आभार :- नितिन कुमार पामिस्ट |
एक अकेला कँवल ताल में, संबंधों
की रास खोजता !
बहता दरिया चुहलबाज़ है, तिनका तिनका छीन कँवल से ,
दौड़ लगा देता है अक्सर, पागल सा फिर त्राण मसल के !
है सबका सरोज प्रिय किन्तु , उसे दर्द क्या.? कौन सोचता !!
रोज़ त्राण फैलाके
अपने ,तिनके-तिनके
पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ है, तिनका तिनका छीन कँवल से ,
दौड़ लगा देता है अक्सर, पागल सा फिर त्राण मसल के !
है सबका सरोज प्रिय किन्तु , उसे दर्द क्या.? कौन सोचता !!
एक अकेला कँवल ताल में, संबंधों
की रास खोजता !
रात कुमुदनी जागेगी तब, मैं विश्रामागार रहूँगा
भ्रमर दंश सहे कितने, उसको कैसे कहो,
कहूंगा ?
कैसे पीढा व्यक्त करूंगा – अभिव्यक्ति की
राह खोजता !!
जाग भोर की प्रथम किरन से, अंतिम तक मैं
संत्रास भोगता !