संस्थानों के दीमक : सरकारी कर्मचारी ज़रूर पढ़ें..
साभार: इंडिया रीयल टाइम हो सकता है कि किसी के दिल में चोट लगे शायद कोई नाराज़ भी हो जाए इसे पढ़कर ये भी सम्भव है कि एकाध समझेगा मेरी बात को.वैसे मुझे मालूम है अधिसंख्यक लोग मुझसे असमत हैं रहें आएं मुझे अब इस बात की परवाह कदाचित नहीं है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का सही वक्त पर सटीक स्तेमाल कर रहा हूं. मुझे अच्छी तरह याद है बड़े उत्साह और उमंग से एक महकमें या संस्थान में तैनात हुआ युवा जब ऊलज़लूल वातावरण देखता है तो सन्न रह जाता है सहकर्मियों के कांईंयापन को देख कर . इसमें उस नेतृत्व करने वाले का भी उल्लेख करूंगा जो चापलूसी और चमचागिरी करने वालों से घिरा रहने वाला "बास" भी शामिल होता है. मुझे मालूम है कि नया नया कर्मी बेशक एक साफ़ पन्ने की तरह होता है जब वो संगठन में आता है लेकिन मौज़ूदा हालात उसे व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा बना देते हैं. एक स्थिति जो अक्सर देखी जा सकती है नव प्रवेशी पर कुछ सहकर्मी अनाधिकृत रूप उस पर डोरे डालते हैं अपनापा की नकली शहद चटाते हुए उसे अपनी गिरफ़्त में लेने की