अफगानी तालिबान को बुद्ध याद आए ...!
साभार गूगल फोटो मुल्ला उमर अब एक इतिहास बन कयामत के फैसले का इंतज़ार कर रहा है, उधर तालिबान कुछेक पुराने कामों पर पुनर्विचार कर रहा है. इस क्रम में 5वीं सदी में बने बामियान के बुद्ध इनको याद आ रहे हैं हैं. बामियान में दो बुद्ध मूर्तियाँ 2001 तक मोजूद थीं. मूर्तियों में पहली बड़ी मूर्ती 55 फीट जिसे सलसल कहा गया तथा दूसरी मूर्ती समामा जो 37 फीट की थी. इन पहाड़ियों में अनेकों गुफाएं हैं जिनका उपयोग यात्री गण (व्यापारी एवं बौद्ध भिक्षुक तथा अन्य लोग ) आश्रय स्थल के रूप में करते थे. इससे पहले कि हम इस विषय पर कुछ बात करें सबसे पहले बुद्ध का बामियान से सम्बन्ध कैसे बना इस इतिहास पर एक दृष्टि डालते हैं. *बामियान में बुद्ध प्रतिमाओं का इतिहास* माना जाता है कि सिल्क रोड जिसकी लम्बाई 65000 किलोमीटर है का निर्माण 130 ईसा पूर्व किया गया था. यह मार्ग चीन से भारत होते हुए अफगानस्तान, ईरान(बैक्ट्रिया जिसे बाख़्तर या तुषारिस्तान , तुख़ारिस्तान और तुचारिस्तान भी कहा गया है ) , तुर्की होते हुए यूरोप पहुंचता है. इस मार्ग का निर्माण किसने कराया इस की पुष्टि हेतु कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है