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प्रभाष जोशी जी ने कहा :- “.... अपना ईमान बेचा,”

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अपने अंतर्मन की जिज्ञासा  को तृप्त करना चाहता है समाज  उसे चाहिये सकारात्मकता उसे चाहिये व्यापक दृष्टिकोण उसे चाहिये सार्थक नज़रिया. कोई भी यह करने तैयार है तो आगे आये आज एक खबरी चैनल ने अभिषेक- ऐशवर्या  के दाम्पत्य जीवन पर एक खबर प्रसारित की जिसमें पति-प्त्नि के बीच के मन मुटाव को सरे बाज़ार कर दिया. यदि यही है पत्रकारिता तो  अब बस और नहीं इस का अवसान ज़रूरी है  खत्म कर दो ये रवैया वरना ये दुनियां में इतनी नकारात्मकता हो जावेगी कि खुद तुम्हारा जीना और  सांस लेना दूभर हो जाएगा.देश वासियो ये तो उदाहरण मात्र था सर्वत्र  सबसे पहले हमें इस तरह की नकारत्मक्ता को नियंत्रित करना ही होगा.  प्रज़ातंत्र के चारों स्तम्भ  नेगेटिविटी की गिरफ़्त में आ जाएं तो प्रजातन्त्र की समीक्षा अत्यावश्यक हो जाती है.. लोक कल्याणकारी राष्ट्र की कल्पना करते हुए शहीदों ने ये तो न सोचा था न .सेक्स,विवाहेत्तर-संबंध,फ़िल्म,गाशिप, राजनैतिक छीछालेदर,खबरों से सजे मीडिया अनुशासित है क्या..? आपका सोचना जो भी हो मैं सोचता हूं नहीं.ये साजिश है भारतीय सकारात्मक पहलू को खत्म करने की. ये पश्चिमी बुनावट की "पत्रकार