प्रधान मंत्री के रूप में श्री नरेंद्र दामोदर मोदी जी का व्यक्तित्व मानो उदघोषित कर रहा है कि शून्य का विस्फ़ोट हूं..!! एक शानदार व्यक्तित्व जब भारत में सत्तानशीं होगा ही तो फ़िर यह तय है कि अपेक्षाएं और आकांक्षाएं उनको सोने न देंगीं. यानी कुल मिलाकर एक प्रधानमंत्री के रूप में सबसे पहले सबसे पीछे वाले को देखना और उसके बारे में कुछ कर देने के गुंताड़े में मशरूफ़ रहना ... बेशक सबसे जोखिम भरा काम होगा. बहुतेरे तिलिस्म और ऎन्द्रजालिक परिस्थितियां निर्मित होंगी. जो सत्ता को अपने इशारों पर चलने के लिये बाध्य करेंगी. परंतु भाव से भरा व्यक्तित्व अप्रभावित रहेगा इन सबसे ऐसा मेरा मानना है.
शपथ-ग्रहण समारोह में आमंत्रण को लेकर मचे कोहराम के सियासी नज़रिये से हटकर देखा जावे तो साफ़ हो जाता है कि - दक्षेस राष्ट्रों में अपनी प्रभावी आमद को पहले ही झटके में दर्ज़ कराना सबसे बड़ी कूटनीति है. विश्व को भारत की मज़बूत स्थिति का संदेश देना भी तो बेहद आवश्यक था जो कर दिखाया नमो ने. सोचिये नवाज़ साहब को पड़ोसी के महत्व का अर्थ समझाना भी तो आवश्यक था यानी पहला पांसा ही सटीक अंक लेकर आया .
इस बार भारतीय प्रज़ातांत्रिक रुढ़ियों एवम कुरीतियों पर जनता ने जिस तरह वोट से हमला कर पुरानी गलीच मान्यताओं को नेत्सनाबूत किया है उसे देख कर भारतीय आवाम का विकास की सकरात्मक दृष्टि के सुस्पष्ट संकेत मिले हैं साथ ही प्रजातांत्रिक मान्यताएं बेहद मज़बूत हुईं हैं . अब वक़्त है सिर्फ़ और सिर्फ़ राष्ट्र के बारे में सोचना जो भी करना राष्ट्र हित में करना.
अब व्यक्ति और परिवार गौड़ हैं. समुदाय सर्वोपरि. चुनने वालों की अपेक्षा है नरेंद्र मोदी सरकार से आंतरिक स्वच्छता और बाह्य-छवि का विशेष ध्यान रखा जावे. यद्यपि सत्ता मद का कारक होती है पर आत्मोत्कर्ष से सत्ता से अंकुरित मद को ऊगने से पूर्व ही मिटाया जा सकता है. मोदी जी से ये अपेक्षाएं तो हैं हीं.
भारतीय औद्योगिक घरानों को बढ़ावा देकर रोटी कपड़ा मकान के लिये रोज़गार बढ़ाने के मौके देना सर्वोच्च प्राथमिकता हो . शिक्षा और चिकित्सा राज्य के अधीन एवम सस्ती हों. विकास का आधार भूखे को भीख देना किसी भी अर्थशास्त्रीय सिद्धांत का अध्याय नहीं है.. सरकार इस तरह की कोई योजना न लाए जिनसे भिखमंगों की संख्या में इज़ाफ़ा हो बल्कि उन कार्यक्रमों को लाना ज़रूरी है जिनकी वज़ह से रोज़गार पैदा हों .. लेकिन एक बात सत्य है कि भारत में दो पवित्र कार्य व्यावसायिक दुष्चक्र में फ़ंस चुके हैं.. एक शिक्षा दूजी चिकित्सा... सरकार को इस पर लगाम कसनी ही होगी...
भारतीय आंतरिक शांति के लिये नक्सलवाद का समूल खात्मा, एक अहम चुनौती है. पूर्वोत्तर राज्यों में पनपते अलगाववादी प्रयास, के अलावा वे सारे बिंदु जो आंतरिक शांति को क्षति पहुंचा रहे हैं को निशाने पर लेना ही होगा. भारतीय संविधान में दी गई कुछ रियायतों की समीक्षा भी एक महत्वपूर्ण बिंदू है.
भारतीय औद्योगिक घरानों को बढ़ावा देकर रोटी कपड़ा मकान के लिये रोज़गार बढ़ाने के मौके देना सर्वोच्च प्राथमिकता हो . शिक्षा और चिकित्सा राज्य के अधीन एवम सस्ती हों. विकास का आधार भूखे को भीख देना किसी भी अर्थशास्त्रीय सिद्धांत का अध्याय नहीं है.. सरकार इस तरह की कोई योजना न लाए जिनसे भिखमंगों की संख्या में इज़ाफ़ा हो बल्कि उन कार्यक्रमों को लाना ज़रूरी है जिनकी वज़ह से रोज़गार पैदा हों .. लेकिन एक बात सत्य है कि भारत में दो पवित्र कार्य व्यावसायिक दुष्चक्र में फ़ंस चुके हैं.. एक शिक्षा दूजी चिकित्सा... सरकार को इस पर लगाम कसनी ही होगी...
भारतीय आंतरिक शांति के लिये नक्सलवाद का समूल खात्मा, एक अहम चुनौती है. पूर्वोत्तर राज्यों में पनपते अलगाववादी प्रयास, के अलावा वे सारे बिंदु जो आंतरिक शांति को क्षति पहुंचा रहे हैं को निशाने पर लेना ही होगा. भारतीय संविधान में दी गई कुछ रियायतों की समीक्षा भी एक महत्वपूर्ण बिंदू है.
श्री नरेंद्र मोदी जी और उनकी टीम को अग्रिम शुभकामनाऎं.