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राहत इंदौरी साहब को समर्पित रचना : अब तो हर खून को बेशक परखना होगा

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#हिन्दी_ब्लागिंग  राहत साहेब अपनी अबसे अच्छी रचना मानकर गोया हर मंच पर सुना रहें हैं . बेशक कलम के तो क्या कहूं उनकी प्रस्तुति के अंदाज़ पर बहुतेरे फ़िदा हैं.. राहत साहेब की ग़ज़ल के मुक़ाबिल आज मैंने एक सकारात्मक कोशिश की थी मुझे लगा कि मैं कामयाब हूँ सो आप सबको दे रहा हूँ.. इस मंशा से कि कभी भी कोई भारतीय कवि शायर किसी से इतना व्यक्तिगत दूर न हो जाए कि उसकी झलक उसकी शायरी में दिखाई दे ... सुधि जन हम इंसानियत के लिए लिखतें हैं .. हम वतन परस्त हैं हमारी कलम से किसी के लिए इतनी घृणा न हो कि वो लोगों को तकसीम करने की वजह बने . हम किसी सियासी वजूद से दूर क्षितिज से   हौले हौले    उभरता हुआ डूबा हुआ आफताब उगाते हैं जो तेज़ी से मुक्कदस ज़मीन को अपनी सोनाली-रश्मियों से ढँक लेता है. यही है कलम की ताकत ... इन दौनों  ग़ज़ल में फर्क देखिये और जो कहेंगे ईश्वरीय प्रसाद मान कर ग्रहण करूंगा ........ तो सबसे पहले    राहत_इन्दौरी साहेब की ग़ज़ल       अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान