आनंद यूं ही नहीं मिलता, आनंद खरीदा नहीं जा सकता , आनंद के बाज़ार भी नहीं लगते, आनंद की दुकानें भी नहीं है, आनंद के विज्ञापन नहीं कहीं देखे हैं कभी आपने?
आनंद अनुभूति का विषय है। आनंद कठोर साधना से प्राप्त होता है। आनंद मस्तिष्क का विषय है। आनंद प्राप्ति के लिए हिंसा नहीं होती । आनंद चैतन्य की पूर्णिमा है। भिक्षु आनंदित हो सकता है, जितनी उम्मीदैं आकांक्षाएं और अपेक्षाएं कम होंगी अथवा शून्य होंगी, उससे कहीं अधिक आनंद का अनुभव होगा। लोग समझते हैं कि आनंद सुख का समानार्थी शब्द है। ऐसा नहीं है ऐसा कभी ना था मैं तो कहता हूं ऐसा हो ही नहीं सकता।
सुख अपेक्षाओं का पूरा होते ही प्राप्त हो जाता है। सुख बाजार में खरीदा जा सकता है सुख की खुलेआम बिक्री होती है, सुख के बाजार की हैं, सुख भौतिकवाद का चरम हो सकता है।
चाहत वर्चस्व सत्ता सुख के महत्वपूर्ण संसाधन है। सुख का अतिरेक प्रमाद और अहंकार का जन्मदाता है। जबकि आनंद का अतिरेक शांति एवं ब्रह्म के साथ साक्षात्कार का अवसर देने वाला विषय है।
मैं जब भी अपने कंफर्ट जोन से बाहर आता हूं तब मुझे सुख में कमी महसूस होती है। यह कमी मुझे दुखी कर देती है। दुख आरोप-प्रत्यारोप शिकायत का आधार बन जाता है। ऐसी स्थिति में आनंद के रास्ते तक बंद हो जाते हैं।
मीरा तो महारानी थी महल में रहती थी..और उसने अपना कंफर्ट जोन छोड़ दिया। सुख की सीमा से बाहर निकल आई । जब मीरा कंफर्ट जोन से बाहर निकली और कहने लगी *पायोजी मैंने राम रतन धन पायो।*
हमने अत्यधिक सुखी लोगों को बिलखते देखा है , और अकिंचन को तल्लीनता से ब्रह्म के नजदीक जाते देखा है। कुल मिला के सुख फिजिकल डिजायर का परिणाम है जबकि आनंद आत्मिक एवं आध्यात्मिक अनुभूतियों का प्रामाणिक परिणाम है।
सुख के सापेक्ष आनंद योग साधना चिंतन धारणा ध्यान और समाधि का अंतिम परिणाम है।
हाथ में धन मस्तिष्क में सुख का अनुभव अक्सर हम महसूस करते हैं। जैसे ही धन कम होता है हमारा मन व्यग्रता से लबालब हो जाता है, और हम दुखी हो जाते हैं।
हाथ से सत्ता जाते ही आपने लोगों को उसके कैंचुए की तरह बिलबिलाते देखा होगा ? जो नमक की जलन से शरीर स्वयं को बचाने में असफल हो जाता है। वर्चस्व की भी यही स्थिति है। ध्यान से देखो जो मनुष्य अकिंचन होकर न्यूनतम जरूरतों की पूर्ति कर ब्रह्म चिंतन में लग जाता है, उसके चेहरे की तेजस्विता देखिए हो सकता है कि घर के बाहर "माम भिक्षाम देही...!" की आवाज आपको सुनाई दे रही है न....!
देखिए उसके चेहरे पर तृप्ति के भाव को यदि वह योगी है तो उसके चेहरे पर आपको महात्मा बुद्ध नजर आएंगे।
ॐ राम कृष्ण हरि: