ललित जी का पिटारा खुल गया और हम सी एम साब से न बतिया पाए
शाम के अखबार के आन लाइन एडीसन पी डी एफ़ हो अथवा सरकारी वेब साईट या पाबला भैया का ब्लाग आज़ सिर्फ़ ललित शर्मा जी के हिन्दी पोर्टल पर ही चर्चिया रहे है. खबर तो हम भी बज़्ज़ पे छैप दिये थे पर लगा दादा नाराज़ हो गये तो हमारे थोबड़े का शिल्प कर्म न कर दें कहीं. पर भैया ऐसे नहीं हैं मेरे मित्र इधर से रास्ता है जी तीन भागों में विभक्त पोर्टल का कलेवर सामान्य एवम ललित भाई की मनोभावनाओं को उजागर कर रहा है . हिन्दी का यह पोर्टल किसी फ़ैंटेसी को नहीं जन्मता बल्कि सामान्य सी बातों को आगे लाने की कोशिश करता है जो अनदेखी किंतु ज़रूरी है Home शुभेच्छु आमुख एक राज़ की बात बताऊं गूगल खोज सन्दूक में यह तीसरे स्थान पर है जबकि इसका उदघाटन अभी कुछ घण्टों पहले हुआ है. ललित भाई कहते हैं ”भाई आज़ फ़ोन काहे बन्द था ?” मैं:- ”असल में कोर्ट में