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शनिवार, जून 05, 2021

बोलने की आजादी बनाम मलाला यूसुफजई

       मलाला यूसुफजई गूगल फोटो
मलाला यूसुफजई के मुतालिक पाकिस्तान में दिनों खासा हंगामा बरपा है। मलाला ने जो भी कहा निकाह को लेकर उसे एक अग्राह्य नैरेटिव के रूप में देखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर तो गया गजब की आग सी लगी हुई है और यूट्यूब चैनल रेगुलर न्यूज़ चैनल आपको बाकायदा जिंदा रखे हुए हैं। ऐसा क्या कह दिया मलाला ने कि इतना बवाल मच गया?
दरअसल मलाला ने वोग पत्रिका को इंटरव्यू में बताया कि-" पता नहीं लोग निकाह क्यों करते हैं एक बेहतर पार्टनरशिप के लिए निकाह नामें पर सिग्नेचर का मीनिंग क्या होता है..?
दरअसल भारत में लिव इन रिलेशन में जाने वाली महिलाओं को बकायदा अधिकार से सुरक्षित किया गया है। बहुत सारे काम मिलार्ड लोग सरल कर देते हैं या यह कहें कि भारत में न्याय व्यवस्था बहुत हम्बल है। लिहाजा हमारे देश में सैद्धांतिक रूप से तो समाज ने इसे अस्वीकृत किया है परंतु आपको स्मरण होगा कि सनातन से बड़ा लिबरल मान्यताओं वाला धर्म और कोई नहीं है। गंधर्व विवाह को यहां मान्यता है भले ही उसका श्रेणी करण सामान्य विवाह संस्था से कमतर क्यों ना माना गया हो।
  23 साल की मलाला यूसुफजई नोबेल अवॉर्ड् से सम्मानित है और इस वक्त ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रही है। हालिया दौर में वे पाकिस्तान के कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं जबसे उन्होंने इजराइल फिलिस्तीन संघर्ष में फिलिस्तीन के संदर्भ में विशेष रूप से कुछ नहीं कहा था इतना ही नहीं कुछ वर्ष पहले उन्होंने तालिबान की कठोर निंदा भी की थी। स्वात घाटी की रहने वाली पाकिस्तानी नागरिक पाकिस्तान में हमेशा विवाद में लपेटा जाता है ।
मलाला ने किस कांटेक्ट में निकाहनामे को गैरजरूरी बताया इस पर चर्चा नहीं करते  हुए अभिव्यक्ति की आजादी पर मैं यहां अपनी बात रख रहा हूं। विश्व में भारत और अमेरिका ही दो ऐसे देश है जहां बोलने पर किसी की कोई पाबंदी नहीं। जबकि विश्व के अधिकांश राष्ट्रों में अपनी बात कहने के लिए उनके अपनी कानून है। पाकिस्तान से भागकर कनाडा में रहने वाले बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो कि पाकिस्तान में आसानी से जिंदगी बसर नहीं कर पा रहे थे। उनमें सबसे पहला नाम आता है तारिक फतेह का और फिर ताहिर गोरा , आरिफ अजकारिया
 इतना ही नहीं हामिद मीर भी इन दिनों  फौज के खिलाफ टिप्पणियों की वजह से कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं । इसी तरह गलवान में चाइना की सेना की जवानों की सही संख्या लिखने पर वहां के एक माइक्रो ब्लॉगर को 8 महीने से गायब कर रखा है। जैक मा की कहानी आप से छिपी नहीं है। अब रवीश कुमार ब्रांड उन उन सभी लोगों को भारतीयों को समझ लेना चाहिए कि  हिंदुस्तान बोलने की आजादी है लिखने की आजादी है और इसका बेजा फायदा भी उठाया जा रहा है। मैं यहां एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि-"भारत के अलावा आप और किसी देश में बोलने लिखने की आजादी के हक से मरहूम ही रहेंगे" उम्मीद है कि मेरा संकेत सही जगह पर पहुंच रहा होगा ।

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