अभिव्यक्ति ने छापा मेरा व्यंग्य : उफ ! ये चुगलखोरियाँ
अभिव्यक्ति ने यहाँ छापा मेरा व्यंग्य : उफ ! ये चुगलखोरियाँ मुझे उन चुगली पसन्द लोगों से भले वो जानवर लगतें हैं , जो चुगलखोरी के शगल से खुद को बचा लेते हैं। इसके बदले वे जुगाली करते हैं। अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने वालों को आप किसी तरह की सजा दें न दें कृपया उनके सामने केवल ऐसे जानवरों की तारीफ जरूर कीजिये। कम-से-कम इंसानी नस्ल किसी बहाने तो सुधर जाए। आप सोच रहे होंगें , मैं भी किसी की चुगली कर रहा हूँ , सो सच है परन्तु अर्ध-सत्य है ! मैं तो ये चुगली करने वालों की नस्ल से चुगली के समूल विनिष्टीकरण की दिशा में किया गया एक प्रयास करने में जुटा हूँ। अगर मैं किसी का नाम लेकर कुछ कहूँ तो चुगली समझिये। यहाँ उन कान से देखने वाले लोगों को भी जीते जी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहूँगा जो गांधारी बन पति धृतराष्ट्र का अनुकरण करते हुए आज भी अपनी आँखे पट्टी से बांध के कौरवों का पालन-पोषण कर रहें हैं। सचमुच उनकी '' चतुरी जिन्दगी `` में मेरा कोई हस्तक्षेप कतई नहीं है और होना भी नहीं चाहिए ! पर एक फिल्म की कल्पना कीजिए , जिसमें विलेन नहीं हो , हुजूर फिल्म को कौन फिल्म मानेगा ? अपने