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लिव-इन रिश्ते बनाने से पहले अपने कल के बारे में अवश्य सोचिये

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       अपने कल के बारे में अवश्य सोचिये            डाक्टर शालिनी कौशिक का   एक आलेख लिव इन संबंधों के आगामी   परिणामों को लेकर एक खासी चिंता का बीजारोपण करता है. कारण साफ़ है कि   " वर्ज़नाओं के खिलाफ़ हम और हमारा शरीर एक जुट हो चुका है..!"   अर्थात हम सब अचानक नहीं पूरी तैयारी से वर्ज़नाओं के खिलाफ़ हो रहें हैं. हम अब प्रतिबंधों को समाप्त करने की ज़द्दो ज़हद में लगे हैं.   जिन प्रतिबंधों को हमें तोड़ना चाहिये उनसे इतर हम स्वयं पर केंद्रित होकर केवल कायिक मुद्दों पर सामाजिक व्यवस्था द्वारा लगाए प्रतिबंधों को तोड़ रहे हैं. निर्मुक्त हो परीमित न होने की उत्कंठा का होना सहज़ मानव प्रवृत्ति है.  इस उत्कंठा का स्वागत है. किंतु केवल शारीरिक संदर्भों में प्रतिबंधों का प्रतिकार करना अर्थात केवल विवाह-संस्था का विरोध करना तर्क सम्मत नहीं है.. न ही ग्राह्य है. यहां धर्म इसे गंधर्व विवाह कहता है तो हम इसे लिव-इन का नया नवेला नाम दे रहे हैं. बहुतेरे उदाहरण ऐसे भी हैं जिनका रहस्य ऐसे दाम्पत्य का रहस्योदघाटन तब करता है जब किसी एक का जीवन समाप्त हो खासकर उज़ागर भी तब ही होते हैं जब पिता  क