मज़ाक मज़ाक में एक पोस्ट
ब्लागजगत में समझौतावादी लक्षण दिखाई दे रहे हैं..डी. के. साहब की यह पोस्ट उकसाती नज़र आ रही है हा हा हा .....गोदियाल सा’ब ने बीज बो दिया ...ही...ही....ही....? पी. डी सा’ब अभी हम सब ने [यह शब्द नवीन प्रतिस्थापित है ] सुबह सुबह आदरणीय ज्ञानदत्त पाण्डे जी के स्वास्थ्य की मंगल कामना की है और यह अपेक्षा ............ बात कुछ हज़म नहीं हुई. वैसे इस तरह के आह्वान की ज़रूरत क्यों आन पड़ी पी.डी. सा’ब. सच मानिये कोई भी इस तरह की कल्पना लेकर ब्लागिंग के लिये नहीं आता बस वह आता है लिखने के वास्ते और दिशा तय कर देतें हैं हम लोग जो पहले से मैदान में डटें हैं. ब्लाग पर वानरी हड़्कम्प का न होना चिन्ता का विषय नहीं भले ही मज़ाक में में चिंता व्यक्त की गई हो. आपकी मज़ाहिया प्रतिटिप्पणी के गहरे अर्थ हैं:- पं.डी.के.शर्मा"वत्स" , @सुरेश चिपलूनकर जी,भाई जल्दी से फुर्सत मे आईये...अब तो ये शान्ति कुछ असहनीय सी होने लगी है :-) यह टिप्पणी मनुष्य के अंतस में बसे एक सत्य को उज़ागर करती है........ युद्ध की प्रतीक्षा शांति से अधिक की जाती है.हर व्यक्ति इसमें शामिल होता है जिनका वर्गीकरण निम्नानुसार है :