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देश का कालाधन देश में : आर्थिक विमर्श 1

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करेंसी के बंद होने या कहें सरकार द्वारा बंद करने के बाद की परिस्थियां ऐसी क्यों हैं कि जनता कष्ट भोगने के बावजूद भी सरकार के साथ कड़ी है. ? ऐसा लगता है जनता को बेहद भरोसा है और  उम्मीद भी है कि सरकार का हर कदम जनोन्मुख है. सरकार की यह कोशिश आर्थिक विषमता को दूर करेगी. प्रथम दृष्टया दिख भी यही रहा है. अपने बिस्तर के नीचे नोट बिछा कर गर्वीली नींद सोने वालों के लिए- “मेरे प्यारे देशवाषियों” से प्रारम्भ होने वाला भाषण भयावह लग रहा होगा पर गरीब व्यक्ति निम्न और उच्च मध्यवर्ग का व्यक्ति दाल-रोटी के साथ  बिना सलाद खाए चैन की नींद सो रहा है.  चिल्लर के अभाव में  जाड़े के दिनों में मूली-अमरूद के सलाद का जुगाड़ जो नहीं हो पा रहा ... जब स्व. राजीव जी ने कहा था – “हम एक रुपये भेजते हैं आप तक पंद्रह पैसे पहुंचाते हैं तो बड़ा प्रभावित थी जनता तो एक दिन का उपवास भी तो रखा था स्व. शास्त्री जी की सलाह पर... !” यानी इस देश की जनता जब किसी को प्रधान-मंत्री जी बनाती है तो विश्वास की डोर से खुद-ब-खुद बांध जाती है उस व्यक्तित्व से ..! इसी तंतु के सहारे देश का प्रजातंत्र बेहद शक्तिशाली नज़र आता है. भ