डुमारू यूं ही भैंसों को चराता रहेगा सोचिये कब तलक ये ज़ारी रहेगा ? |
"गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे।"
भले खतीब-ए-शहर ये कहते फ़िरें
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया है मेरे आगे
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया है मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे..।
दोस्तो, चचा गालिब से मेरी बात अक्सर इसी तरह होती रहती है.. चचा हैं कि चुप की गोली खाए बैठे हैं. ज़वाब में कुछ नहीं कहते कहें भी क्या कहने वाले लगातार कहते ज़ा रहे हैं. जिसे देखिये लगातार कहे जा रहे हैं. गाली गुफ़्तार तक पे उतारू हैं कई उफ़्फ़
उधर आवाम भी दर्द में कुछ यूं कहती सुनी जाती है..
दोस्तो, चचा गालिब से मेरी बात अक्सर इसी तरह होती रहती है.. चचा हैं कि चुप की गोली खाए बैठे हैं. ज़वाब में कुछ नहीं कहते कहें भी क्या कहने वाले लगातार कहते ज़ा रहे हैं. जिसे देखिये लगातार कहे जा रहे हैं. गाली गुफ़्तार तक पे उतारू हैं कई उफ़्फ़
उधर आवाम भी दर्द में कुछ यूं कहती सुनी जाती है..
होता है निहाँ गर्द में सहरा मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे ।
देश भक्ति के मानी बदले बदले नज़र आने लगे हैं.. उसपे सब साबित करते फ़िरते हैं कि -"वे असली वतन परस्त हैं "
इंतिखाबों के वक़्त वतन परस्ती साबित करने का मौसम बनता है.. इलेक्शन खत्म होते ही मौसम खत्म हो जाता है.पर मज़ूरों रिक्शेवालों, खोमचेवालों, कुलियों के लिये ये मौसम कभी खत्म नहीं होता. मेरी नज़र में वे भी सच्चे वतन परस्त हैं... आप सियासी जान लीजिये चचा ने अपने इस शेर में आपकी हक़ीक़त बखूबी बयां जो की है......
इंतिखाबों के वक़्त वतन परस्ती साबित करने का मौसम बनता है.. इलेक्शन खत्म होते ही मौसम खत्म हो जाता है.पर मज़ूरों रिक्शेवालों, खोमचेवालों, कुलियों के लिये ये मौसम कभी खत्म नहीं होता. मेरी नज़र में वे भी सच्चे वतन परस्त हैं... आप सियासी जान लीजिये चचा ने अपने इस शेर में आपकी हक़ीक़त बखूबी बयां जो की है......
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे ।बहरहाल चलता हूं वापस उसी सड़क पर जिधर डुमारू भैंस पर चढ़ा हुआ... प्रकृति के अप्रतिम सौन्दर्य विहार को निकला होगा .......