किसी के बाबूजी बूढ़े कभी भी नहीं हो सकते अगर उनको उनके बुढ़ापे का एहसास न कराया जाए. मेरे बाबूजी श्रीयुत काशीनाथ बिल्लोरे उन लोगों की तरह हैं जो कभी बूढ़े नहीं होते यक़ीन न आए तो मेरे मित्रों से जानिये यही सच है. 84 बरस पहले बाबूजी का जन्म नर्मदांचल के सिराली गांव में हुआ. कुशाग्र तो थे कई नौकरियां तैयार थीं उनको अपनाने.. वैसे भी वो दौर लम्बी कतारों वाला न था रेवेन्यू में टाइम पास करने बाबू हो गए पर रास न आई नौकरी .. दादाजी रेवेन्यू के पटवारी थे बाबूजी उससे हट के कुछ बनना चाहते थे. रेल विभाग में सहायक स्टेशन मास्टर भर्ती हो गए. हरदा के इर्दगिर्द की जमीने उस दौर में इतना सोना उगला नहीं करतीं थीं जितना कि अब पंजाब की मानिंद उगल रहीं हैं. दादाजी भी चाहते थे कि लड़का सरकारी नौकर हो जाए खेती किसानी में क्या रखा है.. मेरे ताऊ जी स्व. पुरुषोत्तम बिल्लोरे, एवम स्व. ताराचंद बिल्लोरे जबलपुर आ चुके थे अपनी अपनी ज़मीने तलाश लीं थीं. आज़ादी के बाद दादाजी स्व. गंगाबिशन बिल्लोरे की तेज़तर्रार किंतु कर्मठ लाइफ़ स्टायल का असर था बाबूजी सहित उनके सात बेटों पर ... सबके सब एक से बढ़कर एक पुरुषोत्तम दादाजी रेलवे में ड्रायवर हो गए, फ़िर किसी आकस्मिक बीमारी के चलते कचहरी में रीडर हो गए. ताराचंद्र जी कलेक्टोरेट में क्लर्क उसके बाद वो वकालत के पेशे में आ गये. , शिवचरन जी संटिंग मास्टर, स्व. रामशंकर जी मस्त मौला किसी नौकरी को नौकरी की तरह नहीं करने वाले अफ़सर पर गुस्सा आया तो वापस बड़े ताऊ के पास ... हाज़िर मुझे ये नौकरी पसंद नहीं का छोटा सा डायलाग डिलीवर कर देते थे. यानी अब तुम मेरे लिये नया जाब खोजो .. .. बरसों ये धंधा जारी रहा . नौकरियां रेवड़ी सी मिला करतीं थीं.. पर बार बार हाथ जोड़ना ताऊ जी को रास न आया सो रामशंकर दादा को गांव वापस भेजा खेती बाड़ी सम्हालो .. भाईयों में बाबूजी पांचवे क्रम पर आता है. छटे उमेश नाराय़ण बिल्लोरे रंगकर्मी कला साधक, लेखक, संगठक व्हीकल में क्लर्क हुए. सबसे छोटे आर्डिनेंस में . यानी सूरज के सातों अश्व से सातों भाई क्रमश: बड़े संयुक्त परिवार में एक सूत्र में बंधे रहे . इन सात जनकों की हम 17 संतानों को आज़ तक मालूम नहीं कि पारिवारिक कभी सम्पत्ति को लेकर किसी में कोई अनबन हुई हो . हां कभी कभार कोई तनाव हुआ भी तो अगले ही दिन खत्म . हमको हमारा परिवार बहुत छोटा नज़र आता था जब पूरा कुनबा जुड़ता तो लगता था कि हां अब हम पूरे हैं. अब एक परिवार का मामला है तब कौटौम्बिक परिवार का स्वरूप अब नज़र नहीं आता. बाबूजी को भी अक्सर सबके बीच रहने की आदत है..
स्व. गुहे जी |
बाबूजी के साथ मेरे बड़े भैया श्री हरीश बिल्लोरे का जन्म दिन भी होता है शाम को घर पर फ़िर से हुआ एक आयोजन .....
बुज़ुर्गों के बिना घर रेगिस्तान लगता है..
बरगद पीपल नीम
सरीखे, तेज़ धूप में बाबूजी
“मां” के बाद नज़र आते हैं ,
“मां” ही जैसे हैं बाबूजी ..!!
अल्ल सुबह
सबसे पहले , जागे होते बाबूजी-
अखबारों में
जाने क्या बांचा करते रहते हैं
दुनिया भर की
बातों से जुड़े हुए हैं बाबूजी ..!!
साल चौरासी बीत गए जाने क्या क्या देखा है
बात चीत न कर
पाएं हम घबरा जाते बाबूजी..!!
जाने कितनी
पीढ़ा भोगी होगी जीवन में
उसे भूल अक्सर उस बिसर मित्रों संग हैं मुस्काते बाबूजी ..!!
चौकस रहती आंखें उनकी,किसने क्या क्या की गलती
पहले डांटा
करते थे वे, अब
समझाते हैं बाबूजी...!!