कई वर्षों से हमारी समझ में ये बात क्यों न आ रही है कि दुनिया बदल रही है. हम हैं कि अपने आप को एक ऐसी कमरिया से ढांप लिये है जिस पर कोई दूजा रंग चढ़ता ही नहीं. जब जब हमने समयानुसार खुद को बदलने की कोशिश की है या तो लोग हँस दिये यानी हम खुद मिसफ़िट हैं बदलाव के लिये .
शोले वाले अधमुच्छड़ज़ेलर और उनका डायलाग याद है न ... "हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं "
अधमुच्छड़ ज़ेलर, आधों को इधर आधों को उधर भेजता है.. बाक़ी को यानी "शून्य" को अपने पीछे लेके चलता है. सचाई यही है मित्रो, स्वयं को न बदलने वालों के साथ निर्वात (वैक्यूम) ही रहता है.
इस दृश्य के कल्पनाकार एवम लेखक की मंशा जो भी हो मुझे तो साफ़ तौर यह डायलाग आज़ भी किसी भी भौंथरे व्यक्तित्व को देखते आप हम दुहराया करते हैं.
आज़ भी आप हम असरानी साहब पर हँस देते हैं. हँसिये सलीम जावेद ने बड़ी समझदारी और चतुराई से कलम का प्रयोग किया ( जो 90 % दर्शकों के श्रवण- ज़ायके से वे वाक़िफ़ थे ) और असरानी साहब से कहलवाया.
न न आप गलत सोच रहे हैं अधमुच्छड़ ज़ेलर की खिल्ली उड़ा रहा हूं !! न भई न मैं तो ये बता रहें हैं असली सुदृढ़ व्यक्तियों का आज़कल टोटा पड़ गया है . सारे चेहरे नक़ली नक़ली से नज़र आते हैं. बाह्य पर्यावरण के कृत्रिम बदलावों का परिणाम इतना गहरा असर छोड़ रहा है कि आपको ठीक से पहचान नहीं पा रहा होगा कोई. जिसे देखो परिवर्तित रूप में मिलेगा. कल हमारे घर के कर्मकांडी संस्कार कराने वाला पंडित जब साउथ एवेन्यू मॉल में मिला अव्वल तो मै चीन्ह न पाया जब उसे पहचाना तो वो मुझसे सुरक्षित दूरी बनाते हुए निकल गया हां उसकी तरफ़ से शुद्ध आधुनिक स्टाइलिश अभिवादन अवश्य आया मुझ तक .
हम सब पंडिज्जी की तरह के ही तो हैं सामान्यत: एक आभासी एहसास के पीछे भागने वाले सर्च इंजन बन चुके हैं .हमारी सोच मौलिक नहीं रह गई मौलिक चिंतन की खिड़कियां बंद हो चुकीं हैं. अब तो हम कुछेक नाम याद रख लेते हैं इतना ही नहीं जलियांवाला बाग के बारे में हमारी पौध तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के आने से जान सकी .यूं तो इस अति आधुनिक समाज की कमसिन पौध खूब जानती है कि किस स्मार्ट फ़ोन की कीमत क्या है, किस बाडी स्प्रे से विपरीत लिंग आकर्षित होगा या होगी, छोटे कदम रखने के मायने क्या है.मां बाप को एहसास भी न होगा कि रोडीज़ में कैसी अश्लील बात कही थी उस लड़की ने जिसे म्यूट किया. अब आप बताएं आप सरकार पुलिस, व्यवस्था, भारत राजनीति को कोसते ही रहेंगे या एक बार अधमुच्छड़ ज़ेलर बन के बच्चों पर पैनी नज़र रखेंगे. मुझे नहीं लगता कि कोई ऐसा करेगा हवा में लिख रहा हूं.. शायद एकाध कोई तो होगा जो जो समझेगा इस मिसफ़िट से लगने वाले एहसास को.
शोले वाले अधमुच्छड़ज़ेलर और उनका डायलाग याद है न ... "हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं "
अधमुच्छड़ ज़ेलर, आधों को इधर आधों को उधर भेजता है.. बाक़ी को यानी "शून्य" को अपने पीछे लेके चलता है. सचाई यही है मित्रो, स्वयं को न बदलने वालों के साथ निर्वात (वैक्यूम) ही रहता है.
इस दृश्य के कल्पनाकार एवम लेखक की मंशा जो भी हो मुझे तो साफ़ तौर यह डायलाग आज़ भी किसी भी भौंथरे व्यक्तित्व को देखते आप हम दुहराया करते हैं.
आज़ भी आप हम असरानी साहब पर हँस देते हैं. हँसिये सलीम जावेद ने बड़ी समझदारी और चतुराई से कलम का प्रयोग किया ( जो 90 % दर्शकों के श्रवण- ज़ायके से वे वाक़िफ़ थे ) और असरानी साहब से कहलवाया.
न न आप गलत सोच रहे हैं अधमुच्छड़ ज़ेलर की खिल्ली उड़ा रहा हूं !! न भई न मैं तो ये बता रहें हैं असली सुदृढ़ व्यक्तियों का आज़कल टोटा पड़ गया है . सारे चेहरे नक़ली नक़ली से नज़र आते हैं. बाह्य पर्यावरण के कृत्रिम बदलावों का परिणाम इतना गहरा असर छोड़ रहा है कि आपको ठीक से पहचान नहीं पा रहा होगा कोई. जिसे देखो परिवर्तित रूप में मिलेगा. कल हमारे घर के कर्मकांडी संस्कार कराने वाला पंडित जब साउथ एवेन्यू मॉल में मिला अव्वल तो मै चीन्ह न पाया जब उसे पहचाना तो वो मुझसे सुरक्षित दूरी बनाते हुए निकल गया हां उसकी तरफ़ से शुद्ध आधुनिक स्टाइलिश अभिवादन अवश्य आया मुझ तक .
हम सब पंडिज्जी की तरह के ही तो हैं सामान्यत: एक आभासी एहसास के पीछे भागने वाले सर्च इंजन बन चुके हैं .हमारी सोच मौलिक नहीं रह गई मौलिक चिंतन की खिड़कियां बंद हो चुकीं हैं. अब तो हम कुछेक नाम याद रख लेते हैं इतना ही नहीं जलियांवाला बाग के बारे में हमारी पौध तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के आने से जान सकी .यूं तो इस अति आधुनिक समाज की कमसिन पौध खूब जानती है कि किस स्मार्ट फ़ोन की कीमत क्या है, किस बाडी स्प्रे से विपरीत लिंग आकर्षित होगा या होगी, छोटे कदम रखने के मायने क्या है.मां बाप को एहसास भी न होगा कि रोडीज़ में कैसी अश्लील बात कही थी उस लड़की ने जिसे म्यूट किया. अब आप बताएं आप सरकार पुलिस, व्यवस्था, भारत राजनीति को कोसते ही रहेंगे या एक बार अधमुच्छड़ ज़ेलर बन के बच्चों पर पैनी नज़र रखेंगे. मुझे नहीं लगता कि कोई ऐसा करेगा हवा में लिख रहा हूं.. शायद एकाध कोई तो होगा जो जो समझेगा इस मिसफ़िट से लगने वाले एहसास को.