#हिन्दी_ब्लागिंग
राहत साहेब अपनी अबसे अच्छी रचना मानकर गोया हर मंच पर सुना रहें हैं . बेशक कलम के तो क्या कहूं उनकी प्रस्तुति के अंदाज़ पर बहुतेरे फ़िदा हैं.. राहत साहेब की ग़ज़ल के मुक़ाबिल आज मैंने एक सकारात्मक कोशिश की थी मुझे लगा कि मैं कामयाब हूँ सो आप सबको दे रहा हूँ.. इस मंशा से कि कभी भी कोई भारतीय कवि शायर किसी से इतना व्यक्तिगत दूर न हो जाए कि उसकी झलक उसकी शायरी में दिखाई दे ... सुधि जन हम इंसानियत के लिए लिखतें हैं .. हम वतन परस्त हैं हमारी कलम से किसी के लिए इतनी घृणा न हो कि वो लोगों को तकसीम करने की वजह बने . हम किसी सियासी वजूद से दूर क्षितिज से हौले हौले उभरता हुआ डूबा हुआ आफताब उगाते हैं जो तेज़ी से मुक्कदस ज़मीन को अपनी सोनाली-रश्मियों से ढँक लेता है. यही है कलम की ताकत ... इन दौनों ग़ज़ल में फर्क देखिये और जो कहेंगे ईश्वरीय प्रसाद मान कर ग्रहण करूंगा ........ तो सबसे पहले राहत_इन्दौरी साहेब की ग़ज़ल
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
अब प्रस्तुत है मेरी गजल ... उर्दू लिटरेचर के मापदंडों में उन्नीस-बीस हो सकती है पर सकारात्मक सृजन राष्ट्रीय चिंतन के बिंदु पर मुक्कमल मानता हूँ.. यकीनन आप भी मानेंगे.
जो खिलाफ हैं वो समझदार इंसान थोड़ी हैं
जो वतन के साथ हैं वो बेईमान थोड़ी है ।।
जो वतन के साथ हैं वो बेईमान थोड़ी है ।।
लगेगी आग तो बुझाएंगे हम सब मिलकर
बस्ती हमारी है वफादार हैं बेईमान थोड़ी हैं ।।
बस्ती हमारी है वफादार हैं बेईमान थोड़ी हैं ।।
मैं जानता कि हूँ वो दुश्मन नहीं था कभी मेरा
उकसाने वालों का सा मेरा खानदान थोड़ी है ।।
उकसाने वालों का सा मेरा खानदान थोड़ी है ।।
मेरे मुंह से जो भी निकले वही सचाई है
मेरे मुंह में पाकिस्तानी ज़ुबान थोड़ी है ।।
मेरे मुंह में पाकिस्तानी ज़ुबान थोड़ी है ।।
वो साहिबे मसनद है कल रहे न रहे -
वो भी मालिक है ये किराए की दूकान थोड़ी है
वो भी मालिक है ये किराए की दूकान थोड़ी है
अब तो हर खून को बेशक परखना होगा
वतन हमारे बाप का है हर्फ़ों की दुकान थोड़ी है ।।
#गिरीश_बिल्लोरे_मुकुल