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" दण्ड का प्रावधान उम्र आधारित न होकर अपराध की क्रूरता आधारित हो !"

                  भारतीय न्याय व्यवस्था ने एक बार फ़िर साबित कर दिया है कि -भारतीय न्याय व्यवस्था बेशक बेहद विश्वसनीय एवम विश्वास जनक है. दामिनी के साथ हुआ बर्ताव अमानवीय एवम क्रूरतम जघन्य था. सच कितने निर्मम थे अपराधी उनके खिलाफ़ ये सज़ा माकूल है. जुविलाइन एक्ट की वज़ह से मात्र तीन बरस की सज़ा पाने वाला अपराधी भी इसी तरह की सज़ा का पात्र होना था . किंतु मौज़ूदा कानून के तहत लिए गए निर्णय पर  टीका टिप्पणी न करते हुये एक बात सबके संग्यान में लाना आवश्यक है कि - "यौन अपराधों के विरुद्ध सज़ा एक सी हो तो समाज का कानून  के प्रति नज़रिया अलग ही होगा."       सुधि पाठको ! यहां यह कहना भी ज़रूरी हो गया है कि- यौन अपराध,  राष्ट्र के खिलाफ़ षड़यंत्रों, राष्ट्र की अस्मिता पर आघात करने वाले विद्रोहियों, आतंकवादियों के द्वारा की गई राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से कम नहीं हैं  . अतएव इस अपराध को रोकने कठोरतम दण्ड के प्रावधान की ज़रूरत है. इतना ही नहीं ऐसे आपराधिक कार्य में अवयष्क  को उसकी अवयष्कता के आधार पर कम दण्ड देना  सर्वथा प्रासंगिक नहीं है. राज्य के विरुद्ध अपराध के संदर्भ में देखा ज