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शुक्रवार, मई 09, 2014

बरगद पीपल नीम सरीखे , तेज़ धूप में बाबूजी !!



किसी के बाबूजी बूढ़े कभी भी नहीं हो सकते अगर उनको उनके बुढ़ापे का एहसास न कराया जाए. मेरे  बाबूजी श्रीयुत काशीनाथ बिल्लोरे उन लोगों की तरह हैं जो कभी बूढ़े नहीं होते यक़ीन न आए तो मेरे मित्रों से जानिये यही सच है. 84 बरस पहले  बाबूजी का जन्म नर्मदांचल के सिराली गांव में हुआ. कुशाग्र तो थे  कई नौकरियां तैयार थीं उनको अपनाने.. वैसे भी वो दौर लम्बी कतारों वाला न था रेवेन्यू में टाइम पास करने बाबू हो गए पर रास न आई नौकरी .. दादाजी रेवेन्यू के पटवारी थे बाबूजी उससे हट के कुछ बनना चाहते थे. रेल विभाग में सहायक स्टेशन मास्टर भर्ती हो गए.   हरदा के इर्दगिर्द की  जमीने उस दौर में इतना सोना उगला नहीं करतीं थीं जितना कि अब पंजाब की मानिंद उगल रहीं हैं. दादाजी भी चाहते थे कि लड़का सरकारी नौकर हो जाए खेती किसानी में क्या रखा है.. मेरे ताऊ जी स्व. पुरुषोत्तम बिल्लोरे, एवम स्व. ताराचंद बिल्लोरे जबलपुर आ चुके थे अपनी अपनी ज़मीने तलाश लीं थीं. आज़ादी के बाद दादाजी स्व. गंगाबिशन बिल्लोरे की तेज़तर्रार किंतु कर्मठ लाइफ़ स्टायल का असर था बाबूजी सहित उनके सात बेटों पर ... सबके सब एक से बढ़कर एक पुरुषोत्तम दादाजी रेलवे में ड्रायवर हो गए, फ़िर किसी आकस्मिक बीमारी के चलते कचहरी में रीडर हो गए. ताराचंद्र जी कलेक्टोरेट में क्लर्क उसके बाद वो वकालत के पेशे में आ गये. , शिवचरन जी संटिंग मास्टर, स्व. रामशंकर जी मस्त मौला किसी नौकरी को नौकरी की तरह नहीं करने वाले अफ़सर पर गुस्सा आया तो वापस बड़े ताऊ के पास ... हाज़िर मुझे ये नौकरी पसंद नहीं का छोटा सा डायलाग डिलीवर कर देते थे. यानी अब तुम मेरे लिये नया जाब खोजो .. .. बरसों ये धंधा जारी रहा . नौकरियां रेवड़ी सी मिला करतीं थीं.. पर बार बार हाथ जोड़ना ताऊ जी को रास न आया सो रामशंकर दादा को गांव वापस भेजा खेती बाड़ी सम्हालो .. भाईयों में बाबूजी पांचवे क्रम पर आता है. छटे उमेश नाराय़ण बिल्लोरे रंगकर्मी कला साधक, लेखक, संगठक व्हीकल में क्लर्क हुए. सबसे छोटे आर्डिनेंस में . यानी सूरज के सातों अश्व से सातों भाई क्रमश: बड़े संयुक्त परिवार में एक  सूत्र में बंधे रहे . इन सात जनकों की  हम 17 संतानों को आज़ तक मालूम नहीं कि पारिवारिक कभी सम्पत्ति को लेकर किसी में कोई अनबन हुई हो .  हां कभी कभार कोई तनाव हुआ भी तो अगले ही दिन खत्म . हमको हमारा परिवार बहुत छोटा नज़र आता था जब पूरा कुनबा जुड़ता तो लगता था कि हां अब हम पूरे हैं.  अब एक परिवार का मामला है तब  कौटौम्बिक परिवार का स्वरूप अब नज़र नहीं आता. बाबूजी को भी अक्सर सबके बीच रहने की आदत है..
 
 स्व. गुहे जी
 इस  बार बाबूजी ने सख्त आदेश दिया मेरा जन्म-दिन ज़्यादा जोर शोर से न मनाएं .. दरअसल   मामला ये था कि वे अपने एक मित्र को मिस कर रहे थे    स्व. मांगीलाल जी गुहे जी अभिन्न मित्र थे उनके  जिनके निधन के बाद बाबूजी कुछ उदास से रहने लगे हैं. बस सतीश भैया ने बड़ी चतुराई बाबूजी को सरप्राइज़ दिया . दिन में उनके हम वयों को होटल पंचवटी गौरव में बुलवाया बिना बाबूजी को बताए. बाबूजी को लेकर आना कठिन था सो शातिराना तरीके से भतीजी डा. आस्था और मैं उनको मंदिर में दर्शन कराने के बहाने ले गये .. फ़िर कहा - बाबूजी , कुछ खाते हैं होटल में और बस पंचवटी गौरव में मेरे उमेश काकाजी ने बाहर आगवानी की वहां बाबूजी के साथी पहले से ज़मा थे खूब खुश हुए सब दोपहर बाबूजी जन्म दिन  आध्यात्मिक तरीके से मनाया   कांफ़्रेंस हाल में नर्मदा अर्चना के बाद स्वस्ति बाबूजी का पुष्पाभिषेक किया गया "महामृत्युंजय मंत्र"  के साथ .
बाबूजी के साथ मेरे बड़े भैया श्री हरीश बिल्लोरे का जन्म दिन भी होता है शाम को घर पर फ़िर से हुआ एक आयोजन .....

बुज़ुर्गों के बिना घर रेगिस्तान लगता है..










बरगद पीपल नीम सरीखेतेज़ धूप में बाबूजी
मां के बाद नज़र आते हैं , “मां ही जैसे हैं बाबूजी ..!!
अल्ल सुबह सबसे पहले , जागे होते बाबूजी-
अखबारों में जाने क्या बांचा करते रहते हैं
दुनिया भर की बातों से जुड़े हुए हैं बाबूजी ..!!
साल चौरासी बीत गए जाने  क्या क्या देखा है
बात चीत न कर पाएं हम  घबरा जाते बाबूजी..!!
जाने कितनी पीढ़ा भोगी होगी जीवन में
उसे भूल अक्सर उस बिसर मित्रों संग हैं मुस्काते बाबूजी ..!!
चौकस रहती आंखें उनकी,किसने क्या क्या की गलती
पहले डांटा करते थे वे, अब समझाते हैं बाबूजी...!!



रविवार, मई 08, 2011

बाबूजी ने इक्यासी वर्ष में प्रवेश किया


बाबूजी की ने उम्र के अस्सी बरस पूरे किये. कल से थी गहमा गहमी , खूब मज़ा किया रिटायर्ड बच्चों  ने जी हर माह किसी न किसी बुज़ुर्ग का हेप्पी वाला बर्थ-डे होता है. जिसे आज मैंने लाइव किया पर ज़ल्दबाज़ी में   

बाबूजी 
साउंड आन नहीं हो पाया था. फिर भी आप बैमबज़र पर  देख सकते हैं. अगर आपके परिवार में ऐसा कोई अवसर आए तो नाचीज़ हाज़िर है. बच्चों और बुजुर्गों की खुशी से बढकर शायद पूजा भी नहीं है  शायद आप में से कोई असहमत हो सकता है फिर भी आप से विचार को शेयर कर रहा हूँ .मेरी आप सभी के बाबूजी के लिए हार्दिक शुभ कामनाएं ....   मेरे बाबूजी के साथ आप सभी के बाबूजीयों  के शतायु होने की मंगल कामना  

गुरुवार, जनवरी 06, 2011

मेरे बाबूजी खुश क्यों हैं !!


आते ही सबसे दयनीय पौधे के पास गए
(बाबूजी अपने  बेजुबान बच्चों से  बात करने आए )
दूसरे बच्चे की आसपास की साल-सम्हाल ही बाबूजी ने.
थक भी तो जाते हैं बाबूजी
फ़िर अगले ही पल मुस्कुराने लगते
इन बीस गमलों में आयेंगी नन्ही जमात
मेरे बाबूजी उन प्रतीकों में से एक हैं जो अपनी उर्जा को ज़िंदगी के उस मोड़ पर भी तरोताजा बनाए  रखने बज़िद हैं जहां लोग हताशा  के दुशाले ओढ़ लिया करते हैं.   कल ही बात है  अरविन्द भाई को बेवज़ह फोटोग्राफी के लिए बुलवाया बेवज़ह इस लिए क्योंकि न तो कोई जन्म दिन न कोई विशेष आयोजन न ब्लागर्स मीट यानी शुद्ध रूप से  मेरी इच्छा  की पूर्ती ! इच्छा  थी  कि बाबूजी  सुबह सबेरे की अपने गार्डन वाले बच्चों को कैसे दुलारते हैं इसे चित्रों में दर्ज करुँ कुछ शब्द जड़ दूं एक सन्देश दे दूं कि :-''पितृत्व कितना स्निग्ध होता है " हुआ भी यही दूसरे माले पर  उनका इंतज़ार उनके दूसरे बच्चे यानी नन्हे-मुन्ने पौधे  इंतज़ार कर रहे थे दादा नियत समय पर तो नहीं कुछ देर से ही आ सके आते ही सबसे दयनीय पौधे के पास गए उसे सहलाया फिर एक दूसरे बच्चे की आसपास की साल-सम्हाल ही बाबूजी ने. यानी सबसे जरूरत मंद के पास सबसे पहले. ऐसे हैं बाबूजी. जी सच सोच  रहें हैं आप सबके बाबूजी ऐसे ही होते हैं बस सभी को आंखों से पट्टी उतारना ज़रूरी है अपन अपने बाबूजी को देखने के लिए. बाबूजी को देखने के लिए बच्चे की नज़र चाहिये हम और आप मुखिया बन के तर्कों के  चश्में से  अपने अपने बाबूजी को देखेंते तो सचमुच हम उनको देख ही कहाँ पाते हैं. बाबूजी को पहले मैं भी तर्कों के  चश्में से देखता था सो बीसीयों कमियाँ नज़र आतीं थीं मुझे उनमें एक दिन जब श्रद्धा बिटिया, चिन्मय (भतीजे) की नज़र से देखा तो लगा सच कितने मासूम और सर्वत्र स्नेह बिखेरतें हैं अपने बाबूजी. सब के बाबूजी ऐसे ही तो होते हैं. सच मानिए जी बाबूजी के बड़े परिवार के अलावा 106 गमलों में निवासरत और बीस बच्चों की साल सम्हाल के लिये इन्तज़ाम कर भी तय किया है बाबूजी ने . नौकर चाकर माली आदी सबके होते बाबूजी उनकी सेवा करते हैं. उनकी चिंता में रहते हैं हम भाइयों ने जब कभी एतराज़ किया तो महसूस किया बाबूजी पर उनकी रुचि के काम करने से रोकना उनको पीडा पंहुंचाना है. अस्तु हम ने इस बिंदु पर बोलना बंद कर दिया. जिस में वे खुश वो ही सही है. अपने बुज़ुर्गों को अपने सत्ता के बूते (जो उनसे और उनके कारण हासिल होती है) उनपर प्रतिबंध लगाना उनकी आयु को कम करना है.मेरे पचासी साल के बाबूजी श्रीयुत काशीनाथ जी बिल्लोरे खुश क्यों हैं मुझे शायद हम सबको इसका ज़वाब मिल गया है न !!
बस थोड़ा सा हम खुद को बदल लें तो  लगेगा कि :-भारत में वृद्धाश्रम की ज़रुरत से ज़्यादा ज़रुरत है पीढ़ी की सोच बदलने की.

बाबूजी की बगिया की मुस्कान 






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