भस्म आरती
अंतस में खौलता लावा चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन धैर्य की सरेस से चिपका तुम से मिलता हूँ ....!! तब जब तुम्हारी बातों की सुई मेरे भाव मनकों के छेदती तब रिसने लगती है अंतस पीर भीतर की आग – तब पीढ़ा का ईंधन पाकर तब युवा हो जाता है यकायक “लावा” तब अचानक ज़ेहन में या सच में सामने आते हो तब चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन धैर्य की सरेस से चिपका तुम से मिलता हूँ ....!! मुस्कुराकर ....... अक्सर ......... मुझे ग़मगीन न देख तुम धधकते हो अंतस से पर तुम्हें नहीं आता – चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन धैर्य की सरेस से चिपकाना ....!! तुममें –मुझसे बस यही अलहदा है . तुम आक्रामक होते हो मैं मूर्खों की तरह टकटकी लगा अपलक तुमको निहारता हूँ ... और तुम तुम हो वही करते हो जो मैं चाहता हूँ ...... धधक- धधक कर खुद राख हो जाते हो फूंक कर मैं ........ फिर उड़ा देता हूँ ......... तुम्हारी राख को अपने दिलो-दिमाग से हटा देता हूँ तुम्हारी देह-भस्म जो काबिल नहीं होती गिरीश की भस्म आरती के ... # गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”