बूंद से नदी बन जाने की उत्कंठा
बेशक बूंदें ही रहीं होंगी जिनने एकसाथ सोचा होगा-"चलो मैली चट्टानों को रेतीली मटमैली ढलानों को धो आते हैं..!! ऊसर बंजर को हरियाते हैं !! मर न जाएं प्यासे बेज़ुबान चलो उनकी प्यास बुझा आतें हैं...!!" कुछेक बोली होंगी- "हम सब मिलकर धार बनेंगी.. सारी नदियों से विलग हम उल्टी बहेंगी उल्टे बहाव का कष्ट सहेंगी..? न हम तो...! तभी उनको कुछ ने डपटा होगा एक जुट बूंदों ने बहना शुरु किया होगा तब हां तब जब न हम थे न हमारी आदम जात तब शायद कुछ भी न था पर एक सोच थी बूंदों में एक जुट हो जाने की बूंद से नदी बन जाने की उमंग और उत्कंठा ..! लो ये वही नदियां हैं जिनको कहते हैं हम नर्मदा या गंगा !! नदियां जो धुआंधार हैं- काले मटमैले पहाड़ों को धोती तुमसे भी कुछ कह रहीं हैं एकजुट रहो तभी तो चट्टानों के घमंड तोड़ पाओगे .... वरना ऐसे ही बूंद-बूंद ही मर जाओगे..!!