न्यू-मीडिया : नये दौर की ज़रूरत
अंतर्जाल पर भाषाई के विकास के साथ ही एक नये दौर में मीडिया ने अचानक राह का मिल जाना इस शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि है.विचारों का प्रस्फ़ुटन और उन विचारों को प्रवाह का पथ मिलना जो शताब्दी के अंत तक एक कठिन सा कार्य लग रहा था अचानक तेजी से इतना सरल और सहज हुआ कि बस सोचिये की बोर्ड पर टाइप कीजिये और एक क्लिक में मीलों दूरी तय करा दीजिये....प्रस्फ़ुटित विचारों की मंजूषा को. बेशक एक चमत्कार वरना अखबार का इंतज़ार,जिससे आधी अधूरी खबरें..मिला करतीं थीं श्रृव्य-माध्यम यानी एकमात्र आकाशवाणी वो भी सरकार नियंत्रित यानी सब कुछ एक तरफ़ा और तयशुदा कि देवकी नंदन पाण्डेय जी कितना पढ़ेगें आठ बजकर पैंतालीस मिनिट वाली न्यूज पर. यानी खुले पन का सर्वथा अभाव समाचार सम्पादकों की मर्ज़ी पर खबरों का प्रकाशन अथवा प्रसारण तय था .सरकारी रेडियो टीवी (दूरदर्शन) की स्वायत्तता तो आज़ भी परिसीमित है. निजी चैनल्स एवम सूचना प्रसारण के निजी साधनों का आगमन कुछ दिनों तक तो आदर्श रहा है किंतु लगातार विचार प्रवाह में मीडिया घरानो संस्थानों का धनार्जन करने वाला दृष्टिकोण न तो समाचारों