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एक मदालस शाम एक अप्रतिम वापसी

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गोधूलि के चित्र मत लेना.. किसी ने कहा था एक बार .... सूर्यास्त की तस्वीरें मत लेना ...क्यों ? किसी के कहने से क्या मैं डूबते सूरज का आभार न कहूं.. क्यों न कहूं.. एहसान फ़रामोश नहीं हूं..  अदभुत तस्वीरें देती एक शाम की जी हां  कल घर वापस आते वक़्त  इस अनोखी शाम ने....  मनमोहक और मदालस शाम ने  अप्रतिम सौंदर्यानुभूति करा दिया  रूमानियत से पोर पोर भर दिया .....!!   इस बीच मेरी नज़र पड़ी  एक मज़दूर घर वापस आता दिखा मैने पूछा - भाई किधर से आ रहे हो   उसने तपाक से ज़वाब दिया - घर जात हौं..!! घर जाने का उछाह गोया इस मज़दूर की मानिंद सूरज में भी है. तभी तो बादलों के शामियाने पर चढ़ कूंदता फ़ांदता पश्चिम की तरफ़ जा रहा है..  ये कोई शहरी बच्चा नहीं जो स्कूल से सीधा घर जाने में कतराता है.. सूरज है भाई.. उसे समय पर आना मालूम है.. समय पर जाना भी... जानता है..              महानगर का बच्चा नहीं है वो जिसका बचपन असमय ही छिन जाता है .. उसे मां के हाथों की सौंधी सौंधी रोटियां बुला रहीं है.. गुड़ की डली वाह.. मिर्च न भी लगे तो भी गुड़ के लिये झूठ मूट अम्मा मिर्ची बहुत है कह