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कुछ समझ नहीं आता, शहर है कि सहरा है.. कहने वाला गूंगा है, सुनने वाला बहरा है..!!

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समूचे भारत को हालिया खबरों ने एक अजीब सी स्थिति में डाल दिया.कल से दिल-ओ-दिमाग पर एक अज़ीब सी सनसनी तारी है.कलम उठाए नहीं ऊठ रही  नि:शब्द हूं.. !      जब भी लिखने बैठता हूं सोचता हूं क्यों लिखूं मेरे लिखने का असर होगा. मेरे ज़ेहन में बचपन से चस्पा पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी  जी बार बार आते हैं और मैं उनसे पूछता हूं-"गुरु जी, क्यों  लिखूं " कई दिनों से ये सवाल उनसे पूछता पर वे कभी कुछ  न बताते . हम साहित्यकारों के अपने अपने वर्चुअल-विश्व होते है. बेशक  जब हम लिखते हैं तो टाल्स्टाय से लेकर शहर के किसी भी साहित्यकार से वार्ता कर लेते हैं.. जिनकी किताबें हम पढ़ चुके होते हैं. अथवा आभासी  संसार को देखते हैं तीसरा पक्ष बन कर हां बिलकुल उस तीक्ष्ण-दर्शी चील की तरह उस  आभासी  संसार  ऊपर उड़ते हुये . रात तो हमारे लिये रोज़िन्ना अनोखे मौके लाती है लिखने लिखाने के . पर बैचेनी थी कि पिछले तीन दिन हो गये एक हर्फ़ न लिखा गया.. न तो दिल्ली पर न सिवनी  (मध्य-प्रदेश) पर ही. क्या फ़र्क पड़ेगा मेरे लिखने से  सो  पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी   जी  आज़ जब हमने पूछ ही लिया :- गुरु जी, क्यों  लिखू

अपराजेय योद्धा डॉ. भीमराव अंबेडकर: सुनीता दुबे

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भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार, दलितों के मुक्ति संग्राम के अपराजेय योद्धा, भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 120 वर्ष पूर्व 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के इंदौर के पास महू में हुआ था। दलित चेतना के अग्रदूत बाबा साहेब अम्बेडकर ने वर्ण-व्यवस्था के दुष्चक्र में फंसे भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से को दशकों पूर्व जिस तरह आत्मसम्मान की राह दिखाई वह आज अपने मुकम्मल पड़ाव पर पहुंचने को आतुर है। इस युगदृष्टा ने अपनी गहरी विश्लेषणात्मक दृष्टि और स्वानुभूत पीड़ा के मेल से जो बल हजारों वर्षों से दलित-दमित जातियों को दिया वह एक युग प्रवर्तक ही कर सकता है।  मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा के अनुपालन में मध्यप्रदेश शासन द्वारा अपने इस गौरवशाली सपूत की जन्म स्थली अम्बेडकर नगर (महू) में बने स्मारक पर प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। इसमें देश-प्रदेश के मूर्धन्य व्यक्तियों सहित तकरीबन एक लाख लोग भाग लेते हैं। वर्ष 2007 से आयोजित इस महापर्व के लिये राज्य शासन द्वारा व्यापक प्रबंध किये जाते हैं। यहां मकराना के सफेद संगमरमर एवं मंगलुरु के ग्रेनाइट से न

हजारीलाल के डरावने सपने आने लगे करोड़ी को (भाग दो)

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अब तक आपने पढ़ा      सेठ करोड़ी मल के कारखाने में जो भी कुछ बनता बाज़ार जाता गांधी छाप रुपए की शक्ल में वापस आता. तिजोरी में फ़िर बैंक में बेनामी खातों में... फ़िर और जब सेठ करोढ़ी मल सौ करोड़ी हुए तो क्या था स्विस बैंक के बारे में ब्रह्म-ज्ञान मिला. सो भाई उधरईच्च निकस गये. उधर हज़ारी की को भी बहुत दिनों से कोई खास काम न था सो आराम का जीवन ज़ारी था. कि  अचानक एक दिन हजारीलाल को का सूझी कै बो बस करोड़ी के पीछे लग गिया.   करोड़ी बोला:-"भई, कोई रोको उसे..?"   रोकता कौन  कैसे.... उसे... दरबार में भी हज़ारी लाल की ही सुनाई हुई. फ़रमान आया. सबने एक दूसरे का मुंह मिठाया और का बस सब अपने अपने घर को निकस गये. करोड़ी लाल की सांसें फ़ूल रहीं हैं कि इब का होगा . हजारी जीत गिया उसके पास ताक़त है फ़िर मन इच्च मन बोला :-"दिल्ली दूर है.. देखतें हैं"       बड़ी मुश्किल से एक दिन बीता हता कि भैया रात करोड़ी मल उस सपने के बाद सो न पाया.... उस सपने के बाद . अब आगे आ जब राजा ( ए राजा नहीं  जे वाले राजा ) ने एक रुक्का भेजे तो पता चला कि अगस्त की पंद्रा तारीख तक लोकपाल से डरने की ज़रू

हजारीलाल के डरावने सपने आने लगे करोड़ी को

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काजल भाई के  कार्टून बैंक से चुरा के लाया गया है                                 सेठ करोड़ी मल के कारखाने में जो भी कुछ बनता बाज़ार जाता गांधी छाप रुपए की शक्ल में वापस आता. तिजोरी में फ़िर बैंक में बेनामी खातों में... फ़िर और जब सेठ करोढ़ी मल सौ करोड़ी हुए तो क्या था स्विस बैंक के बारे में ब्रह्म-ज्ञान मिला. सो भाई उधरईच्च निकस गये. उधर हज़ारी की को भी बहुत दिनों से कोई खास काम न था सो आराम का जीवन ज़ारी था. कि  अचानक एक दिन हजारीलाल को का सूझी कै बो बस करोड़ी के पीछे लग गिया.   करोड़ी बोला:-"भई, कोई रोको उसे..?"   रोकता कौन  कैसे.... उसे... दरबार में भी हज़ारी लाल की ही सुनाई हुई. फ़रमान आया. सबने एक दूसरे का मुंह मिठाया और का बस सब अपने अपने घर को निकस गये. करोड़ी लाल की सांसें फ़ूल रहीं हैं कि इब का होगा . हजारी जीत गिया उसके पास ताक़त है फ़िर मन इच्च मन बोला :-"दिल्ली दूर है.. देखतें हैं"       बड़ी मुश्किल से एक दिन बीता हता कि भैया रात करोड़ी मल उस सपने के बाद सो न पाया.... उस सपने के बाद  क्या था उसका भयानक सपना सो बतातें है एक ब्रेक के बाद यानी कल न भाई