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शनिवार, सितंबर 13, 2008

रोको उसे वो सच बोल रहा है


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इस नोटिस को देख कर मुझे लग रहा है आजाद भारत में सिर्फ़ सत्य कहना अपराध है ....?

जी हाँ वेब दुनियाँ के इस यू आर एल =>http://savysachi.mywebdunia.com/2008/09/12/1221160980000.html , पर पोस्ट किए गए आलेख -"राज़ ठाकरे जी "सादर-अभिवादन" " जो मेरे सव्यसाची ब्लॉग पर प्रकाशित है ..... किसी ने सच ही कहा है

"उसे रोको वो सच बोल रहा है,कुछ पुख्ता मकानों की छतें खोल रहा है

अगर माफी मागने और अपनी पोस्ट हटाने में इस देश का कोई भला हो रहा है तो मैं तुरंत ही माफ़ी मांग लूंगा , अभी तो मेरा दिमाग इस गुमान में है कि रोको इस आग को... के आव्हान को वैचारिक सहयोग दे सकूं .यदि एक भारतीय को सच बोलने का अधिकार नहीं हो तो .......? फ़िर उसे क्या करना चाहिए ....मेरी समझ से परे है।

मुझे तो लग रहा है गोया मित्र आस्तीन के साँपों को भी सूंघ गए साँप

शुक्रवार, सितंबर 12, 2008

राज़ ठाकरे जी, सादर अभिवादन

आप के दिमाग में हिन्दी के लिए जो ज़हर भरा है उसके लिए हम आपको साफ़ तौर पर बता देना उचित समझतें हैं कि-"भारत-माता की छवि आप जैसे महानुभावों की वज़ह से विश्व में कितनी ख़राब हो रही है उसका अंदाज़ आपको नहीं है "भारत की महान धरती पर आप जैसों की नकारात्मक विचार धारा कितने दु:खद पलों को जन्म दे रही है इसका अंदाज़ आपको नहीं हैं राज जी मराठी मानस और शेष भारत के मानस में आप कोई फर्क कैसे कर सकतें हैं ? यह हक आपको किस ने दिया ये आम भारतीय सोच रहा है.साफ़ तौर पर आप को समझना ज़रूरी है कि भारत की अखण्डता पे किसी की भी उद्दंडता का दीर्घ प्रभाव नहीं होता,सम्पूर्ण सकारात्मकता की पुख्ता बुनियाद पर बनी "भारतीयता" किसी भी एक भाषा,जाति,रंग,वर्ण,से सदा ही अप्रभावित रहती है ,
आप जिस देश में रहतें हैं वो भारत है जो शिवाजी का देश है जो लक्ष्मी बाई ,दुर्गावती,तुलसी,कबीर,मीरा का देश है यहाँ का गांधी,आज भी विश्व को एक चिंतन देता है, यहाँ का दीनदयाल आज भी अन्त्योदय का माइल-स्टोन बन गया,यहाँ गालिब,दादू,ज्ञानेश्वर,नानक जैसों ने बिना ख़बर रटाऊ चैनल'स के सामने आए गाँव गाँव तक अंगूठा छाप किसान,मजूरों के दिल में ज़गह बना ली .............ये भारत ऐसे सकारात्मक ऊर्जा वानों का भारत है न कि किसी एक प्रदेश,यथा तमिलनाडु, महाराष्ट्र,बिहार,गुजरात,उत्तरांचल,आदि ,प्रदेशों का ..............मित्र मेरा भारत आपकी भाषाई राजनीति का शिकार हो यह कोई भी कब तक और कैसे सहेगा . आपको ईश्वर साद-बुद्धि दे , आप हिन्दी भाषियों से जितना विद्वेष रूपी ज़हर रखना चाहें रखें भारतीय औदार्य आपको एक सीमा तक क्षमा करेगा वरना इस देश के संविधान में सारी व्यवस्थाएं हैं , जिसने आप को अपनी वाणी से विचार व्यक्त करने की अनुमति दी है न कि ज़हर उगलने की, फ़िर आप तो महाराष्ट्र के विद्वान वक्ता हैं ये जानते ही होंगें कि ज़हर किस प्राणी की किस ग्रंथि में संचित रहता है . और कब तक "हाँ,तब तक संचित रहता है जब तक किसी यायावर सपेरे की नज़र उस जीव पर नहीं जाती "


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