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झल्ले की सतफ़ेरी ने खाई भांग

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कार्टूनिष्ट: श्री राजेश दुबे                  होली   की रात जब झल्ले  होलिका दहन करवा के घर  लौटे तो गुलाल में इस क़दर पुते थे कि  उनकी सतफ़ेरी   तो घबरा  गईं कि जाने कौन आ घुसा घर में. फ़िर आवाज़ सुनी तब जाकर उनकी हार्ट-बीट नार्मल हुईं. नार्मल होते ही उनने सवाल किया-               खाना नै खाहौ का  .. ? न आज मेरो व्रत है.. काहे को.. ?  पूर्णिमा को ..! कौन है जा कलमुंही पूर्णिमा ज़रा हम भी तो जानें...! हमसैं जान के का करोगी मेरी जान..कैलेंडर उठाओ देख लो   वो तो देख लैहौं मनौ बताओ   व्रत पूर्णिमा को है ..!   झल्ले : हओ श्रीमति झल्ले : कर आप रये हौ..भला जा भी कौनऊ बात भई.. ?                 श्रीमति झल्ले उर्फ़ सतफ़ेरी बज़ा फ़रमा रहीं हैं. झल्ले निरुत्तर थे पर हिम्मत कर बोले -काय री भागवान तैने का भंग मसक लई.. ?                       नईं तो कल्लू तुमाए लाने पान लाए हथे आधौ हम खा गये ! बा में भांग हती का ? ओ मोरी माता अब जा होली गई होली में.         अच्छी भली छोड़ के गये थे झल्ले सतफ़ेरी को कल्लू के लाए पान ने लफ़ड़ा कर दिया   अब भांग के