कुछ समझ नहीं आता, शहर है कि सहरा है.. कहने वाला गूंगा है, सुनने वाला बहरा है..!!
समूचे भारत को हालिया खबरों ने एक अजीब सी स्थिति में डाल दिया.कल से दिल-ओ-दिमाग पर एक अज़ीब सी सनसनी तारी है.कलम उठाए नहीं ऊठ रही नि:शब्द हूं.. ! जब भी लिखने बैठता हूं सोचता हूं क्यों लिखूं मेरे लिखने का असर होगा. मेरे ज़ेहन में बचपन से चस्पा पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी जी बार बार आते हैं और मैं उनसे पूछता हूं-"गुरु जी, क्यों लिखूं " कई दिनों से ये सवाल उनसे पूछता पर वे कभी कुछ न बताते . हम साहित्यकारों के अपने अपने वर्चुअल-विश्व होते है. बेशक जब हम लिखते हैं तो टाल्स्टाय से लेकर शहर के किसी भी साहित्यकार से वार्ता कर लेते हैं.. जिनकी किताबें हम पढ़ चुके होते हैं. अथवा आभासी संसार को देखते हैं तीसरा पक्ष बन कर हां बिलकुल उस तीक्ष्ण-दर्शी चील की तरह उस आभासी संसार ऊपर उड़ते हुये . रात तो हमारे लिये रोज़िन्ना अनोखे मौके लाती है लिखने लिखाने के . पर बैचेनी थी कि पिछले तीन दिन हो गये एक हर्फ़ न लिखा गया.. न तो दिल्ली पर न सिवनी (मध्य-प्रदेश) पर ही. क्या फ़र्क पड़ेगा मेरे लिखने से सो पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी जी आज़ जब हमने पूछ ही लिया :- गुरु जी, क्यों लिखू