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रविवार, अक्टूबर 19, 2008

पड़ोसी के घर की गन्दगी

(फोटो:साभार गूगल )

(यह बोध कथा मेरी लिखी तो नहीं है पर जिसने भी लिखी है ज़बदस्त लिखी है कल ही मेरे घर सत्य साईं सेवा समिति के स्टडी-सर्कल में मेरे मित्र अविजय ने उदाहरण के तौर पर अपने वक्तव्य में कोड की जो आपके लिए सादर पोस्ट कर रहा हूँ रोचक बनाने के लिए कुछ हेरा फेरी कर रहा हूँ )
एक से दूसरे घर मुंबई में इतने करीब होते हैं कि उनमें तांक-झाँख को कोई रोके सम्भव नहीं . दीपाली के पति मुंबई में पोस्टेड हुए . पोस्टिंग क्या शादी के तुंरत बाद की ऐसी पोस्टिंग बहुधा लंबे हनीमून का रस देती है.फुर्सत में दीपाली को समझ नहीं आता कि वो करे तो करे क्या ? पति सुदेश के ऑफिस जाते ही फुल टाइम बोरियत से बचने थोडी देर टी वी देखना,फ़िल्म लगा लेना,अखबार पढ़ना, धीरे-धीरे उसे उबाऊ लगाने लगे ये काम . एक दिन रेशमी परदा खोलते ही पास वाली सोसायटी के उस फ्लेट पर नज़र टिक गई जिसमें सब कुछ गंदा दिखा दीपाली को . अब रोज़ गंदे से फ्लेट की तांक-झाँक का क्रम जारी हो गया उस फ्लैट में , इस रोजिया कारोबार से दीपाली को मज़ा आने लगा . फ़िर उस घर की गन्दगी को चटकारे लगा के शाम सुदेश को सुनाना उसका नियमित कारोबार हो गया !
महीनों बीत गए एक दिन अचानक दीपाली के चेहरे की उदासी देख कर सुदेश बोले-"क्यों क्या हुआ भई..? हमसे कौन सी गुस्ताखी हो गयी जो आज आप उखड़ी हुईं हैं हमसे ?
"सुदेश,तुम बड़े गंदे हो,जो मेरी बात गंदे फ्लेट वालों तक पहुंचा ही दी न ?
"मैंने ?"
"हाँ,सुदेश तुम नहीं तो और कौन होगा........?
"दीप,मैं तो उनको जानता भी नहीं ?
"झूठे हो तुम...!देखो आज कितना सुंदर लग रहा है वो घर जो कल तक बेहद गंदा दिख रहा था ज़रूर आपने उनको कहा होगा"
हाँ,प्रिये मुझसे एक गलती ज़रूर हुई है इस मामले में ...? आज मैंने आपकी मदद करने अपनी खिड़की के शीशे साफ़ करे हैं शायद उसके कारण तुमको ...............!
पति की बात सुनकर किंकर्तव्यविमूढ़ सी दीपाली उस खिड़की को अपलक निहारने लगी जिससे पूनम का चाँद पूरी रोशनी भेज रहा था ।
[इस लिंक पर भी कथा उपलब्ध है:-ह्त्त्प://सव्यसाची.म्य्वेब्दुनिया.कॉम/2008/१०/१९/१२२४४०४८८००००.हटमल ]

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