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प्रवासी हिंदी साहित्य : कुछ प्रश्नों के उत्तर (अभिव्यक्ति की संपादक पूर्णिमा वर्मन का वक्तव्य)

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                       मिसफ़िट पर   पिछली पोस्ट में एक ब्लागर (शायद-साहित्यकार नहीं) के द्वारा  घोषित वाक्य से मुझे बेहद हैरानी थी  हैरानी इस लिये कि कुछ लोग बेवज़ह ही लाइम लाईट में बने रहने के लिये उलजलूल बातें किया करते हैं. हालिया दौर में ऐसे लोगों की ओर से कोशिश रही  है कि किसी न किसी रूप में सनसनीखेज बयान/आलेख पेश कर हलचल पैदा की जाए. कुछ इसी तरह के सवाल    प्रवासी साहित्य के विषय में हमेशा से बहुत से प्रश्न उठाए जाते रहे हैं। हाल ही में यमुना नगर में आयोजित एक सेमीनार में अभिव्यक्ति की संपादक पूर्णिमा वर्मन ने इनके उत्तर देने की कोशिश की है  उनका वक्तव्य यहाँ जस का तस  प्रकाशित किया जा रहा है.  प्रवासी हिंदी साहित्य : कुछ प्रश्नों के उत्तर यमुना नगर में आयोजित सेमीनार में अभिव्यक्ति की संपादक पूर्णिमा वर्मन का वक्तव्य नमस्कार- आज के इस सत्र में अनेक प्रवासी लेखकों की अनेक कहानियों पर चर्चा सुनकर कल उपजा बहुत सी निराशा का बादल तो छँट गया। जानकर अच्छा लगा कि इतने सारे लोग प्रवासी कहानियाँ पढ़ते हैं और अधिकार से उनके संबंध में कुछ कहने की सामर्थ्य रखते हैं। कल के अनेक सत्रों म