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मंगलवार, जनवरी 18, 2011

भारतीय पुलिस : और जन सामान्य



          पुलिस के प्रति नकारात्मक भाव एक चिंताजनक स्थिति है इस पर ज़रुरत है खुले दिमाग से चिन्तन की 
भारी पुलिस पर लगे आरोपों पर एक नज़र डालें
(एक ):-संदेह को सत्य समझ के न्यायाधीश बनने का ज्ञान का इंजेक्शन हमारी ."पुलिस " को भर्ती के दौरान ही लगा दिया जाता है न्यायाधीशों तक के अधिकारों अतिक्रमण का सफ़ाई से करने का हुनर केवल में है. ..  सामाजिक आचरण के अनुपालन कराने के लिए,पुलिस को न्यायाधीश के अधिकार तक पहुंचने की चाहत पर अंकुश लगाये..जाने आवश्यक हैं 
(दो) :-भारतीय पुलिस सबसे भ्रष्ट पुलिस है. भारतीय पुलिस का आदमी "संरक्षक " नहीं गुण्डा और लुटेरा होता है. उसमें सम्वेदनाएं नहीं होतीं.हीन नहीं. 
(तीन):- भारतीय पुलिस में   नैतिकता का अभाव है. (चार):-कानूनों का उल्लंघन करना उसकी मूल आदत  है .  
              इस तरह से पुलिस की नैगेटिव छवि का जन मानस में सामान्य रूप से अंकित है लोग उसे अपनी पुलिस नहीं मानते . यह स्थिति  के लिए देश के लिए चिंतनीय है , यहाँ मेरी राय है कि सामाजिक-मुद्दों के लिए बने कानूनों के अनुपालन के लिए पुलिस को न सौंपा जाए बल्कि पुलिस इन मामलों के निपटारे के लिए विशेष रूप से स्थापित संस्थाओं को सौंपा जाए । सामाजिक-मुद्दों के लिए बने कानूनों के अनुपालन के लिए पुलिस को न सौंपा जाए बल्कि पुलिस इन मामलों के निपटारे के लिए विशेष रूप से स्थापित संस्थाओं को सौंपा जाए केवल दुर्दांत एवं गंभीर किस्म के अपराधों / अपराधियों से  निपटने ,कानून व्यवस्था , आदि सहित उन विषयों तक पुलिस की भूमिका तय कर दी जावे जहाँ उस फ़ोर्स (ताक़त) की ज़रुरत हो . उन सामाजिक -मसलों पर जहाँ काउंसलिंग की ज़रुरत है  पुलिस का हस्तक्षेप न हो. पारिवारिक मसलों पर तो कदापि नहीं .
" इधर भी गौर करें " पुलिस को लेकर सामाजिक सोच नेगेटिव होने के कारण जग ज़ाहिर हैं
कभी आपने पुलिस वालो के जीवन पर गौर किया होगा तो आप पाया ही होगा व्यक्तिगत-पारिवारिक जीवन कितना कठिनाइयों भरा होता है . सोचिए जब बेटी के साथ ,मुस्कुराने का वक्त हो तब उनको वी आई पी ड्यूटी में लगे होना हो,पिता बीमार हैं और सिपाही बेटा नौकरी बजा रहा हो ,या होली,दीवाली,ईद,दीवाली,इन सब को दूर से देखने वाले पुलिस मेन की संवेदना हरण होना अवश्यम्भावी है. चलिए सिर्फ़ पुलिस की आलोचना करने के साथ साथ व्यवस्था में सुधार के लिए चर्चा कर उनको संवेदनशील, ईमानदार,ज़बावदार,बनाने सटीक सुझाव दें, कोई तो कभी तो सुनेगा ही । पुलिसवालों के व्यक्तिगत  जीवन के लिए मेरी सोच  पूर्वाग्रही नहीं है. उनकी स्थिति जो मैंने,उन दिनों देखी थी जब मैं लार्डगंज पुलिस-कालोनी में बच्चों को ट्यूशन पढाता था बहुत करीब से इनको देखा था तब आँखें भर आया करतीं थीं . आप भी इसे देख सकतें हैं आज भी कमोबेश दशा वही है आज भी ।
भाई समीर यादव की पोस्ट "शहीद पुलिस "से प्रेरित हुआ हूँ और संग साथ हैं बीते दिनों की यादें जिन दिनों बेरोज़गारी के दौर में ट्यूशन पढाता मैं लार्डगंज जबलपुर के वाशिंदे पुलिस वालों के बच्चों को जिनमें से अधिकाँश अच्छी नौकरियों में अब मिलते हैं कभी कभार मुझे  नमस्ते मामाजी के नज़दीकी संबोधन के साथ संबोधन सहित तब  मन अभीभूत हो जाता है

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