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शुक्रवार, जून 11, 2021

मेलिसा कपूर ने क्यों अपनाया सनातन जीवन प्रणाली को ...?


   यूनाइटेड किंगडम की एक युवती मेलिसा ने भारतीय सनातन जीवन प्रणाली और दर्शन को क्यों स्वीकारा इस बारे में आज आपसे चर्चा करना चाहता हूं। इसके पहले कि आप हिंदू धर्म को एक मेथालॉजी से परिमित 
(Under the Limitation of methodology) कर दें मैं आपको  सनातन इस तरह से देखना चाहिए ताकि आप उसे समझ सके। मेलिसा की मां डेनमार्क से हैं प्रोटेस्टेंट रही हैं जबकि उनके पिता ईस्ट पोलैंड से रहे हैं तथा वह कैथोलिक मत को मानते थे। मेलिसा का जन्म कनाडा में हुआ। और उनका भारतीय सनातन व्यवस्था में प्रवेश विवाह संस्कार के साथ हुआ। 16 संस्कारों में अगर देखा जाए तो सनातन की शुरुआत जन्म के साथ अंगीकृत कराई जाती है। लेकिन मेलिसा ने सबसे पहले भारतीय दर्शन को समझा पढ़ा और बाद में सनातन धर्मी पुरुष से विवाह कर वे सनातन का हिस्सा बन गईं । 
   इनका मानना है कि जब तक मैंने सनातन के बारे में जानकारी हासिल नहीं की थी तब तक मैं सनातन को अर्थहीन और अस्तित्व ही मानती थी। किंतु केरल के दौरे के बाद मुझे इस फिलासफी और जीवन प्रणाली के प्रति आकर्षण पैदा हुआ। उनका मानना है कि सनातन सर्वाधिक रूप से वैज्ञानिक धर्म है अतः उन्होंने अपने संप्रदाय को छोड़कर सनातन धर्म को स्वीकार किया। वे विभिन्न विषयों पर अपने विचार रखती हैं - उनका सबसे पहला वीडियो बालाकोट स्वच्छ भारत अभियान झांसी की रानी नामकरण संस्कार ऋषिकेश यात्रा गोद भराई भारतीय हिंदू गुरुओं के विभ्रम भ्रमित करके धर्म परिवर्तन मोक्ष के रास्ते आदि विषयों के साथ साथ महाभारत रामायण भारतीय पूजा प्रणाली यहां तक कि गर्भावस्था के दौरान जिस तरह से महिला का खानपान पर और उसे मुहैया कराए गए वातावरण पर ध्यान देने के निर्देश या व्यवस्था सनातन में है वह सर्वोपरि है। मेलिसा आयुर्वेद के प्रोटीन कैलोरी युक्त विशेष आहार का एक वीडियो में उल्लेख करती है। एक सुरक्षित प्रेगनेंसी और सफल प्रसव के लिए क्या जरूरी होना चाहिए इन तथ्यों का भी मेलिसा को पर्याप्त ज्ञान है। वे गर्भावस्था के दौरान अपनाई जाने वाली आयुर्वेद
आधारित जीवन प्रणाली को श्रेष्ठ मानती हैं। इसके अतिरिक्त वे बहुत से भारतीय मुद्दों पर चर्चा करती हैं मेलिसा कपूर 30 मार्च 2019 से यूट्यूब पर है और इन्होंने अपने यूट्यूब चैनल का नाम इंग्लिश बहन English Bahan रखा हुआ है जो अब तक 816921 दर्शकों तक दिखा जा चुका है।
   यहां मैं अपनी अभिव्यक्ति में आपको यह बता देना चाहता हूं कि सनातन को जो भी जान लेता है वह उसका अनुयाई और समर्थक हो जाता है। और जो शुरू से यानी जन्म से सनातन धर्म के हैं उन्हें धर्म को समझने की जरूरत है ताकि सनातन जीवन व्यवस्था को बेहद प्रभावी ढंग से अंगीकृत करें ।
    अंततः मैं फिर से कहूंगा कि-मेलिसा कपूर की अभिव्यक्ति से स्पष्ट होता है कि भारतीय दर्शन भारतीय जीवन प्रणाली के प्रति आकर्षण और उसके अनुपालन के लिए भारत को समझना बहुत जरूरी है।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

बुधवार, दिसंबर 01, 2010

सबसे लचीली है भारत की धर्मोन्मुख सनातन सामाजिक व्यवस्था

साभार: योग ब्लाग से


बेटियों को अंतिम संस्कार का अधिकार क्यों नहीं..? के इस सवाल को गम्भीरता से लिये जाने की ज़रूरत है. यही चिंतन सामाजिक तौर पर महिलाऒं के सशक्तिकरण का सूत्र पात हो सकता है. क़ानून कितनी भी समानता की बातें करे किंतु सच तो यही है कि "महिला की कार्य पर उपस्थिति ही " पुरुष प्रधान समाज के लिये एक नकारात्मक सोच पैदा कर देती है. मेरे अब तक के अध्ययन में भारत में वेदों के माध्यम से स्थापित की गई  की व्यवस्थाएं लचीली हैं. प्रावधानों में सर्वाधिक विकल्प मौज़ूद हैं. फ़िर भी श्रुति आधारित परम्पराओं की उपस्थिति से कुछ  जड़ता आ गई जो दिखाई भी देती है. सामान्यत: हम इस जड़त्व का विरोध नही कर पाते
  1. रीति-रिवाज़ों के संचालन कर्ता घर की वयोवृद्ध पीढी़, स्थानीय-पंडित, जिनमें से सामन्यत: किसी को भी वैदिक तथा पौराणिक अथवा अन्य किसी ग्रंथ में उपलब्ध वैकल्पिक प्रावधानों का ज्ञान नहीं होता. 
  2. नई पीढ़ी तो पूर्णत: बेखबर होती है. 
  3. शास्त्रोक्त प्रावधानों/विकल्पों की जानकारीयों से सतत अपडेट रहने के लिये  सूचना संवाहकों का आभाव होता है. 
  4. वेदों-शास्त्रों व अन्य पुस्तकों का विश्लेषण नई एवम बदली हुई परिस्थियों में उन पर सतत अनुसंधानों की कमीं. 
  5. विद्वत जनों में लोकेषणाग्रस्त होने का अवगुण का प्रभाव यानी अधिक समय जनता के बीच नेताओं की तरह भाषण देने की प्रवृत्तियां.स्वाध्याय का अभाव 
                       उपरोक्त कारणों से कर्मकाण्ड में नियत व्यवस्थाओं के एक मात्र ज्ञाता होने के कारण पंडितों/कुटुम्ब के बुजुर्गों की आदतें  परम्पराओं को जड़ता देतीं हैं. उदाहरण के तौर पर स्वास्थ्य सम्बंधी विज्ञान जन्म के तुरंत बाद बच्चे को स्तन-पान की सलाह देता है, घर की बूढ़ी महिला उसकी घोर विरोधी है. उस महिला ने न तो वेद पढ़ा है न ही उसे चिकित्सा विज्ञान की सलाह का अर्थ समझने की शक्ति है बल्कि अपनी बात मनवाने की ज़िद और झूठा आत्म-सम्मान पुत्र-वधू को ऐसा कराने को बाध्य करता है. आप बताएं कि किस धर्मोपदेशक ने कहां कहा है कि :- ”जन्म-के तुरन्त बाद  स्तन पान न कराएं. और यदि किसी में भी ऐसा लिखा हो तो प्रमाण सादर आमंत्रित हैं. कोई भी धर्म-शास्त्र /वेद/पुराण (यहां केवल हिंदू सामाजिक व्यवस्था के लिये तय नियमों की चर्चा की जा रही है अन्य किसी से प्रमाण विषयांतरित होगा ) किसी को जीवन की मूल ज़रूरतों से विमुख नहीं करता.
       परिवार में मेरे चचेरे भाई के जन्म के समय जेठानियों की मर्यादा का पालन करते हुए मां ने नवज़ात शिशु को स्तन पान विरोध कर रही जेठानियों को बातों में उलझा कर करवाया घटना का ज़िक्र ज़रूरी इस लिये है कि सकारात्मक-परिवर्तनों के लिये सधी सोच की ज़रूरत होती है. काम तो सहज सम्भव हैं. 
    मृत्यु के संदर्भ में मां ने अवसान के एक माह पूर्व परिवार को सूचित किया कि मेरी मृत्यु के बाद घर में चावत का प्रतिषेध नहीं होगा. मेरी पोतियां चावल बिना परेशान रहेंगी. उनके अवसान के बाद प्रथम दिन जब हमारी बेटियों के लिये चावल पकाये गए तो कुछ विरोध हुआ तब इस बात का खुलासा हम सभी ने सव्यसाची  मांअंतिम इच्छा के रूप में किया. 
The Blind SideDecision Points    यहां आपको एक उदाहरण देना ज़रूरी है कि भारतीय धर्म- आधारित सामाजिक व्यवस्था में आस्था हेतु प्रगट  की जाने वाली ईश्वर-भक्ति के  तरीकों में जहां एक ओर कठोर तप,जप,अनुष्ठान आदि को स्थान दिया है वहीं नवदा-भक्ति को भी स्थान प्राप्त है. यहां तक कि "मानस-पूजा" भी प्रमुखता से स्वीकार्य कर ली गई है.   आप में से अधिकांश लोग इस से परिचित हैं 
"रत्नै कल्पित मासनम 
हिम-जलयै स्नान....च दिव्याम्बरम ना रत्न विभूषितम ."
              अर्थात भाव पूर्ण आराधना जिसे पूरे मनोयोग से पूर्ण किया जा सकता है क्योंकि इस आराधना में भक्त ईश्वर से अथवा किसी प्रकोप भयभीत होकर शरण में नहीं होता बल्कि नि:स्वार्थ भाव से भोले बच्चे की तरह आस्था व्य्क्त कर रहा होता है. 
                         जीवन के सोलहों संस्कारों में वेदों पुराणों का हस्तक्षेप न्यूनतम है. जिसका लाभ उठाते हुए समकालीन परिस्थितियों के आधार पर अंतर्नियम बनाए जाने की छूट को भारतीय धर्मशास्त्र बाधित नहीं करते . मेरे मतानुसार  सबसे लचीली है भारत की धर्मोन्मुख सनातन सामाजिक व्यवस्था
वेद और पुराण /अभिव्यक्ति पर एक महत्वपूर्ण-जानकारी :- विरासत बना ऋग्वेद
 

बुधवार, दिसंबर 03, 2008

सही साधा सटीक इरादा ज़ाहिर किया है सरकार

भारत के वीर सपूतों को आखिरी-अभिवादन के साथ मित्रो भारत को पाकिस्तान के साथ कठोर बयान जारी करने के अलावा इन बिन्दुओं पर भी विचार करना है हमें
# पाकिस्तान के साथ सांस्कृतिक/साहित्यिक/आर्थिक संबंधों पर तुरंत ही समाप्त कर दी जाएँ
# स्टार प्लस सोनी जी टी वी इस देश के कलाकारों को लेकर बनने वाले रियलिटी शो से उन कलाकारों को बिदा कर देना चाहिए
# इमरान खान जैसे क्रिकेटर'स के विज्ञापन दिखाना बंद किया जाए
भारत सरकार के नए विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी का ताज़ा बयान स्पष्ट करता है कि देश की अस्मिता को अब चुनौती देना आसान कदापि नहीं है। सही साधा सटीक इरादा ज़ाहिर किया है सरकार नें इस मसले पर सभी की एक धारणा एक संकल्प होना चाहिए ।
ताकि कड़ाई जारी रहे. आतंक और आतंकी सपोलों को विश्व के मानचित्र से समाप्त कराने के लिए सबसे अहम् बात ये होगी कि -
" नकारात्मक विचार और विचार धाराएँ सख्ती से समाप्त किए जाएँ "
भारत ही विश्व को ज़रूरत है सर्वत्र शान्ति की ताकि उत्कृष्टता के साथ मानवीय विकास के परिणाम लाए जा सकें . यहाँ स्पष्ट करदेना चाहता हूँ की सनातन व्यवस्था में सर्वे जना: सुखाना भवन्तु का संदेश सदियों से है.... सभी धर्मों का आधार-भूत संदेश भी यही है

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