जी
उसे नहीं चाहिये
उसने कब
मांगी है तुमसे मुक्ति
वो
सदा चाहती है बंधन
बनाए रखती है अनुशासन..
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वो जो नाव है
पार कराती है धाराएं
कभी पतवार बन
खुद को खेती है
वो क्या है क्या नहीं है
तुम क्या जानो
मत लगायो कयास
मत करो
उसे संज्ञा देने का प्रयास
वो वो है
जिसकी वज़ह से तुम मैं हम सब हैं