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बुधवार, अप्रैल 06, 2016

वामअंग फरकन लगे 02 - बाबा रामदेव ने क्या बदला ? : ज्योति अवस्थी

वामअंग फरकन लगे 01

के लिए आपका स्नेह मुझे प्रेरक लग रहा है .  वामअंग फरकन लगे 02 में मैं समुदाय से मिले आलेख को पेश कर रहा हूँ ...... उम्मीद है आपको पसंद आएगा . इस आलेख को प्रेषित किया है   सुश्रीज्योति अवस्थी जी ने उनका अग्रिम आभार 
आज वाट्सएप पर एक मित्र ने बाबा रामदेव जी की तस्वीरों को कोलाज़ बना के पोस्ट किया. तस्वीर पोस्ट कर वे बाबा को अपमानित करना चाहते हैं और सभी भारतीयों को दुखी ताकि प्रोवोग हों और एक अस्थिर वातावरण की पृष्ठभूमि तैयार हो पर वाट्सएप पर दूसरा सृजन भी मिला .... इस आलेख के ज़रिये जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि वामअंग क्यों फड़क रहे हैं .......... 
रामदेव जी की बहुत सी आलोचनाएं आती है बाजार में,ढेरों शिकायते हैं....वो तो ख़त्म नहीं होंगी पर चूँकि आलोचक अपनी बात कहते हैं तो मैं भी कहूँगी अपनी बात.....
बाबा रामदेव का ठीक ठीक उद्भव तो याद नहीं मुझे पर 1996 में ग्वालियर से पढाई करके कानपुर लौटी तो पापा जबरदस्त प्रशंसक हो चुके थे बाबा रामदेव के, आज की तरह संचार के साधनों तक इतनी आसान पहुँच नहीं थी पर दोपहर में मोहल्ले की महिलाओं की बैठक में,पापा के दोस्तों के साथ लगते ठहाकों में बाबा रामदेव गूँज रहे होते थे, योग आसनों पर चर्चा थी,कहीं दमे का बाबा का बताया गया इलाज था कहीं आँखों की तेज रौशनी का नुस्खा। एक हरिश्चंद्र अंकल जी वाली आंटी तो बाबा रामदेव की बुराई करने वाले का मुंह नोच लें इतनी खूंखार हो गयी थीं क्योंकि उन्हें दमा में बहुत आराम मिला था उनके बताये नुस्खे से....
बाबा रामदेव ने ठन्डे के नाम पर बोतलबंद पेयों और सौंदर्य उत्पादों से हमें आगाह किया और ठंडा मतलब सिर्फ कोकाकोला ही नहीं रहा बल्कि लस्सी और गन्ने का रस भी हो गया।फेयर एंड लवली से अधिक क्षमतावान मलाई और हल्दी जैसी आम से रसोई में मिलने वाली चीजें हो गयीं।उन्होंने स्वदेशी के प्रति लोगों का सोया आत्मसम्मान जगाया,उन्होंने स्वदेशी के प्रति लोगों की झिझक ख़त्म की,महंगे विदेशी उत्पादों के मुकाबले हमारे उत्पाद किसी से कम नहीं थे ये हमने जाना भी और खुद को कमतर आंकने की प्रव्रत्ति का त्याग भी किया। इसमें आलोचना जैसा कुछ नहीं था पर फिर भी जिनके अंदर भारत को आत्मनिर्भर या खुश देख के जलन होती है उन्होंने जहर उगला ही।
फिर आलोचना की असली वजह आई-पतंजलि। स्वदेशी की अवधारणा पर बना पतंजलि विश्वविद्यालय और स्वदेशी उत्पादों की एक बड़ी श्रृंखला। आलोचक(भारत स्वाभिमान को हर यत्न से दबाने वाले) चिल्लाने लगे, ये तो कारोबारी है कारोबार करना चाहता था इसलिए इतनी भूमिकाएं गढ़ीं।चलिए हम मान लेते हैं ये सत्य था पर यदि ये सत्य भी है तो आपको दिक्कत क्या है? वे कह रहे थे आप मिले जुले अनाज का आटा खाओ, (डॉक्टर भी अब वही कह रहे हैं) आप पिसवाईए सब मिला कर,पर ये जो आजादी के बाद पीढ़ी तैयार हुई थी न बाबा को भी पता था कि इसे समझ सब कुछ आ भी जाये तो ये अपने लिए इतनी मेहनत करने से तो रही। वे आटा ले आये.... ready made.... आपको नहीं लेना मत लो कोई बन्दूक की नोंक पर तो दे नही रहे बाबा, उन्होंने कहा आप हल्दी चन्दन मुल्तानी मिटटी के लेप से गोरे हो जायेंगे तो अगर आपसे रोज ये लेप नहीं बनता तो आप उनकी कांति क्रीम ले आओ,और नहीं लानी तो मत लाओ कोई जबरदस्ती तो है नहीं,जहाँ इतने उत्पाद हैं वहां एक और सही।उन्होंने कहा कोकाकोला टॉयलेट क्लीनर है, जो बाद में सिद्ध भी हुआ। अभी पिछले दिनों बेटी के विद्यालय में आई चिकित्सकों की एक टीम आई उन्होंने अभिभावकों को आगाह किया कि वे अपने बच्चों को सभी तरह के fast food और cold drinks से दूर रखें अन्यथा न सिर्फ बच्चों की कार्य क्षमताएं प्रभावित हो रही हैं बल्कि वे समय से बहुत पहले शारीरिक रूप से विकसित भी हो रहे हैं।अब अगर आपको बच्चों के बालहठ भीं पूरे करने हैं और उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान देना है तो बाबा ने आपको स्वदेशी पेय पदार्थों का विकल्प दिया,आपको लेना हो लो नहीं तो टॉयलेट साफ़ ही कर लो। कोई जबरदस्ती तो है नहीं। बाबा ने कहा आंवला स्वास्थ्य के लिए रामबाण है,पर अपने कसैले स्वाद के कारण आपसे खाया नहीं जाता तो मुरब्बा बना लो। आपसे 48 घंटे चूने के पानी में भिगो के फिर काँटों से गोद के आंवले का मुरब्बा बनता हो तो बना लो वरना बाबा ने विकल्प दिया सीधे खरीद लो। आपको नहीं लेना मत लो,किसी ने मजबूर तो नहीं किया।आज भी वे देशी नुस्खे बताते समय दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं में ही औषधियां खोज लाते हैं आपको उसमे नुकसान होता हो तो मत प्रयोग करिये।
बाबा रामदेव ने स्वदेशी को स्वाभिमान से सिर्फ जोड़ा ही नहीं बल्कि बजाय उपदेश मात्र देने के उसे सही सिद्ध करने के लिए काम भी किया। उन्होंने वामपंथ के खतरे से अनजान एक पूरी पीढ़ी को न सिर्फ स्वदेशी की भावना के प्रति बल्कि स्वयं अपने प्रति भी सम्मान सिखाया।
आज हर सुबह न सिर्फ पार्कों में बल्कि घरों के drawing rooms में योग एक आम दैनिक और आवश्यक कार्य है बल्कि कभी सिर्फ सेक्स और शाहरुख़ बेचने वाले बॉलीवुड की बिक्री को भी योग ने प्रभावित किया। तमाम बॉलीवुड बालाओं के शून्य आकार में योग power योगा बन के केंद्रीय भूमिका निभाने लगा।लस्सी,फलों के रस और दूध बेचते दुकानदारों के पास भी भीड़ लगने लगी।इससे न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए सकारात्मक असर पड़ा बल्कि छोटे दुकानदारों को आर्थिक लाभ भी पहुँचने लगा।सुबह लोग चाय के साथ गेहूँ का अर्क और लौकी का रस भी पीने लगे। विकसित भारत,शिक्षित भारत,आत्मनिर्भर भारत की शुरुआत स्वस्थ भारत से होगी लोगों को समझ आने लगा।
अब आपकी एक और तकलीफ कि खुद को बाबा कहने वाला आदमी राजनीति में क्यों रूचि लेता है?क्यों भई?समाज के लिए निहायत अनुपयोगी,अनपढ़,गंवार,विदूषक,हर काम से भागने वाले लोग, सिर्फ चापलूसी,चाकरी,गुंडागर्दी,खानदानी दौलत के बल पर हमारे संसद में हमारे प्रतिनिधि बन सकते थे तो स्वयं को अपनी मेहनत के दम पर बिनां किसी पारिवारिक विरासत के समाज को एक उपयोगी दिशा देने वाला क्यों नहीं राजनीति में दखल दे सकता था? मेरे और आपके जैसे बिना किसी हैसियत वाले लोग यहाँ सोशल मीडिया पर मोदी से लेकर ओबामा तक को सलाह देते हैं, देश कैसे चलना चाहिए इस पर विशेषज्ञ विचार प्रस्तुत करते हैं और करने भी चाहिए, ये देश सरकार से पहले हमारा है तो इसकी हर आयाम पर उन्नति हो इसके लिए हर एक को अपनी भागीदारी सुनिश्वित करनी चाहिए तो बाबा रामदेव ने की क्या गलत किया? उन्होंने अक्षम और भ्रष्ट राजनीतिज्ञों पर प्रश्न किया तो क्यों गलत था? सन्त अपने हिस्से के सांसारिक सुखों का त्याग करते हैं पर अपनी माता का नहीं और देश को हम माँ मानते हैं आपको तो उस पर भी आपत्ति है (बनी रहे)
यहाँ एक पूरी गोट बिछा के हमारे विश्वास और भावनाओं को मोहरा बना के सर्वथा अनुपयोगी, हर काम को अधूरा छोड़ के भागने वाले,जिसका सकारात्मक समाज और देश के लिए कोई योगदान भी नहीं था ऐसे व्यक्ति को विदेशों से धन और योजनाएं आयातित करके योजनाबद्ध तरीके से राजनीति का मुकुट पहना दिया गया जो व्यक्ति हर विभाग में अपनी अयोग्यता और अकर्मण्यता सिद्ध करके आया वह दिल्ली का सम्राट बन के बैठ गया आपको आपत्ति नहीं हुई। क्यों? क्योंकि वो भारत को बदलने नहीं पुनः सुलाने की व्यवस्था में लगा था। वह भारत के मुफ्तखोरी के चरित्र को और स्पष्ट बनाना चाहता था। और यही आप चाहते थे।
और निंदक गुरु जी कहते हैं
पतंजलि के उत्पादों से यूनी लीवर और कोलगेट पामआलिव जैसी आंग्ल-अमेरिकन MNS,s को क्या कष्ट है? इस पहलू से भी देखना पड़ेगा। हम विश्व के विशालतम उपभौक्ता हैं। इन विदेशी कम्पनियों के हित में पानी पी पीकर पतंजलि को कोस रहे लोग कौन हैं?पहचानिए! ये बाबा रामदेव के विरोधी भाड़े के लोग किसके पेरोल पर हैं? यूनिलीवर, कोक, पेप्सी के या कोलगेट पामोलिव के। मुफ्त सेवा तो अपने बाप की न करें ये लोग।
आपको तकलीफ बाबा रामदेव से और हर उस व्यक्ति से है जो भारत को सक्षम बनाना चाहेगा।आपकी तकलीफ हमें और,और पुनः पुनः सफल करेगी। आपको बाबा रामदेव पसंद नहीं आप स्वतंत्र हैं पर अब आपको विषवमन नहीं करने दिया जायेगा ये तय है।

सोमवार, जून 06, 2011

बाबा रामदेव प्रकरण : रोको उसे वो सच बोल रहा है कुछ पुख़्ता मक़ानों की छतें खोल रहा है


 वैचारिक ग़रीबी से जूझते भारत को देख  भारतीय-प्रजातंत्र की स्थिति का आंकलन सारे विश्व ने कर ही लिया है.अब शेष कुछ भी नहीं है कहने को. फ़िर भी कुछ विचारों को लिखा जाना ज़रूरी है जो बाबा रामदेव के अभियान को नेस्तना बूद करने बाद देश भर की सड़कों नुक्कड़ों घरों, कहवा घरों में  दिन भर चली बातों से ज़रा सा हट के हैं. मुझे याद आ रही है  मित्र शेषाद्री अय्यर अक्सर अपनी महफ़िल में गाया करतें हैं:- 
नीरज़ दीवान के ब्लाग पर लगी तस्वीर
"रोको उसे वो सच बोल रहा है कुछ पुख़्ता मक़ानों की छतें खोल रहा है !!" 
साभार : कीर्तीश भट्ट के ब्लाग
बामुलाहिज़ा से 
    दिल्ली ने बाबा को पुख़्ता मक़ानों की छतें खोलने से चार मई की रात रोक दिया . आंदोलन को रोकने की वज़ह भी पुलिस वाले आला हुज़ूर ने मीडिया के ज़रिये सबको बताईं .  जनता को सफ़ाई देने के लिये प्रशासन के ओहदेदार आए सरकार का पक्ष रखा गया . साहब जी ने बताया कि पंडाल में तनिक भी लाठी चार्ज नहीं हुआ. साहब सही बोले बताओ हमारे एक ब्लागर भाई नीरज़ दीवान   ने अपने ब्लाग की बोर्ड "की बोर्ड का सिपाही " पर लगाई इस तस्वीर को ध्यान से देखिये और फ़िर से याद कीजिये  सा’ब जी के उस बयान पर जिसमें उनने कहा था कि लाठी चार्ज नही हुआ.अब आप ही इस चित्र को देखिये और तय कीजिये क्या पुलिस वाले भैया जी क्या रामदेव बाबा के इस भक्त के दक्षिणावर्त्य को   सम्मानित कर रहें हैं..?
        सरकार को शायद इस बात का इल्म नहीं है आज़ दिन भर आम आदमी सुलगता रहा जो बाबा से सहमत है . अगर कोई इनको अंध भक्त कहे तो कहे आम भारतीय के मन में बाबा का ज़ादू बहुत गहरे समाया है.उसमें बाबा जी को अपमानित किये जाने से जो तिलमिलाहट हुई है उससे आने वाले दिनों जो दृश्य उपस्थित होने वाला है उसका एहसास दमन कारियों को कदापि नहीं है. आज़ तो कुछ लोग ये भी कहते सुने गये :- मतलब ये निकला कि रसूखदार मान ही गए कि बाबा जो कह रहे हैं वो सत्य है. और इस सच का सामना होते ही पुख्ता मक़ानों की छतें खुलना अवश्यम्भावी है.चलो मान लिया कि बाबा ठग है तो भी उनके योग और दवाओं ने कितनों को लाभ दिया इसका अनुमापन कैसे करिये गा.? जितने पण्डाल में थे वो तो बाबा जी के कुल अनुयाईयों का दसवां हिस्सा भी न थे. 
    कटिंग सैलून में चल रहे  एक चैनल पर लालू जी ने उवाचा :- बाबा जी को सियासत नहीं करनी चाहिये.
             यह सुन कर नाई की दुक़ान पर दाढी़ बनवाने गया आम आदमी बोल पड़ा :-"ये सियासत करते करते चारा बेच खरीद सकते हैं तो बाबा अगर सियासत करें तो बुराई क्या है. "
अब तो आप समझ ही गये होंगे कि कुत्ते क्यों भौंकते हैं..?
 जीभूल गये हों तो पढ़िये जी भाग एक भाग दो   

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