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शनिवार, नवंबर 16, 2013

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया है मेरे आगे

डुमारू यूं ही भैंसों को चराता रहेगा
सोचिये कब तलक ये ज़ारी रहेगा ?
                    चचा ग़ालिब आपने जो लिक्खा था सच में एक गै़रतमंद शायर का नज़रिया है . ज़नाब  आपका कहा सियासी अपना कहा समझने हैं. इंशा-अल्लाह इनको समझदार बीनाई दे वरना वरना क्या ? लोग मंगल पे कालोनी बना लेंगे और अपना ये डुमारू यूं ही भैंसों को चराता रहेगा. और मौज़ में आके कभी कभार उसकी पीठ पे लद के  यूं ही अपनी  बादशाहत का नज़ारा पेश करेगा .  इसे ही विकास कहते हैं.… लोग तो कहें और कहते रहें  मुझे तो झुनझुनों से इतर कुछ भी नहीं लगता . आखिर उनके नज़रिये में दुनियां  "बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल" ही तो है ये दुनियां.  आप हम और ये समूचा हिंदुस्तान जिस दिन अपने नज़रिये से से सोचने लगा तो यक़ीनन इस जम्हूरियत का मज़मून और लिफ़ाफ़ा दौनों ही बदले बदले नज़र आएंगे. सियासत की दीवार पर विचारधाराओं की खूंटियों पर टंगी ज़म्हूरियत बेशक सबसे बड़ी तो है पर उस दीवार  और खूंटियों की मज़बूती पर सोचना ज़रूरी है. वरना बकौल आप चचा ग़ालिब आवाम कहेगी जो शायद दर्दीला हो सकता 
"गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे।
  भले खतीब-ए-शहर ये कहते फ़िरें  
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया है मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे..।
   दोस्तो, चचा गालिब से मेरी बात अक्सर इसी तरह होती रहती है.. चचा हैं कि चुप की गोली खाए बैठे हैं. ज़वाब में कुछ नहीं कहते कहें भी क्या कहने वाले लगातार कहते ज़ा रहे हैं.  जिसे देखिये लगातार कहे जा रहे हैं. गाली गुफ़्तार तक पे उतारू हैं कई उफ़्फ़ 
उधर आवाम भी दर्द में कुछ यूं कहती सुनी जाती है.. 
होता है निहाँ गर्द में सहरा मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे ।
देश भक्ति के मानी बदले बदले नज़र आने लगे हैं.. उसपे सब साबित करते फ़िरते हैं कि -"वे असली वतन परस्त हैं "
इंतिखाबों के वक़्त वतन परस्ती साबित करने का मौसम बनता है.. इलेक्शन खत्म होते ही मौसम खत्म हो जाता है.पर मज़ूरों रिक्शेवालों, खोमचेवालों, कुलियों के लिये ये मौसम कभी खत्म नहीं होता. मेरी नज़र में वे भी सच्चे वतन परस्त हैं... आप सियासी जान लीजिये चचा ने अपने इस शेर में आपकी हक़ीक़त बखूबी बयां जो की है......

मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे ।


                          बहरहाल चलता हूं वापस उसी सड़क पर जिधर डुमारू भैंस पर चढ़ा हुआ... प्रकृति के अप्रतिम सौन्दर्य विहार को निकला होगा .......


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