हर मोड़ औ’ नुक्कड़ पे ग़ालिब चचा मिले
हर मोड़ औ ’ नुक्कड़ पे ग़ालिब चचा मिले ग़ालिब की शायरी का असर देखिये ज़नाब ************* कब से खड़ा हूं ज़ख्मी-ज़िगर हाथ में लिये सब आए तू न आया , मुलाक़ात के लिये ! तेरे दिये ज़ख्मों को तेरा इं तज़ार है – वो हैं हरे तुझसे सवालत के लिये ! ************* उजाले उनकी यादों के हमें सोने नहीं देते. सुर-उम्मीद के तकिये भिगोने भी नहीं देते. उनकी प्रीत में बदनाम गलियों में कूचों में- भीड़ में खोना नामुमकिन लोग खोने ही नहीं देते. ************* जेब से रेज़गारी जिस तरह गिरती है सड़कों पे तुमसे प्यार के चर्चे कुछ यूं ही खनकते हैं....!! कि बंधन तोड़कर अब आ भी जाओ हमसफ़र बनके कितनी अंगुलियां उठतीं औ कितने हाथ उठते हैं.? **************** पूरे शहर को मेरी शिकायत सुना के आ मेरी हर ख़ता की अदावत निभा के आ ! हर शख़्स को मुंसिफ़ बना घरों को अदालतें – आ जब भी मेरे घर आ , रंजिश हटा के आ !!