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पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआं,पण्डित भया न कोय ढाई आखर “अन्ना” का पढ़ा वो पण्डित होय !! | ||
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वो जिसने बदली फ़िज़ा यहां की उसी के सज़दे में सर झुका ये तू कितने सर अब क़लम करेगा, ये जो कटा तो वो इक उठा है *********************** तेरी हक़ीक़त तेरी तिज़ारत तेरी सियासत, तुझे मुबारक़-- नज़र में तेरी हैं हम जो तिनके,तो देख ले अब हमारी ताक़त !! कि पत्ता-पत्ता हवा चली है.. तू जा निकल जा बदन छिपा के !! वो जिसने बदली फ़िज़ा यहां की उसी के सज़दे में सर झुका ये *********************** थी तेरी साज़िश कि टुकड़े-टुकड़े हुआ था भारत, वही जुड़ा है तेरे तिलिस्मी भरम से बचके, हक़ीक़तों की तरफ़ मुड़ा है....!! अब आगे आके तू सर झुक़ा ले..या आख़िरी तू रज़ा बता दे ..? *********************** ये जो हक़ीक़त का कारवां हैं,तेरी मुसीबत का आसमां है कि अपनी सूरत संवार आके, हमारे हाथों में आईना है..! अग़रचे तुझमें नहीं है हिम्मत,तो घर चला जा..या मुंह छिपा ले ! *********************** |
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शुक्रवार, अगस्त 19, 2011
ढाई आखर “अन्ना” का पढ़ा वो पण्डित होय !!
सोमवार, अगस्त 15, 2011
लोकतंत्र को आलोक-तंत्र बनाने की कवायद
शनिवार, अप्रैल 23, 2011
बवाल के स्वरों में सुनिये गीत " कुछ झन झन झन था"
लुकमान चाचा |
बवाल हिंदवी यानी एक सम्पूर्ण कलाकार यानी एकदम पूरा का पूरा बवाल जब मंच पर आये तो समझिये लोग एक पल भी ऐसे बवाल से दूर न होने की क़सम खा लेते हैं. विनोबा-भावे ने जबलपुर को सैंत में न दिया ये नाम एक बानगी तो देखिये....
लाल और बवाल ब्लाग से साभार |
बवाल एक ऐसे उस्ताद का शागिर्द है जिनने उर्दू -कव्वाली कव्वाली से उर्दू का एकाधिकार समाप्त किया.हिंदी कविताओं गीतों को प्रवेश दिलाया था कवाली-शैली की गायकी में. बवाल के गुरु स्वर्गीय लुकमान जो गंधर्व से कम न थे. हम लोगों में गज़ब की दीवानगी थी चच्चा के लिये...देर रात तक उनको सुनना उनकी महफ़िल सजाना एक ज़ुनून था.. फ़िल्मी हल्के फ़ुल्के संगीत से निज़ात दिलाती चचा की महफ़िल की बात कैसे बयां करूं गूंगा हो गया हूं..गुड़ मुंह में लिये
आप सोच रहें हैं न कौन लुकमान कैसा लुकमान कहाँ का लुकमान जी हाँ इन सभी सवालों का ज़वाब उस दौर में लुकमान ने दे दिया था जब उनने पहली बार भरत-चरित गाया. और हाँ तब भी तब भी जब गाया होगा ''माटी की गागरिया '' या मस्त चला इस मस्ती से थोड़ी-थोड़ी मस्ती ले लो (आगे देखिये यहां चचा लुक़मान के बारे में)
शनिवार, मार्च 12, 2011
ललित जी डर के आगे जीत है भई ..!!
बताईये दबंग कौन..? |
हां | 7 (19%) |
नहीं | 8 (22%) |
क़दापि नहीं | 21 (58%) |
तटस्थ | 0 (0%) |
सोमवार, फ़रवरी 28, 2011
एक साथी एक सपना ...!!
एक साथी एक सपना साथ ले
हौसले संग भीड़ से संवाद के ।
०००००
हम चलें हैं हम चलेगे रोक सकते हों तो रोको
हथेली से तीर थामा क्या मिलेगा मीत सोचो ।
शब्द के ये सहज अनुनाद .. से .....!!
००००००
मन को तापस बना देने, लेके इक तारा चलूँ ।
फर्क क्या होगा जो मैं जीता या हारा चलूँ ......?
चकित हों शायद मेरे संवाद ... से ......!!
००००००
चलो अपनी एक अंगुल वेदना हम भूल जाएं.
वो दु:खी है,संवेदना का, गीत उसको सुना आएं
कोई टूटे न कभी संताप से ......!!
रविवार, अप्रैल 18, 2010
पारे की उछाल :बवाल हुये लाल
इसे इधर भी सुना जाये
शनिवार, दिसंबर 05, 2009
मन का पंछी / यू ट्यूब पर सुनिए
Man ka Panchhi मन का पंछी यू ट्यूब पर सुनिए
मन का पंछी खोजता ऊँचाइयाँ,
और ऊँची और ऊँची उड़ानों में व्यस्त हैं।
चेतना संवेदना, आवेश के संत्रास में,
गुमशुदा हैं- चीखों में अनुनाद में।
फ़लसफ़ों का किला भी तो ध्वस्त है।
मन का पंछी. . .
कब झुका कैसे झुका अज्ञात है,
हृदय केवल प्रीत का निष्णात है।
सुफ़ीयाना, इश्क में अल मस्त है-
मन का पंछी. . .
बाँध सकते हो तो बाँधो, रोकना चाहो तो रोको,
बँधा पंछी रुका पानी, मृत मिलेगा मीत सोचो
उसका साहस और जीवन इस तरह ही व्यक्त है।।
गुरुवार, अक्तूबर 15, 2009
काट लूं साले कुत्तों को और खबर बन जाऊं
उस दिन शहर के अखबार समाचार पत्रों में रंगा था समाचार मेरे विरुद्ध जन शिकायतों को लेकर हंगामा, श्रीमान क के नेतृत्व में आला अधिकारीयों को ज्ञापन सौंपा गया ?नाम सहित छपे इस समाचार से मैं हताशा से भर गए उन बेईमान मकसद परस्तों को अपने आप में कोस रहा था किंतु कुछ न कर सका राज़ दंड के भय से बेचारगी का जीवन ही मेरी नियति है.
एक दिन मैं एक पत्रकार मित्र से मिला और पेपर दिखाते हुए उससे निवेदन किया -भाई,संजय इस समाचार में केवल अमुक जी का व्यक्तिगत स्वार्थ आपको समझ नहीं आया ?
आया भाई साहब किंतु , मैं क्या करुँ पापी पेट रोटी का सवाल है जो गोल-गोल तभी फूलतीं हैं जब मैं अपने घर तनखा लेकर आता हूँ…..!
तो ठीक है ऐसा करो भइयाजी,मेरी इन-इन उपलब्धियों को प्रकाशित कर दो अपने लीडिंग अखबार में !
ये कहकर मैने अपनी उपलब्धियों को गिनाया जिनको सार्वजनिक करने से कल तक शर्माते था . उनकी बात सुन कर संजय ने कहा भैयाजी,आपको इन सब काम का वेतन मिलता है ,कोई अनोखी बात कहो जो तुमने सरकारी नौकर होकर कभी की हो ?
मैं -अनोखी बात…….?
संजय ने पूछा -अरे हाँ, जिस बात को लेकर आपको सरकार ने कोई इनाम वजीफा,तमगा वगैरा दिया हो….?
भाई,मेरी प्लान की हुई योजनाओं को सरकार ने लागू किया
संजय:-इस बात का प्रमाण,है कोई !
मैं:-……………..?
बोलो जी कोई प्रमाण है ?
नहीं न तो फ़िर क्या करुँ , कैसे आपकी तारीफ़ छापूं भैया जी न संजय तारीफ़ मत छापो मुझे सचाई उजागर करने दो आप मेरा वर्जन लेलो जी ये सम्भव नहीं है,मित्र,आप ऐसा करो कोई ज़बरदस्त काम करो फ़िर मैं आपके काम को प्राथमिकता से छाप दूंगा जबरदस्त काम …..?
गूगल जी से साभार
संजय :अरे भाई,कुत्ता आदमीं को काटता है कुत्ते की आदत है,ये कोई ख़बर है क्या ?,मित्र जब आदमी कुत्ते को काटे तो ख़बर बनातीं है .तुम ऐसा ही कुछ कर डालो यह घटना मेरे जीवन की अनोखी घटना थी जीवन का यही टर्निंग पाइंट था मैं निकल पडा कुत्तों की तलाश में . पग पग पर कुत्ते ही मिले सोचा काट लूं साले कुत्तों को और खबर बन जाऊं को किंतु मन बार बार सिर्फ़ एक ही बात कह रहा था "भई तुम तो आदमीयत मत तजो "
शनिवार, अक्तूबर 04, 2008
बन्दर और चश्मा
चाहे अनचाहे
जीने के लिऐ
जी हाँ इन्हीं साँसों के साथ
अंतस मे मिल जाती है
विषैली हवाओं में पल रहे विषाणु
उगा देते हैं शरीर में रोग
इसे विकास कहते हैं
जो जितना करीब है पर्यावरण से
उतना सुरक्षित है कम-अस-कम
बीमार देह लेकर नहीं मरता
पूरी उम्र मिलती है उसे
मान के सीने से चिपका बंदरिया का बेटा
कल मैंने उसे चूसते देखा है
"मुनगे की फली "
बेटी ने कहा :-"पापा,आज पिज्जा खाना है...!"
मैंने कहा :-"ज़रूर पर बताओ बन्दर का बेटा,
क्या खा रहा है ? "
झट जबाब मिला:-"मुनगा "
आप को पसंद नहीं है॥?
न
तो आपने मुझे चश्मा लगाए देखा है न ?
हाँ,पापा देखा है.....!पर ये सवाल क्यों..........?
मेरे अगले सवाल पे हंस पडी बिटिया
''बन्दर,को कभी चश्मा लगाऐ देखा बेटे...?''
पापा.ये कैसा सवाल है
बेटे,जो प्रकृति के जितना पास है उतना ही सुरक्षित है ।
इसका अर्थ बिटिया कब समझेगी
इस सच से बेखबर चल पङता हूँ ,
बाज़ार से पिज्जा लेने
[ कविता:मुकुल/चित्र:प्रीती]
रविवार, जुलाई 27, 2008
तुमको सोने का हार दिला दूँ
सुनो प्रिया मैं गाँव गया था
भईयाजी के साथ गया था
बनके मैं सौगात गया था
घर को हम दौनों ने मिलकर
दो भागों मैं बाँट लिया था
अपना हिस्सा छाँट लिया था
पटवारी को गाँव बुलाकर
सौ-सौ हथकंडे आजमाकर
खेत बराबर बांटे हमने
पुस्तैनी पीतल के बरतन
आपस मैं ही छांटे हमने
फ़िर खवास से ख़बर बताई
होगी खेत घर सबकी बिकवाई
अगले दिन सब बेच बांच के
हम लौटे इतिहास ताप के
हाथों में नोट हमारे
सपन भरे से नयन तुम्हारे
प्लाट कार सब आ जाएगी
मुनिया भी परिणी जाएगी
सिंटू की फीस की ख़ातिर
अब तंगी कैसे आएगी ?
अपने छोटे छोटे सपने
बाबूजी की मेहनत से पूरे
पतला खाके मोटा पहना
माँ ने कभी न पहना गहना
चलो घर में मैं खुशियाँ ला दूँ
तुमको सोने का हार दिला दूँ
=>गिरीश बिल्लोरे मुकुल
गुरुवार, मई 29, 2008
"गिद्ध रहें न रहें गिद्धियत शेष रहेगी...!!"
sachin sharma ने कहा 80 लाख थे, 10 हजार रह गए!भईया इनकी जनरेशन की अब कोई ज़रूरत नहीं हैं । आदम जात में इनकी प्रवृत्ति ज़िंदा रहेगी ही । मौत बनते राजमार्ग! भी सच है राज के रास्ते चलते लोगों की आत्म-सम्मान,संवेदना,ईमान,सब कुछ मर जाता है । ज़िंदा रहती है केवल लिप्सा । लाशों के ढेर पर "राज" निति की बुनियाद इक एतिहासिक सत्य है।
इब्ने-इन्साँ ने खूब कहा -
" अपनी ज़ुबां से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग,
तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का "
SUYOG PATHAK ने गया उदय प्रकश जी का गीत स्वयम में ब्रह्म का एहसास दिलाता है।
मंगलवार, अप्रैल 01, 2008
*KHAZANA*: "भेडाघाट के बच्चे"
अभी भी ५ रूपए के लिए धुआं धार में कूद जाते हैं । आप सिक्का फैंकिए वे उठा के लाते हैं.....?
रविवार, मार्च 23, 2008
शनिवार, मार्च 15, 2008
एक लघु कथा सा दृश्य
सच मुझे ईश्वर ने जीते जी अपने मरने का दु:ख सह सकने की ताकत न दी होती तो मैं उस बेचारे मूर्ख को भी आइना दिखा देता और होता ये कि -"मुझे नौकरी से हाथ धोना पङता , मेरे का बच्चों का स्कूल छूट जाता , मैं कोर्ट कचहरी के चक्कर में उलझ जाता । धीमे-धीमे मेरे करीब आता न्याय .... और ज़लालत से मिलाती निजात । लेकिन तब तक मैं दुनियाँ से बीस बरस पीछे चला जाता और आगे होती चाटूकारों की फौज सो मैं चुप हूँ ......... लेकिन उसको आइना तो दिखाना ही है... जो मुझे आइना दिखाता है !
कितनी वाहियाद जिन्दगी जीते हैं ये लोग जो सिरमौर होते हैं जो कितनी गंदी सोच लेकर पैदा किया होगा इनके माँ-बाप ने , बकौल मित्र प्रशांत कौरव :-"ये लोग शरीरों की रगड़ का रिज़ल्ट हैं।"
ये कुछ तनाव के कारण पैदा हुए लोग है ..... जो कभी भी तनाव बोने में पीछे नहीं हैं।
इनको तो जमा होना था तानाशाह के इर्द गिर्द ....?
देखिए हर कोई अपनी बाजीगरी के चक्कर में दूसरे की दुर्गति करता नज़र आ रहा है । ऊपर वालों के तलुए .... नीचे वालों को जूते के नोक पर रखिये इस दौर में ये धंधा खूब पनप रहा है..... सब जानते हैं । यदि कोई चाहे भी तो इससे निजात नहीं पा सकता ?
सोमवार, फ़रवरी 11, 2008
रविवार, फ़रवरी 10, 2008
प्रेमिका और पत्नी
प्रिया बसी है सांस में मादक नयन कमान
छब मन भाई,आपकी रूप भयो बलवान।
सौतन से प्रिय मिल गए,बचन भूल के सात
बिरहन को बैरी लगे,क्या दिन अरु का रात
प्रेमिल मंद फुहार से, टूट गयो बैराग,
सात बचन भी बिसर गए,मदन दिलाए हार ।
एक गीत नित प्रीत का,रचे कवि मन रोज,
प्रेम आधारी विश्व की , करते जोगी खोज । ।
तन मै जागी बासना,मन जोगी समुझाए-
चरण राम के रत रहो , जनम सफल हों जाए । ।
दधि मथ माखन काढ़ते,जे परगति के वीर,
बाक-बिलासी सब भए,लड़ें बिना शमशीर .
बांयें दाएं हाथ का , जुद्ध परस्पर होड़
पूंजी पति के सामने,खड़े जुगल कर जोड़
इस सप्ताह वसंत के अवसर पर मेरी भेंट स्वीकारिए
डॉ. गोपाल बाबू शर्मा
राजनारायण चौधरी
गिरीश बिल्लोरे मुकुल बस एक चटका लगाने की देर है॥
नीचे चटका लगा के मुझ से मिलिए
गिरीश बिल्लोरे ''मुकुल''
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