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सोमवार, नवंबर 21, 2022

भारत, जैफ बेगौस की भविष्यवाणी गलत साबित करेगा


     भारत, जैफ बेगौस की भविष्यवाणी गलत साबित करेगा:गिरीश बिल्लोरे
     पिछले 4 दिन पहले विश्व के चौथे नंबर के अरबपति जैफ़ बेगौस ने यह कहकर यूरोप में हड़कंप मचा दिया कि-" वैश्विक महामंदी बहुत जल्दी प्रारंभ हो सकती है, हो सकता है दिसंबर 22 अथवा जनवरी 23 में ही यह स्पष्ट हो जाए। अपनी अरबों रुपए की संपत्ति जनता को वापस करने की घोषणा करने वाले जैफ़ ने कहा-" इस महामंदी के आने के पहले विश्व के लोगों को बड़े आइटम पर तुरंत खर्च करना बंद कर देना चाहिए। कंजूमर को इस तरह की सलाह देते हुए महामंदी के भयावह दृश्य अंदाज़ लगाने वाली इस शख्सियत ने कहा है कि-" कार रेफ्रिजरेटर अगर आप बदलना चाहते हैं तो इसके खर्च को स्थगित कर दीजिए ।
*बिलेनियर जैफ के* इस कथन को *विश्लेषित* करने मैंने अपने पूर्व अनुभव के आधार पर अनुमान लगाया कि- यह सत्य है कि, 1990-91 की महामंदी ने जो स्थिति उत्पन्न की थी उससे भारतीय अर्थव्यवस्था अप्रभावित रही है। उसके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होगा?
   कृषि उत्पादन एवं वाणिज्य परिस्थितियों का अवलोकन करने पर पाया कि विश्व में कितनी भी बड़ी मंदी का दौर आ जाए , अगर भारतीय व्यवस्था जो मूल रूप से कृषि उत्पादन एवम उत्पादों पर आधारित है, अप्रभावित रहेगी और यदि उस पर कोई नकारात्मक प्रभाव पढ़ना है तो भी अर्थव्यवस्था में मामूली प्रभाव पढ़ना संभव होगा। *इस संबंध में भोपाल में व्यवसाय से जुड़े श्री विमल चौरे, महामंदी से पूरी तरह सहमत हैं।*
 उसका कारण वही है जैसा मैंने पूर्व में वर्णित किया है। अर्थात भारतीय अर्थव्यवस्था ठोस अर्थव्यवस्था के रूप में समझी जा सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में पॉजिटिविटी का सकारात्मक पहलू  जनसंख्या है, और यह आबादी ऐसे किसी भी तरह के उपभोक्तावादी संसार का हिस्सा नहीं है, जो अत्यधिक उपभोक्तावादी हो।
*भारत में पर्सनल सेक्टर में पूंजी का निर्माण आसानी से किया जा सकता है।*
 भारत में अभी भी प्रूडेंट शॉपिंग प्रणाली को परंपरागत रूप से स्थान दिया जाता है। *अतः यह संभावना कम ही है कि हम महामंदी से बुरी तरह प्रभावित होंगे।*
*गोल्ड फैक्टर*
भारत में वार्षिक 21 हजार टन सोने की मांग बनी रहती है.  जबकि भारत की खदानें मात्र 1.5 टन सोना उत्पादित करती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक
विश्व स्वर्ण परिषद (डब्ल्यूजीसी) ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत में सोने की खदानों से उत्पादन 2020 में 1.6 टन था, लेकिन दीर्घावधि में यह 20 टन प्रतिवर्ष तक बढ़ सकती है। भारत का मध्य वर्ग एवं निम्न वर्ग भी सोने के प्रति आकर्षित होता है, क्योंकि *सोना भारत के लिए एक महत्वपूर्ण परंपरा आधारित घटक है। इसे एक बेहतरीन इन्वेस्टमेंट माना जाता है।*
वर्तमान परिस्थितियों में भारत के प्रत्येक परिवार के औसत रूप से 2 से 3 तोला यानी 20 से 30 ग्राम सोना संचित रहता है। परिवार अपनी आवश्यकता के मुताबिक इस होने का नगरीकरण करा लेता है। 
परिणाम स्वरूप अर्थ- व्यवस्था कुल मिलाकर रोकड़  के अभाव में प्रभावित नहीं होती। 
भारतीय परिवारों में ही  कोआपरेटिव व्यवस्था परंपरागत रूप से प्रभावी है । आपसी आर्थिक व्यवहार के कारण आर्थिक मंदी नियंत्रित होगी। इसके अलावा जनसंख्या भी अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा विकल्प माना जा सकता है। socio-economic सिस्टम में भारतीय  परिवारिक व्यवस्था किसी भी तरह की मंदी से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहती है इसलिए आसन्न महामंदी का असर भारत के अथवा दक्षिण एशियाई देशों के लिए बेहद खतरनाक नहीं होगी। यदि युद्ध महामारी जैसी परिस्थितियां निर्मित न हो तो!
 उपरोक्त बिंदुओं से इस बात की पुष्टि होती है कि *भारत की अर्थव्यवस्था यूरोपीय अर्थव्यवस्था की तुलना में बेहद मजबूत  है।*

रविवार, सितंबर 24, 2017

आतंकिस्तान : धोये क्या निचोये क्या ..?

भारतीय उपमहाद्वीप क्षेत्र में आतंक का आवास बना पाकिस्तान कितना भी कोशिश करे भारत की बराबरी कदापि नहीं कर सकता । बावज़ूद इसके की चीन का उसे सपोर्ट हासिल है । चीन से इसकी रिश्तेदारी केवल एक आभासी वर्चुअल रिश्तेदारी है । रहा सवाल पाकिस्तान की आतंकी आश्रय शाला का तो वह अपनी आवाम की जगह आतंक को सर्वाधिक बड़ी जवाबदेही मानता है । कारण यह भी है कि टेरेरिज्म से पाक सेना को राहत मिलती है । यानी पाकिस्तान आतंकियों आउटसोर्सिंग से सैन्यकर्मियों की पूर्ति करते हुए मिलिट्री स्थापना व्यय  कम करता है । 
भारतीय विदेशी मुद्रा भण्डार नवीनतम प्रकाशित आंकड़ों के आधार पर 400.72 अरब USD हो गया . यह समाचार भारतीयों के लिए एक सुखद एवं उत्साहित करने वाली खबर है. 
         सरकारी मुद्दों पे संवेदित खबरिया चैनल का एक विश्लेषण देखिये  NDTV ने अपनी खबर में भारतीय विदेशी मुद्रा भण्डार के मामले में अपनी छोटी किन्तु असरदार रिपोर्ट में स्वीकारा है कि भारत में अप्रत्याशित ढंग से विदेशी मुद्रा भण्डार में इजाफा हुआ है. सितम्बर 2017 में हुई समीक्षा के हवाले से प्रकाशित समाचार के अनुसार :-   
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार में इस बढ़ोतरी की प्रमुख वजह विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (एफसीए) का बढ़ना है. समीक्षा अधीन सप्ताह में यह 2.56 अरब डॉलर बढ़कर 376.20 अरब डॉलर हो गईं. देश का स्वर्ण भंडार इसी अवधि में बिना किसी बदलाव के 20.69 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित रहा.

भारत का विदेशी ऋण 13.1 अरब डॉलर यानी 2.7% घटकर 471.9 अरब डॉलर रह गया है. यह आंकड़ा मार्च, 2017 तक का है. इसके पीछे प्रमुख वजह प्रवासी भारतीय जमा और वाणिज्यिक कर्ज उठाव में गिरावट आना है.
आर्थिक मामलों के विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015-16 के मुकाबले 2016-17 में हालत बेहतर हुए हैं और ऋण प्रबंधन सीमाओं के तहत बना हुआ है.
मार्च, 2017 की समाप्ति पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और विदेशी ऋण का अनुपात घटकर 20.2% रह गया हैजो मार्च 2016 की समाप्ति पर 23.5% था.

मार्च, 2017 की समाप्ति पर लॉन्ग टर्म विदेशी कर्ज 383.9 अरब डॉलर रहा है जो पिछले साल के मुकाबले 4.4% कम है. समीक्षावधि में कुल विदेशी ऋण का 81.4% लॉन्ग टर्म विदेशी ऋण है.
उपरोक्त समाचार के साथ साथ जब हमने दक्षिण एशिया के अन्य प्रमुख देशों पाकिस्तान और बंगला देश की आर्थिक स्थिति की पता साजी की तो ज्ञात हुआ कि दक्षिण एशिया में पाकिस्तान एक फिसड्डी देश है बेशक बंगला देश से भी पीछे . भारत के खजाने में 400.72 अरब डालर , बांगला देश में 33 अरब  डालर , तो आतंकिस्तान में कुल 20 अरब डालर शेष है. 
पाकिस्तान को 1 डालर के मुकाबले 105.462  पाकिस्तानी रूपए खर्च करने होते हैं . जबकि भारत में एक डालर 64.80 बांगला देश में 1 USD के लिए 81.93 टके खर्च करने होते हैं . 
उसका विदेशी मुद्रा भण्डार इसी तरह कम होता रहेगा तो पाकिस्तान के पास केवल तीन विकल्प शेष  हैं 
  एक - अपने रूपए का अवमूल्यन करे 
  दो   - विश्व मुद्रा कोष सहायता ले.
         तीन   -  चीन से मदद में तेज़ी आए
सबसे पहले तीसरे बिंदु का खुलासा करना ज़रूरी है कि चीन से उसे मदद मिलती रहेगी. किन्तु चीन की मदद एक ऐसे ब्याजखोर साहूकार की होती है जो भविष्य में सर्वाधिक शोषण करता है. ऐसी स्थिति की जिम्मेवारी पाकिस्तानी सैन्य डेमोक्रेटिक सिस्टम की है. साथ ही आप समझ पा रहे होंगे कि पाकिस्तान अब बेहद नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है. 
मौद्रिक अवमूल्यन तब सफल साबित  होता है जबकि देश में विकास  की धारा बहाने के वैकल्पिक रास्ते मौजूद हों . पाकिस्तान में ऐसा नहीं है वहां मानवता कराहती है जिसकी चीखें विश्व को सुनाई नहीं दे रहीं चिकित्सा ,शिक्षाऔर आतंरिक सुरक्षा एवं भयमुक्त समाज निर्माण  के मामलों में पाकिस्तानी फैडरल एवं राज्यों की  सरकारें  असहाय एवं सफल हैं.  
विकास गतिविधियों में फिसड्डी आतंकिस्तान को सितम्बर 2017 यूएन की 72 वीं सालाना बैठक में विश्वसमुदाय के सामने बेहद अपमानजनक परिस्थियों का सामना तक करना पड़ा है. किसी भी राष्ट्र के प्रबंधन कर्ताओं का धर्म लोकसेवा है न कि आत्मकेंद्रित होकर स्वयं का भला करना . पाकिस्तानी मीडिया अब तो खुल के आरोप लगाने लगा है कि – “पाकिस्तान के नेता अपने बच्चों को पाकिस्तान में रहने नहीं देते क्योंकि न तो वे पाकिस्तान को उनकी पौध के काबिल समझते और न ही खुदके रहने लायक समझतें हैं”
इसी सितम्बर 2017 यूएन की 72 वीं सालाना भारत ने  खुले तौर पर एक दिन पाकिस्तान को आतंकिस्तान का दर्ज़ा दिया दूसरे दिन वजीर-ए-खारजा श्रीमती सुषमा स्वराज ने बता दिया कि हम विकास के पैरोकार हैं जबकि पाकिस्तान आतंक का न केवल पैरोकार है बल्कि वो विश्व के लिए भी खतरा बन गया है.

 आइये एक नज़र इन दौनों देशों की आर्थिक स्थिति पर एक नज़र डालतें हैं
1.     विकासदर :- भारत – 7.57 पाकिस्तान :- 4.71
2.     प्रति नागरिक आय :- भारत – 5,350 पाकिस्तान :- 4,840
3.     बेरोजगारी :-  भारत – 3.6 , पाकिस्तान – 5.2
     ये आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि भारत किस प्रकार एक बड़ी जनसंख्या को प्रबंधित करते हुए विकास पथ पर अग्रसरित है जबकि पाकिस्तान 13 वीं बार अन्तराष्ट्रीय मुद्राकोष की शरण में जाने की दिशा में है . हालांकि भारतीय प्रतिव्यक्ति आय पाकिस्तान के सापेक्ष बहुत उत्साहित करने योग्य नहीं है तथापि यहाँ आप जान लीजिये कि भारत का अर्थतंत्र तेज़ी से पर कैपिटा इनकम को अगले तीन सालों में बहुत आगे ले जा सकता है और इसे चीन के सापेक्ष 13 से 14 हज़ार डालर तक आसानी से ले जावेगा . याद रखना होगा कि यह तथ्य भारतीय युवा जनसंख्या की कर्मठता , आतंरिक एवं सीमाओं पर शान्ति एवं विदेशी निवेश से होगा. इस विकास-प्रवाह को बनाए रखने के लिए समूचे राष्ट्र को बिना आपसी (सियासी, धार्मिक, क्षेत्रीयतावादी, जातिवादी ) संघर्ष के केवल राष्ट्र हित में सोचते और करते रहना होगा . अगर अगले तीन साल में हम चीन से आगे निकल गए तो कोई भी ताकत भारत के पासंग  अगले कम से कम  500 साल तक न बैठ सकेंगीं .
इसी के सापेक्ष पाकिस्तान तेज़ी नीचे जा सकता है क्योंकि उसके पास सामाजिक  आर्थिक विश्लेषण के लिए समय नहीं है बल्कि अगर समय  है भी तो सियासी-इच्छा शक्ति आर्मी डामिनेटेड फैडरल प्रबंधन के कारण कश्मीर बलूच सिंध जैसी समस्याओं के साथ साथ आतंरिक आतंकवाद से जूझने पर खर्च करतें हैं .
ऐसा नहीं है कि वहां {पाकिस्तान में } मेरे जैसी उम्र वाले विचारक न होंगे कर्मठ युवा न होंगें परन्तु उस तिलिस्मी देश के  अभागे नागरिकों को धर्मान्धता , भारत के खिलाफ उकसाने और झूठा इतिहास बताने का धीमा ज़हर  बाकायदा दिया जाता है. और भारतीय मुसलमान भारतीय अर्थतंत्र में एक बड़ी भूमिका का निर्वाह हुए अर्थतंत्र को मज़बूती देते नज़र आते हैं .
एक छोटे से नगर जबलपुर का उदाहरण लें तो आप साफ़ समझ जाएंगे कि भरतीपुर जैसी जगह में मस्जिद, गुरुद्वारा , चर्च, और मंदिर में सबकी आस्थाएं परवान चढ़ रहीं होतीं हैं सभी एक दूसरे के साथ भारतीय बन के रहतें हैं. न कि हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई बनकर ..!
उसके पीछे आत्मीय संबंधो का सिंक्रोनैज़ेशन है. जबकि पाकिस्तान में ऐसा नहीं है. वहां तो आतंक की जड़ें बेहद गहरीं हैं . ये सभी लोग जानतें हैं. हाफ़िज़ सईंद इसका सर्वोच्च उदाहरण हैं .
कहाँ गया होगा  पाकिस्तान को मिला विदेशी पैसा ..?
ऐसी स्थिति में पाकिस्तान अनिवार्यरूप से मुद्राकोष से वित्तीय मदद अवश्य लेगा. और  IMFA से मिलने वाले संभावित धन से भी कोई लाभ मुझे तो नज़र नहीं आता . आपको याद होगा कि 1980 में पाकिस्तान ने 12वीं बार IMFA से वित्तीय मदद ली  थी , और भारत को वर्ष 1991 में सहायता मिली थी. पाकिस्तान  70 सालों में चीनी इमदाद से इतर 13वीं बार एक बार फिर कटोरा लिए खडा है. 12 बार अमेरीकी इमदाद के साथ संभावित रूप से बड़ा  क़र्ज़ लेने वाले पाकिस्तान ने प्राप्त धन का उपयोग न तो विकास में किया न ही जीवन-समंकों को सुधारने में बल्कि अब तो सवाल ये है कि इतनी मदद भारत को आज़ादी के बाद से हासिल होना शुरू हो जाती तो भारत आज के भारत से 25 साल आगे होता.  पाकिस्तान के सन्दर्भ में देखें तो आपको समझ आएगा कि उसे मिलने वाली विदेशी धनराशी भारत के खिलाफ आतंक, गुड और बैड आतंकवाद वाले  सैनिक प्रशासन के सिद्धांत के चलते कपूर हो गया होगा. बचा-खुचा धन भ्रष्टाचार के हवन कुंड में अवश्य ही गया होगा .
  पाकिस्तानी रूपए के अवमूल्यन के क्या परिणाम होंगे ..?
सुधि पाठको , बेहद विस्तार से पाकिस्तानी अर्थशास्त्र को आपने पूर्व के पैराग्राफ देख ही लिया होगा , फिर भी बताना ज़रूरी है कि – पाकिस्तानी दुष्प्रबंधन में  अर्थव्यवस्था में तेज़ी से मुद्रा स्फीति एवं मूल्यों की अस्थिरता के चलते घरेलू उत्पादकता घटेगी बावजूद इसके कि कई मामलों में पाकिस्तान के पास सिंध और बलोचस्तान में प्रचुर मात्रा में खनिज संसाधन हैं तथा कृषि उत्पादों के कुछ मामलों में तो पाकिस्तान भारत से अधिक उत्तम है का भी लाभ पूंजी के अभाव में न मिल सकेगा
क्या भारत से पाकिस्तान युद्ध करेगा ?
इस सवाल का उत्तर ग्लोबलाईजेशन के इस युग में नहीं में है. बल्कि अगर भारत के साथ युद्ध किया भी गया तो “अबकी बार पाक में भारत सरकार” की स्थिति को नकारना भी गलत ही होगा. भारत ने विश्व के समूचे अतिमहत्वपूर्ण देशों के साथ स्नेहिल रिश्ते बना लिए . विश्व के आम नागरिक भारतीय संस्कृति , इसकी डेमोक्रेसी, के प्रशंसक भी हैं . इस बात का इल्म पाकिस्तान सरकार को और उनके सैन्य प्रशासन को है. वे  कभी भी ऐसा नहीं करेंगे . साथ ही युद्ध का विचार कुछ लोगों के मन में अवश्य है परन्तु वे यदि ऐसा करते हैं तो तय है कि युद्धोंमादित उत्साह रुदन में बदलने में कोई विलम्ब न होगा.
मेरे मित्र अक्सर पूछतें हैं कि – चीन ने डोकलाम के बाद भारत से सम्बन्ध सुधार लिए हैं ..?

मेरा उत्तर यही होता है कि – “पाकिस्तान चीन के सामने आया एक भिक्षुक है भारत चीन के बीच व्यावसायिक सम्बन्ध हैं. अब बताएं आप चीन होते मैं भारत होता और रामलाल जी पाकिस्तान होते तो ऐसी स्थिति में आप किसके साथ कॉफ़ी हाउस जाते ?” मित्र मुस्कुराकर कहते कोई भी अध्यात्मिक भिक्षुकों के अलाव दरवाजे पर आए भिखारी के साथ कॉफी तो क्या पानी भी न पिएगा.. हा...हा...हा..!
बहरहाल मुद्दे पर आए और सोचें कि यदि पाकिस्तान भारत को युद्ध के लिए प्रोवोक करता है तो पाकिस्तान को गहरे आर्थिक संकट का सामना करना होगा । भारत सहित मित्र राष्ट्र निश्चित तौर पर अनेकों प्रकार के आर्थिक बंधन लगा सकते हैं ।  और भारत बिना युद्ध किये ही पाकिस्तान को गम्भीर गृह युद्ध में झोंक सकता है । और अगर युद्ध हुआ तो विश्व के लिए दुखदाई स्थिति होगी । 

गुरुवार, जुलाई 27, 2017

भारत के राष्ट्रवाद को हिन्दू राष्ट्रवाद कहना चीन की सबसे बड़ी अन्यायपूर्ण अभिव्यक्ति


आलेखों से आगे ..... भारतीय राज्य व्यवस्था के स्वरुप की एक और झलक 
इस आलेख में देखिये   
भारत की धर्म निरपेक्षता एवं सहिष्णुता आज की नहीं है बल्कि अति-प्राचीन है . भारतीय  सनातनी व्यवस्था के चलते किसी की वैयक्तिक आस्था पर चोट नहीं करता यह सार्वभौमिक पुष्टिकृत तथ्य है इसे सभी जानते हैं . जबकि विश्व के कई राष्ट्र सत्ता के साथ आस्था के विषय पर भी कुठाराघात करने में नहीं चूकते. कुछ दिनों से विश्व को भारत के नेतृत्व में कुछ नवीनता नज़र आ रही है ... श्रीमती सुषमा स्वराज ने अपनी एक अभिव्यक्ति में कहा कि- संस्कृत में  "वसुधैव कुटम्बकम" की अवधारणा है. उनका  यह उद्धरण इस बात की पुष्टि है कि भारत की  सनातनी व्यवस्था में वृहद परिवार की परिकल्पना बहुत पहले की जा चुकी.  भारतीय सम्राट न तो  धार्मिक आस्थाओं पर कुठाराघात करने के   उद्देश्य  के साथ राज्य के विस्तारक हुए न ही उनने सेवा    के बहाने धार्मिक विचारों  को  छल पूर्वक विस्तारित किया  . 
जबकि न केवल इस्लाम बल्कि अन्य कई धर्म तलवार या व्यापार के बूते विस्तारित हुए . आज भी जब पाक-आधित्यित-काश्मीर के शरणार्थी  भारत आए तो राष्ट्र ने उनके जीवन को पुनर्व्यवस्थित करने 5 लाख रूपयों की राशि प्रदान करने की व्यवस्था की है . इसे सहिष्णुता ही कहेंगे जबकि चीन जैसे कम्युनिष्ट राष्ट्र ने डोकलाम के मुद्दे पर विश्व और खुद  जनता को गुमराह करने राष्ट्रवाद को हिन्दू राष्ट्रवाद का नाम दिया . भारत के राष्ट्रवादी चिंतन को बीजिंग से परिभाषा दी जावे इसके मायने साफ़ हैं कि बीजिंग भी अन्य धार्मिक आस्थाओं को उकसाने की फिराक में हैं . 
अमेरिकन फांसीसी व्यक्वास्थाएं अब घोर राष्ट्रवादियों के हाथ में हैं उसे क्या परिभाषा दी जावेगी ये तो साम्यवादी राष्ट्र के विचारक ही बता सकतें हैं पर  यहाँ साफ़ तौर पर एक बात स्पष्ट होती है कि साम्यवादी राष्ट्र से जो भाषा हम, तक आ रहीं हैं वो  साम्यवादी तो कतई नहीं हैं . 
  भारत के   राष्ट्रवाद को हिन्दू राष्ट्रवाद कहना चीन की सबसे बड़ी अन्यायपूर्ण अभिव्यक्ति है इस ओर विचारकों का ध्यान जाना अनिवार्य है  .
आज़कल लोगों के मन में एक सवाल निरंतर कौंध रहा है कि क्या चीन भारत के बीच युद्द होगा ..?
मेरे दृष्टिकोण से कोई भी स्थिति ऐसी नहीं है कि चीन और भारत के मध्य युद्ध हो.. युद्ध किसी भी स्थिति में चीन के लिए लाभदायक साबित नहीं होगा इस बात का इल्म  चीन की लीडरशिप को बखूबी है. पर चीन का जुमले उछालने का अपना शगल है. मेरी नज़र में चीन उस पामेरियन सफ़ेद कुत्ते की तरह बर्ताव कर रहा है जो घर में आए मेहमान पर जितना भौंकता है उतना ही पीछे पीछे खिसकता है. यह राष्ट्र अपनी विचारधारा के चलते भय का वातावरण निर्मित करने में लगा है.   


चित्र साभार : नवभारत टाइम्स 

गुरुवार, अगस्त 25, 2016

पाकिस्तान 69 बरस का एक नासमझ बच्चा राष्ट्र :01


1948 तक मुक्त बलोचस्तान के मसले पर लालकिले से भारत के प्रधानमंत्री  श्री नरेंद्र मोदी की अभिव्यक्ति से पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि आयातित विचारकों के ज़ेहन में खलबली देखी जा रही है. भारत का बलोच लोगों के हित में बोलना एक लुहारी हथौड़ा साबित हुआ है. प्रधानमंत्री जी का बयान दक्षेश ही नहीं विश्व के लिए एक खुला और बड़ा बयान साबित हुआ है. उनका यह बयान बांगला देश विभाजन की याद दिला रहा है जब इंदिरा जी ने पूरी दृढ़ता के साथ न केवल शाब्दिक सपोर्ट किया बल्कि सामरिक सपोर्ट भी दिया.
मोदी जी की अभिव्यक्ति एक प्रधानमंत्री के रूप में बड़ी और ज़वाबदारी भरी बात है. बलोच नागरिक इस अभिव्यक्ति पर बेहद अभिभूत हैं. अभिभूत तो हम भी हैं और होना ही चाहिए वज़ह साफ़ है कि खुद पाकिस्तान लाल शासन का अनुगामी  बन अपने बलात काबिज़ हिस्से के साथ जो कर रहा है उसे कम से कम भारत जैसे राष्ट्र का कोई भी व्यक्ति जो मानवता का हिमायती हो बर्दाश्त नहीं करेगा . मेरे विचार से श्री नरेन्द्र दामोदर मोदी के खिलाफ आयातित विचारधाराएं जो भी सोचें आम राय बलोच आवाम के साथ है.
यहाँ अपनी समझ से जो देख पा रहा हूँ कि आयातित विचारधाराएं कभी भी लाल-राज्य के खिलाफ बयान को स्वीकार्य नहीं करतीं .  बहरहाल साल 48 से  मौजूदा वक्त तक बलोच कौम के समर्थन में खुलकर न आना मानवाधिकार मूल्यों की रक्षा की कोशिशों की सबसे बड़ी कमजोरी का सबूत है .  वज़ह जो भी हो देश का वास्तविक हिस्सा पूरा काश्मीर है जिस पर पाक का हक न तो  था न ही हो सकेगा . तो फिर पाकिस्तान की काश्मीर पर तथाकथित भाई बंदी की वज़ह क्या है ...?
इस मसले की पड़ताल में आपको जो सूत्र लगेंगे उनका मकसद पाक की पञ्चशील पर पंच मारने वाली  लाल-सरकार से नज़दीकियाँ . चीन – पाक आर्थिक कोरिडोर और ग्वादर पोर्ट के ज़रिये पाकिस्तान को चीनी सामरिक सपोर्ट मिलता है. जहां तक विकास की बात है पाकिस्तानी सरकार   बलोचस्तान को छोड़ कर शेष सम्पूर्ण पाक में कर पा रहा है बलोचस्तान उसकी दुधारू बकरी है. इतना ही नहीं इस आलेख लिखने तक मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ 22 हज़ार अधिक लोगों को बड़ी बेहरमी से  मौत के घाट उतारा है. हज़ारों हज़ार युवा गायब कर दिए गए ..  बलोचों के  कत्लो-गारद की हिमायती पाकिस्तानी सरकार फौज से ज़्यादा आतंकवादियों के इशारों पर काम करती .
पाकिस्तान 69 बरस का  एक नासमझ  बच्चा राष्ट्र है . जिसे उसके नागरिकों से अधिक बाहरी विवाद पसंद है. कुंठा की बुनियाद पर बने देश पाकिस्तान धर्माधारित विचारधारा और कट्टरता की वज़ह से  रियाया के अनुकूल नहीं है . पाकिस्तान की वर्तमान दुर्दशा की जिम्मेदारी  विभाजन के लिए षडयंत्र करने वाले तत्वों खासकर नवाबों, पाक की  सेना  और सियासियों की दुरभि संधि  उस पर ततसमकालीन अमेरिका की पाकिस्तान के प्रति सकारात्मक नीतियां हैं. जबकि भारत ने कमियों / अभावों  के बावजूद  अपेक्षाकृत अधिक सहिष्णु एवं सकारात्मक रवैया रखा साथ ही भारतीय आवाम ने विकास को सर्वोच्च माना तभी हम दक्षेस की बड़ी ताकत हैं . अब तो भारत का जादू हर ओर छाया है. वज़ह सियासत, कूटनीति, और भारतीय स्वयं है. भारतीय युवा विश्व के लिए  महत्त्वहीन कतई नहीं है . 1985  के बाद जन्मी पौध ने तो विश्व से लोहा मनवा ही लिया है .
आयातित विचारधारा अपने अस्तित्व को बचाए रखने जो कर रही है उसके उदाहरण जेएनयू जैसी जगहों पर मिल जाएंगें . इसका कदापि अर्थ न लगाएं कि सामाजिक साम्य से असहमति है.. वरन हम  कुंठित साम्य को खारिज करते हुए “समरससाम्य” की ललक में हैं .
भारत की नीती कभी भी सीमाओं के विस्तार की न थी.. पर नवाबों के जेनेटिक असर की वज़ह से पाकिस्तान ने इरान और कदाचित क्राउन शह पर बलोचों की आज़ादी पर डाका डाला है. तो बलोच गुरिल्ले क्यों खामोश रहेंगे. इतना ही नही गिलगित तथा पाक द्वारा कब्जाए कश्मीर की जनता भी अविश्वास से भरी है.
भारत ने अपने कानूनों में आमूलचूल प्रावधान रखें हैं दमित जातियों  के लिए .. पर वे खुद सिया सुन्नी पंजाबी सिंधी, गैर पंजाबी आदि आदि फिरका परस्ती के लिए कोई कारगर प्रबंध न कर सके. जब बलोच को सपोर्ट की बात की तो सनाका सा खिंच गया पाक में       
बदलते हालातों पर पाक के प्रायोजित  वार्ताकार बोडो, असम , सिख , यहाँ तक की नक्सलवादियों तक के लिए रुदालियों की  भूमिका निबाह रहे हैं . जबकि पाक में छोटे से इलाज़ के लिए न चिकित्सकीय इंतजामात हैं न ही बेहतर एजुकेशन सिस्टम. आला हाकिमों और हुक्मरानों और आतंकियों की औलादें ब्रिटेन एवं अमेरिका में पढ़ लिख रहीं हैं. जबकि आम आवाम के पास न्यूनतम सुविधाएं भी न के बराबर है.      

(आगे भी जारी........ प्रतीक्षा कीजिये )        

गुरुवार, अक्तूबर 25, 2012

रामायण कालीन भारत और अब का भारत



साभार : ताहिर खान 
       राम को एक ऐसा व्यक्ति मान लिया जाये जो एक राजा थे तो वास्तव में  समग्र भारत के कल्याण के लिये कृतसंकल्पित थे तो अनुचित कथन नहीं होगा.  राम ऐसे राज़ा थे जो सर्वदा कमज़ोर के साथ थे. सीता के पुनर्वन गमन को लेकर आप मेरी इस बात से सहमत न हों पर सही और सत्य यही है. राम की दृढ़्ता और समुदाय के लिये परिवार का त्याग करना राम का नहीं वरन तत्समकालीन  प्रजातांत्रिक कमज़ोरी को उज़ागर करता है. जो वर्तमान प्रजातंत्र की तरह ही एक दोषपूर्ण व्यवस्था का उदाहरण है. आज भी देखिये जननेताओं को भीड़ के सामने कितने ऐसे समझौते करने होते हैं जो  सामाजिक-नैतिक-मूल्यों के विरुद्ध भी होते हैं. अपराधियों के बचाव लिये फ़ोन करना करवाना आम उदाहरण है. आप सभी जानतें हैं कि तत्समकालीन भारतीय सामाजिक राजनैतिक आर्थिक  परिस्थितियां 
आज से भिन्न थीं. किंतु रावण के पास वैज्ञानिक, सामरिक, संचरण के संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे. यानी कुल मिला कर एक शक्ति का केंद्र. जो दुनिया को आपरेट करने की क्षमताओं से लैस था. किंतु प्रजातांत्रिक एवम मूल्यवान सामाजिक व्यवस्था के संपोषक श्री राम का लक्षमण के साथ  "आपरेशन-वनगमन" चला कर  १४ बरस तक धैर्य से अंतत: सफ़ल  परिणाम हासिल करना वर्तमान की राजनैतिक इच्छा शक्ति के एकदम विपरीत है. 
         इसे नज़दीकी सीमावर्ती राष्ट्रों के हमारे प्रति नकारात्मक व्यवहार के विरुद्ध हमारा डगमगाते क़दमों से चलना  चिंतित करता है. व्यवस्था की मज़बूरी है शायद डेमोक्रेट्रिक सिस्टम पर गम्भीर चिंतन के साथ बेहतर बदलाव के लिये संकेत सुस्पष्ट रूप से मिल रहे हैं फ़िर भी हमारा शीर्ष शांत है इस बिंदु पर ? राम ऐसे न थे.
    जब भ्रष्टाचार की बात होती है तब बस हल्ला गुल्ला मचाते नज़र आते है हम सब . सिर्फ़ हंगामा सिर्फ़ व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप के अलावा कुछ भी नहीं किसी को बदलाव की ज़रूरत नहीं नज़र आ रही ऐसा प्रतीत होता है. 

                            भारत में सामाजिक भ्रष्टाचार को रोकने के कठोर क़दम उठाने के लिये सबसे पहले सरकार को भारत वासियों को आर्थिक सुनिश्चितता देनी होगी. यहां सवाल यह है कि सम्पूर्ण ज़िंदगी के अर्थतंत्र का लेखा जोखा रखने वाला भारतीय नागरिक सबसे पहले अपने बच्चों के लिये बेहतर शिक्षा, और बेहतर चिकित्सा, सहज आवास की व्यवस्था के लिये चिंतित होता है. इस हेतु उसे अपनी आय में वृद्धि के लिये प्रयास करने होते हैं और वह अव्यवस्थित यानी अस्थिर बाज़ार कीमतों के साथ जूझता भ्रष्टाचार के रास्ते धन अर्जित करता है..
न केवल सरकारी कर्मचारी आम आदमी जो जिस प्रोफ़ेशन में है.. उसमें इस तरह की कोशिश करता है. बिल्डर डाक्टर शिक्षक यहां तक की फ़ुटपाथ पर चाय बेचने वाला भी सामान्य से अधिक लाभ हासिल करने किसी न किसी तरह का शार्ट-कट अपनाता है.  सिर्फ़ सरकारी अधिकारी कर्मचारी भ्रष्ट है या 
नेता भ्रष्ट हैं 
  ऐसा कहना सर्वथा ग़लत है.
भारतीय समाज के गिरते नैतिक मूल्यों" को रोकने की एक भावनात्मक कोशिश  


करके की ज़रूरत है .आज़ वाक़ई राम की ज़रूरत है 
 जो वास्तव में समाज को भ्रष्टाचार से मुक्त कराना चाहता हो. पर दूर तक नज़र नही आता ऐसा राम ये अलग बात है.. जै श्रीराम का उदघोष सर्वत्र गूंज रहा है. 
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 ( संदर्भ :एक  था रावण बहुत बड़ा प्रतापी यशस्वी राज़ा, विश्व को ही नहीं अन्य ग्रहों तक विस्तारित उसका साम्राज्य वयं-रक्षाम का उदघोष करता आचार्य चतुरसेन शास्त्री के ज़रिये  जाना था रावण के पराक्रम को. उसकी साम्राज्य व्यवस्था को. ये अलग बात है कि उन दिनों मुझमें उतनी सियासी व्यवस्था की समझ न थी. पर एक सवाल सदा खुद  पूछता रहा- क्या वज़ह थी कि राम ने रावण को मारा................. राम ने रावण का अंत किया क्योंकि रावण  एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरा था  जो विश्व को अपने तरीक़े से संचालित करना चाहती थी. राम को पूरी परियोजना पर काम काम करते हुए चौदह साल लगे. यानी लगभग तीन संसदीय चुनावों के बराबर . 
यह आलेख पूरी तरह  आप मेरी इस पोस्ट पर देखिये "क्यों मारा राम ने रावण को ?)

रविवार, अप्रैल 03, 2011

सोमवार, दिसंबर 06, 2010

भ्रष्टाचार मिटाने ब्लागर्स आगे आयॆं.

  भ्रष्टाचार किस स्तर से समाप्त हो आज़ य सबसे बड़ा सवाल है ..? इसे कैसे समाप्त किया जावे यह दूसरा अहम सवाल है जबकि तीसरा सवाल न कह कर मैं कहूंगा कि :- भारत में-व्याप्त, भ्रष्टाचार न तो नीचे स्तर  चपरासी या बाबू करता है न ही शीर्ष पर बैठा कॊई भी व्यक्ति, बल्कि हम जो आम आदमी हैं वो उससे भ्रष्टाचार कराते हैं या हम वो जो व्यवसाई हैं. जो कम्पनीं हैं, जो अपराधी है, जो आरोपी हैं वही तो करवातें है इन बिना रीढ़ वालों से भ्रष्टाचार. यानी हमारी सोच येन केन प्रकारेण काम निकालने की सोच है.  मेरे एक परिचित बहुत दिनों से एक संकट से जूझ रहे हैं वे असफ़ल हैं वे आजकल के हुनर से नावाकिफ़ हैं दुनिया के लिये भले वे मिसफ़िट हों मेरी नज़र से वे सच्चे हिंदुस्तानी हैं. ऐसे लोग ही शेषनाग की तरह "सदाचार" को सर पर बैठा कर रखे हुए हैं,वरना  दुनियां से यह सदाचार भी रसातल में चला जाता. ऐसे ही लोगों को मदद कर सकते हैं. ब्लागर के रूप में सचाई को सामने लाएं. एक बार जब सब कुछ सामने आने लगेगा तो साथियो पक्का है पांचवां-स्तम्भ सबसे आगे होगा. पर पवित्रता होना इसकी प्राथमिक शर्त है.सही बात तथ्य आधारित कही जावे, झूठ मन रचित , केवल क्षवि हनन करने के भाव से प्रेरित न हो छद्म नाम से कुछ भी स्वीकार्य न हो . सब साफ़ साफ़  स्पष्ट और देश के हित के लिये न कि ... स्वयम के हित के लिये.भ्रष्टाचार के प्रेरक और प्रेरित दौनो को ही बेनक़ाब किया जा सकता है.  हिन्दी ब्लागिंग की ताक़त को समझने के लिये सबसे बेहतर अवसर है अगर भारत से भ्रष्टाचार  को ख़त्म करना है ब्लागिंग एक बेहतरीन और नायाब प्लेटफ़ार्म साबित हो सकता है. किंतु इस आह्वान के भीतर से भयानक  आहट निकल के आ रही है वो "यलो-सिटीज़न-जर्नलिज़्म". किंतु यदि एक संगठनात्मक संस्थागत तरीके से पूरी पवित्रता के साथ यह मुहिम छेड़ी जाए तो फ़िर  किसी भी स्थिति में   सफ़लता ही हाथ लगेगी यह तय है.चलिये आगे कदम बढ़ाएं सच्ची बात सबके सामने लाएं.    

बुधवार, दिसंबर 01, 2010

सबसे लचीली है भारत की धर्मोन्मुख सनातन सामाजिक व्यवस्था

साभार: योग ब्लाग से


बेटियों को अंतिम संस्कार का अधिकार क्यों नहीं..? के इस सवाल को गम्भीरता से लिये जाने की ज़रूरत है. यही चिंतन सामाजिक तौर पर महिलाऒं के सशक्तिकरण का सूत्र पात हो सकता है. क़ानून कितनी भी समानता की बातें करे किंतु सच तो यही है कि "महिला की कार्य पर उपस्थिति ही " पुरुष प्रधान समाज के लिये एक नकारात्मक सोच पैदा कर देती है. मेरे अब तक के अध्ययन में भारत में वेदों के माध्यम से स्थापित की गई  की व्यवस्थाएं लचीली हैं. प्रावधानों में सर्वाधिक विकल्प मौज़ूद हैं. फ़िर भी श्रुति आधारित परम्पराओं की उपस्थिति से कुछ  जड़ता आ गई जो दिखाई भी देती है. सामान्यत: हम इस जड़त्व का विरोध नही कर पाते
  1. रीति-रिवाज़ों के संचालन कर्ता घर की वयोवृद्ध पीढी़, स्थानीय-पंडित, जिनमें से सामन्यत: किसी को भी वैदिक तथा पौराणिक अथवा अन्य किसी ग्रंथ में उपलब्ध वैकल्पिक प्रावधानों का ज्ञान नहीं होता. 
  2. नई पीढ़ी तो पूर्णत: बेखबर होती है. 
  3. शास्त्रोक्त प्रावधानों/विकल्पों की जानकारीयों से सतत अपडेट रहने के लिये  सूचना संवाहकों का आभाव होता है. 
  4. वेदों-शास्त्रों व अन्य पुस्तकों का विश्लेषण नई एवम बदली हुई परिस्थियों में उन पर सतत अनुसंधानों की कमीं. 
  5. विद्वत जनों में लोकेषणाग्रस्त होने का अवगुण का प्रभाव यानी अधिक समय जनता के बीच नेताओं की तरह भाषण देने की प्रवृत्तियां.स्वाध्याय का अभाव 
                       उपरोक्त कारणों से कर्मकाण्ड में नियत व्यवस्थाओं के एक मात्र ज्ञाता होने के कारण पंडितों/कुटुम्ब के बुजुर्गों की आदतें  परम्पराओं को जड़ता देतीं हैं. उदाहरण के तौर पर स्वास्थ्य सम्बंधी विज्ञान जन्म के तुरंत बाद बच्चे को स्तन-पान की सलाह देता है, घर की बूढ़ी महिला उसकी घोर विरोधी है. उस महिला ने न तो वेद पढ़ा है न ही उसे चिकित्सा विज्ञान की सलाह का अर्थ समझने की शक्ति है बल्कि अपनी बात मनवाने की ज़िद और झूठा आत्म-सम्मान पुत्र-वधू को ऐसा कराने को बाध्य करता है. आप बताएं कि किस धर्मोपदेशक ने कहां कहा है कि :- ”जन्म-के तुरन्त बाद  स्तन पान न कराएं. और यदि किसी में भी ऐसा लिखा हो तो प्रमाण सादर आमंत्रित हैं. कोई भी धर्म-शास्त्र /वेद/पुराण (यहां केवल हिंदू सामाजिक व्यवस्था के लिये तय नियमों की चर्चा की जा रही है अन्य किसी से प्रमाण विषयांतरित होगा ) किसी को जीवन की मूल ज़रूरतों से विमुख नहीं करता.
       परिवार में मेरे चचेरे भाई के जन्म के समय जेठानियों की मर्यादा का पालन करते हुए मां ने नवज़ात शिशु को स्तन पान विरोध कर रही जेठानियों को बातों में उलझा कर करवाया घटना का ज़िक्र ज़रूरी इस लिये है कि सकारात्मक-परिवर्तनों के लिये सधी सोच की ज़रूरत होती है. काम तो सहज सम्भव हैं. 
    मृत्यु के संदर्भ में मां ने अवसान के एक माह पूर्व परिवार को सूचित किया कि मेरी मृत्यु के बाद घर में चावत का प्रतिषेध नहीं होगा. मेरी पोतियां चावल बिना परेशान रहेंगी. उनके अवसान के बाद प्रथम दिन जब हमारी बेटियों के लिये चावल पकाये गए तो कुछ विरोध हुआ तब इस बात का खुलासा हम सभी ने सव्यसाची  मांअंतिम इच्छा के रूप में किया. 
The Blind SideDecision Points    यहां आपको एक उदाहरण देना ज़रूरी है कि भारतीय धर्म- आधारित सामाजिक व्यवस्था में आस्था हेतु प्रगट  की जाने वाली ईश्वर-भक्ति के  तरीकों में जहां एक ओर कठोर तप,जप,अनुष्ठान आदि को स्थान दिया है वहीं नवदा-भक्ति को भी स्थान प्राप्त है. यहां तक कि "मानस-पूजा" भी प्रमुखता से स्वीकार्य कर ली गई है.   आप में से अधिकांश लोग इस से परिचित हैं 
"रत्नै कल्पित मासनम 
हिम-जलयै स्नान....च दिव्याम्बरम ना रत्न विभूषितम ."
              अर्थात भाव पूर्ण आराधना जिसे पूरे मनोयोग से पूर्ण किया जा सकता है क्योंकि इस आराधना में भक्त ईश्वर से अथवा किसी प्रकोप भयभीत होकर शरण में नहीं होता बल्कि नि:स्वार्थ भाव से भोले बच्चे की तरह आस्था व्य्क्त कर रहा होता है. 
                         जीवन के सोलहों संस्कारों में वेदों पुराणों का हस्तक्षेप न्यूनतम है. जिसका लाभ उठाते हुए समकालीन परिस्थितियों के आधार पर अंतर्नियम बनाए जाने की छूट को भारतीय धर्मशास्त्र बाधित नहीं करते . मेरे मतानुसार  सबसे लचीली है भारत की धर्मोन्मुख सनातन सामाजिक व्यवस्था
वेद और पुराण /अभिव्यक्ति पर एक महत्वपूर्ण-जानकारी :- विरासत बना ऋग्वेद
 

शनिवार, नवंबर 06, 2010

बराक़ साहब के नाम एक खत :ट्वीट कर दूंगा

दुखद सूचना : खुशदीप सहगल भैया के पिताश्री के  निधन की सूचना से ब्लाग जगत स्तब्ध है.  82 वर्षीय पिताजी का मेरठ के एक अस्‍पताल के आई सी यू में 5 नवम्‍बर 2010 की प्रात: बीमारी से निधन हो गया है। शोक-संतप्‍त परिवार के प्रति नुक्‍कड़ अपनी संवेदना व्‍यक्‍त करता है और परमपिता परमात्‍मा से दिवंगत आत्‍मा की शांति के लिए प्रार्थनारत हैं हम सभी (तीन)( चार  )

                    इस वर्ष यानी 05 नवम्बर 2010 को  दीपावली पूजा का शुभ मुहुर्त सुबह 06:50 से 11:50 आज दोपहर  12:23 से 04:50 संध्या  05:57 से 09:12 ,रात 09:12 to 10:47 रात्रि 11:57 to 12:48 बजे ज्योतिषानुसार नियत है. शेयर बाज़ार  भी पूरे यौवन पर बंद हुआ. कुल मिला कर व्यापार के नज़रिये से भारत ऊपरी तौर मज़बूत नज़र आ रहा है.भारत में विदेशी पूंजी के अनियंत्रित प्रवाह को आशंका की नज़र से देखा जा रहा था,उस पूंजी की मात्रा में कमी दिखाई देना एक शुभ सगुन ही है (एक)एवम (एक-01) यानी  विदेशी कम्पनीयों पर लगाम लगाते हुए  भारतीय बाज़ार से प्राप्त लाभ के प्रतिशत में कमीं आना निश्चित है. किंतु क्या यह स्थिति बनी रहेगी क्या भारतीय घरेलू उत्पादन  को अवसर बाक़ायदा बेरोक हासिल होता रहेगा यह वित्त-विशेषज्ञता की पृष्ठभूमि  वाले प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री महोदय को करना है.  अब तो और साफ़ रहना होगा कि वे घरेलू-कम्पनीयों  के सन्दर्भ में पाजीटिव हैं अथवा बराक साहब के बहाव में आ जावेंगे ? इस सवाल का हल खोजा भी जा रहा होगा हो सकता है कि खोज भी लिया हो. यदि भारतीय व्यापारिक-उत्पादक,कम्पनीयों, के प्रतिकूल कोई समझौता करना पड़ा तो उस मज़बूरी का खुलासा करना भी ज़रूरी होगा सरकार के लिये. क्योंकि भारतीय-बाज़ार की लक्ष्मी का पूजन अनुकूल मुहुर्त पर भारतीयों ने ही किया है उसका (लक्ष्मी का )  भारतीयों के पास ही होना ज़रूरी है. ओबामा साहब का स्वागत (दो) हम सभी करतें हैं हम  आत्मसम्मान के भी पक्षधर हैं, हमारी अपेक्षा साफ़ है कि भारत और पाक़िस्तान को "एक तराज़ू-तौल" के फ़ार्मूले से अलग कर दिया जावे. भारत भारत है पाक़िस्तान पाकिस्तान है . अमेरिका को इस बात को लेकर भ्रमित हो सकता है कि पाक़ उनका सहयोगी है पर भारत का बच्चा-बच्चा पाक़ के इरादों से परिचित है. हमें सामरिक-संसाधनों से ज़्यादा आपके द्वारा पाक को मुहैया कराए गये अथवा कराए जा रहे संसाधनों में कटौती की अपेक्षा है. हम चीन के अपनत्व से पंचशील से ही परिचित हैं पाकिस्तान के संबंध उनसे भी मधुर हैं इस मधुरता से भारतीयों को कोई आपत्ति नही यदि वे सामरिक न हों. भारत वैसे भी अहिंसा का अनुयायी है. लेकिन महाभारत और लंका-विजय को न भूला जावे जो जन-मन में कथानक के रूप में अंकित है.  
 बहरहाल एजेण्डा तो तय है हमारी इस राय से बेहतर कहने सुझाने वाले लोग आपके पास भी है हमारे प्रधान मंत्री साहब के पास भी आप तो हमारी ओर से हैप्पी दीवाली स्वीकारिये हमारा तो  काम था लिखना सो लिख दिया अब आपको ट्वीटर के ज़रिये भेज भी देते हैं किसी से पढ़वा लीजिये अंग्रेज़ी में हम न लिखेंगें आप हिंदी को पढ़ेंगे नहीं सो किसी से पढ़वा लीजिये. 
पुन: अशेष-शुभकामनाओं सहित 
    ट्विटर पर चार बराक ओबामा है 
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-:टिप्पणीयाँ एवम लिंक्स  :-
(एक) "विदेशी मुद्रा आस्तियों में गिरावट के कारण 22 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.034 अरब डॉलर घटकर 295.40 अरब डॉलर रह गया जिससे पाँच सप्ताह से जारी तेजी का दौर थम गया।पिछले सप्ताह विदेशी मुद्रा भंडार 64.1 करोड़ डॉलर बढ़कर 296.43 अरब डॉलर पर पहुँच गया था।भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए आँकड़ों में दर्शाया गया है कि समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशी मुद्रा की तेजी का प्रमुख कारक विदेशी मुद्रा आस्तियों की मात्रा 98.8 करोड़ डॉलर घटकर 267.69 अरब डॉलर रह गई थीं।.आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत का स्वर्ण मुद्रा भंडार 20.51 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित रहा जबकि विशेष निकासी अधिकार (एसडीआर) भी 3.3 करोड़ डॉलर घटकर 5.178 अरब डॉलर रह गया(स्रोत:-वेब दुनिया )"
(एक-01) :- एक विश्लेषण राम त्यागी जी के ब्लाग "मेरी आवाज़" पर
(दो) वेब-पोर्टल प्रवक्ता पर : -प्रभात कुमार रॉयका आलेख  बराक़ ओबामा की भारत यात्रा के आयाम
(तीन) :-शोक-सूचना  अविनाश वाचस्पति के ब्लाग पिताश्री  से
(चार) :-पाबला जी के ब्लाग ज़िंदगी के मेले से 

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