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हर मोड़ औ’ नुक्कड़ पे ग़ालिब चचा मिले

हर मोड़ औ ’ नुक्कड़ पे ग़ालिब चचा मिले ग़ालिब की शायरी का असर देखिये ज़नाब ************* कब से खड़ा हूं ज़ख्मी-ज़िगर हाथ में लिये सब आए तू न आया , मुलाक़ात के लिये ! तेरे दिये ज़ख्मों को तेरा इं तज़ार है – वो हैं हरे तुझसे सवालत के लिये ! ************* उजाले उनकी यादों के हमें सोने नहीं देते. सुर-उम्मीद के तकिये भिगोने भी नहीं देते. उनकी प्रीत में बदनाम गलियों में कूचों में- भीड़ में खोना नामुमकिन लोग खोने ही नहीं देते. ************* जेब से रेज़गारी जिस तरह गिरती है सड़कों पे तुमसे प्यार के चर्चे कुछ यूं ही खनकते हैं....!! कि बंधन तोड़कर अब आ भी जाओ हमसफ़र बनके   कितनी अंगुलियां उठतीं औ कितने हाथ उठते हैं.? **************** पूरे शहर को मेरी शिकायत सुना के आ मेरी हर ख़ता की अदावत निभा के आ ! हर शख़्स को मुंसिफ़ बना घरों को अदालतें – आ जब भी मेरे घर आ , रंजिश हटा के आ !!

वही क्यों कर सुलगती है ? वही क्यों कर झुलसती है ?

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वही  क्यों कर  सुलगती है     वही  क्यों कर  झुलसती  है  ? रात-दिन काम कर खटती, फ़िर भी नित हुलसती है . न खुल के रो सके न हंस सके पल –पल पे बंदिश है हमारे देश की नारी,  लिहाफ़ों में सुबगती  है ! वही तुम हो कि  जिसने नाम उसको आग दे  डाला वही हम हैं कि  जिनने  उसको हर इक काम दे डाला सदा शीतल ही रहती है  भीतर से सुलगती वो..!   कभी पूछो ज़रा खुद से वही क्यों कर झुलसती है. ? मुझे है याद मेरी मां ने मरते दम सम्हाला है. ये घर,ये द्वार,ये बैठक और ये जो देवाला  है ! छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए कभी   इक बार   सोचा था कि "बा" ही क्यों झुलसती है ? तपी वो और कुंदन की चमक हम सबको पहना दी पास उसके न थे-गहने  मेरी मां , खुद ही गहना थी ! तापसी थी मेरी मां ,नेह की सरिता थी वो अविरल उसी की याद मे अक्सर  मेरी   आंखैं  छलकतीं हैं. विदा के वक्त बहनों ने पूजी कोख   माता की छांह आंचल की पाने जन्म लेता विधाता भी मेरी जसुदा तेरा कान्हा तड़पता याद में तेरी उसी की दी हुई धड़कन इस दिल में धड़कती है . आज़ की रात फ़िर जागा  उसी की याद में

ज्ञान दत्त जी का पोस्ट ... विषय चुकने का आभास दे गई