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रविवार, अक्तूबर 31, 2010

प्रभाष जोशी जी ने कहा :- “.... अपना ईमान बेचा,”

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmQo2w9K7wgTmET_MSeyMSxuJ_lA4qLsd3wcrRAp8fHXhhgc-KtHYTAzY2eYvyGLLAav3N9CtGdB7rJqok8IQCPLQ3hIabj_yh8wLDzpK26jluo-PDmOde9ejU0duuRzJcS959f-yCjaQ/s320/fea5-1_1208628913_m.jpgअपने अंतर्मन की जिज्ञासा  को तृप्त करना चाहता है समाज  उसे चाहिये सकारात्मकता उसे चाहिये व्यापक दृष्टिकोण उसे चाहिये सार्थक नज़रिया. कोई भी यह करने तैयार है तो आगे आये आज एक खबरी चैनल ने अभिषेक- ऐशवर्या  के दाम्पत्य जीवन पर एक खबर प्रसारित की जिसमें पति-प्त्नि के बीच के मन मुटाव को सरे बाज़ार कर दिया. यदि यही है पत्रकारिता तो  अब बस और नहीं इस का अवसान ज़रूरी है  खत्म कर दो ये रवैया वरना ये दुनियां में इतनी नकारात्मकता हो जावेगी कि खुद तुम्हारा जीना और  सांस लेना दूभर हो जाएगा.देश वासियो ये तो उदाहरण मात्र था सर्वत्र  सबसे पहले हमें इस तरह की नकारत्मक्ता को नियंत्रित करना ही होगा.  प्रज़ातंत्र के चारों स्तम्भ  नेगेटिविटी की गिरफ़्त में आ जाएं तो प्रजातन्त्र की समीक्षा अत्यावश्यक हो जाती है.. लोक कल्याणकारी राष्ट्र की कल्पना करते हुए शहीदों ने ये तो न सोचा था न .सेक्स,विवाहेत्तर-संबंध,फ़िल्म,गाशिप, राजनैतिक छीछालेदर,खबरों से सजे मीडिया अनुशासित है क्या..? आपका सोचना जो भी हो मैं सोचता हूं नहीं.ये साजिश है भारतीय सकारात्मक पहलू को खत्म करने की. ये पश्चिमी बुनावट की "पत्रकारिता गणेश शंकर विद्यार्थी, महावीरप्रसाद द्विवेदी ,से प्रभाष जोशी तक    पुरोधाओं ने शायद यह तो न कहा था करने को. प्रभाष जी ने तो यहां तक कहा था:-  ""... ने अपना ईमान बेचा " इसका अर्थ यदि यही है तो है कि मामला शर्मनाक है.  समाज के साथ छल है. यहां उनको नही कुछ सोचना है जो सकारात्मकता के साथ इस नोबल-प्रोफ़ेशन में हैं..उन पर यह बात लागू नहीं है.... सोचना तो उनको है जो नकारात्मकता बो रहे हैं. सचाई दिखाना देखना कोई अपराध नहीं है सत्य सदा उज़ागर हो ये भी ज़रूरी है किंतु "अर्धसत्य" सदा से ही घातक विध्वंसक कभी कभी आत्म घाती भी हो सकता है इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है मित्र.अपने जीवन में आप देखेंगें तो पाएंगे आज़ादी की 25वीं वर्षगांठ के बाद तक या कहें अभी तक मीडिया कर्म आदरस्पद रहा है किंतु जैसे ही विदेशी-मीडिया-सिस्टम ने हमारे देश की ओर मुंह किया हमारे मूल्य अचानक अर्रा के गिर गये ये सब क्या है क्यों है क्या कोई अनुशासन कोई लगाम नहीं होना चाहिये . रोज़ एक पोर्टल रोज़ एक अखबार हज़ारों मीडिया कर्मी लाखों पाठक करो्ड़ों का व्यापार और हासिल क्या "तनाव कुण्ठा,वैमनस्यता, अलगाव, वैचारिक विभ्रम,अलगाव, अविश्वास...! "
                                           अगर आप गिनें तो जो सनसनी फ़ैलाते हैं वो समाचार सर्वाधिक प्रकाशित और प्रसारित हो रहे हैं. प्रतिशत में आप स्वयम गणना कीजिये सत्तर-प्रतिशत  से कम न होगा नकारात्मकता भरी खबरों का प्रतिशत.
   संजीव शर्मा नामक एक स्टिंगर/ पत्रकार ने देह व्यापार पर स्टिंग  के लिये अपने परिवार को दांव पर लगा दिया किंतु फिर उसी एजेंसी  ने   उनको निकाल दिया  किंतु वे डिगे नही उन्हीं के शब्दों में ".. मुझे भी मक्खी की तरह दूध से निकल कर फेंक दिया गया ...... सिर्फ इस लिए क्यूँ की मैं एक मिशन मैं फ़ैल हो गया ...... लेकिन आज मैं ताल ठोक कर कह सकता हूँ .... मैं असल जिंदगी में पास हूँ और रहूँगा क्यूंकि बेईमानी ...चाटुकारिता ...चापलूसी ....मेरी खून मैं नहीं हैं और जिस दिन आएगी उस दिन मीडिया को अलविदा कहूँगा ....आज मैं एक अच्छे चैनल मैं हूँ और पोस्ट मैं भी खुद से ज्यादा मुझे आपने टीम पर भरोसा है ..... बस उस खुदा ये ही दुआ है ..... ऊंचाई तक पहुँचाना जरूर लेकिन ज़मीन से दूर भी ना करना जो कुछ मेरे साथ मेरे चैनल ने उस दौरान किया मैं कभी अपने स्टिंगर के साथ न ऐसा न कर सकूँ .... "

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