के अलावा आधे दर्जन से अधिक लोगों की कविताएं अनुवादित की आइए आज हम उनकी कृति पहाड़ पर लालटेन की कविता लेते हैं अत्याचारी की थक

श्री जब्बार ढाकवाला एवम मोहतरमा तरन्नुम का दुख़द निधन

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मप्र  के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एवं साहित्यकार श्री  जब्बार ढाकवाला और उनकी पत्नी मोहतरमा तरन्नुम की शुक्रवार 7 मई 2010 को उत्तराखंड के पास जब वे  उत्तर काशी से चंबा की ओर लौट रहे थे, अचानक  उनकी कार गहरी खाई में गिर गई। एम.ए. एल-एल.बी. तक शिक्षित श्री ढाकवाला शेर—शायरी, उपन्यास व व्यंग्य लिखने के शौकीन थे। वे संचालक पिछड़ा वर्ग कल्याण,संचालक आयुर्वेद एवं होम्योपैथी,संचालक रोजगार एवं प्रशिक्षण,संचालक लघु उद्योग तथा बड़वानी कलेक्टर रहे है।जबलपुर में  जब भी उनका निजी अथवा सरकारी प्रवास होता तो वे स्थानीय साहित्यकारों से अवश्य ही मिला करते थे . विगत वर्ष   जबलपुर में 25/09/09 को :श्री जब्बार ढाकवाला साहब की सदारत  में एक गोष्ठी का आयोजन "सव्यसाची-कला-ग्रुप'' की ओर से किया गया .  श्री बर्नवाल,आयुध निर्माणी,उप-महाप्रबंधक,जबलपुर के आतिथ्य में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया  थे.गिरीश बिल्लोरे मुकुल के  संचालन में  होटल कलचुरी जबलपुर में आयोजित कवि-गोष्ठी में इरफान "झांस्वी",सूरज राय सूरज,डाक्टर विजय तिवारी "किसलय",रमेश सैनी,एस ए सिद्दीकी, और विचारक सल

श्रीराम चौरे जी का निधन

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मेरे नाना जी सदाचार  की प्रतिमा  उच्च-न्यायालय , मध्य-प्रदेश सेवा निवृत अतिरिक्त रजिस्ट्रार सत्य साई सेवा समिति के संस्थापक सदस्य , नार्मदीय - ब्राह्मण - समाज के वरिष्ठ नागरिक   एवम श्री राजेन्द्र चौरे श्री विजय चौरे के पिता वयोवृद्ध श्री श्रीराम चौरे का दु : खद निधन 90 वर्ष की आयु में नागपुर में हुआ . आज इस महामना को अंतिम विदा देने प्रस्थान कर रहा हूं