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मंगलवार, मई 24, 2011

अभिव्यक्ति ने छापा मेरा व्यंग्य : उफ ! ये चुगलखोरियाँ


मुझे उन चुगली पसन्द लोगों से भले वो जानवर लगतें हैं
जो चुगलखोरी के शगल से खुद को बचा लेते हैं। इसके बदले वे जुगाली करते हैं। अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने वालों को आप किसी तरह की सजा दें न दें कृपया उनके सामने केवल ऐसे जानवरों की तारीफ जरूर कीजिये। कम-से-कम इंसानी नस्ल किसी बहाने तो सुधर जाए। आप सोच रहे होंगेंमैं भी किसी की चुगली कर रहा हूँसो सच है परन्तु अर्ध-सत्य है !
मैं तो ये चुगली करने वालों की नस्ल से चुगली के समूल विनिष्टीकरण की दिशा में किया गया एक प्रयास करने में जुटा हूँ। अगर मैं किसी का नाम लेकर कुछ कहूँ तो चुगली समझिये। यहाँ उन कान से देखने वाले लोगों को भी जीते जी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहूँगा जो गांधारी बन पति धृतराष्ट्र का अनुकरण करते हुए आज भी अपनी आँखे पट्टी से बांध के कौरवों का पालन-पोषण कर रहें हैं। सचमुच उनकी ''चतुरी जिन्दगी`` में मेरा कोई हस्तक्षेप कतई नहीं है और होना भी नहीं चाहिए ! पर एक फिल्म की कल्पना कीजिएजिसमें विलेन नहीं होहुजूर फिल्म को कौन फिल्म मानेगा अपने आप को हीरो-साबित करने के लिए मुझे या मुझ जैसों को विलेन बना के पहले पेश करते हैं। फिर अपनी जोधागिरी का एकाध नमूना बताते हुये यश अर्जित करने के मरे जाते हैं।
ऐसा हर जगह हो रहा है हम-आप में ऐसे अर्जुनों की तलाश हैजो सटीक एवं समय पे निशाना साधे हमें चुगलखोरी को दुनियां से नेस्तनाबूत जो करना है आईए हम सब एकजुट हो जाएँ- इन चुगलखोरों के खिलाफ!
''चुगलीका बीजारोपण माँ-बाप करते हैं- अपनी औलादों में बचपने से-एक उदाहरण देखें, ''क्यों बिटियाशर्मा आंटी के घर गई थी``, ''हाँ मम्मी शर्मा आंटी के घर कोई अंकल बैठे थे``
अब 'अंकल और शर्मा आंटीके बीच फ्रायडी-विजन से देखती मैडम अपनी पुत्री से और अधिक जानकारी जुटाने प्रेरित किया जाओ अंकल का इतिहासउनकी नागरिकताउनका भूगोल पता लगाओ और यहीं से शुरू होता है चुगलखोरी का पहला पाठ।
इसमें केवल माँ ही उत्तरदायित्व निभाती है- ये भी एक अर्द्धसत्य है। पूर्ण सत्य यह है कि ''चुगलखोरी के कीड़े के वाहक पिता भी हुआ करते हैं``
हमें ''पल्स पोलियो`` अभियानों की तरह ''चुगलखोरी उन्मूलन अभियान`` चलाने चाहिए।
शासकीय कार्यालयों में इस अभियान के चलाने की बेहद जरूरत है।
मेरे दृष्टिकोण से आप सभी एकजुट होकर इस राष्ट्रीय अभियान को अपना लीजिए। अभियान के लिये-उन एन.जी.ओ. का सहयोग जुटाना न भूलेंजो अपने संगठनों के कार्यो की श्रेष्ठता सिद्ध करने दूसरों की (विशेषकर सरकारी सिस्टम की) चुगली करते हर फोरम पे नज़र आते हैं।
मित्रों! साहित्यसंस्कृतिकलाव्यापाररोजिया चैनलआदि सभी क्षेत्रों को लक्ष्य बनाकर हमें चुगली से निज़ात पानी है। और हाँ जो चुगलियाँ गाँव से शहर के दफ्तरों में साहबों के पास लाई जातीं हैं। उनके वाहक भी हमारे प्रमुख लक्ष्य होने चाहिए।
मेरे दफ्त़र में आकर चुगली करने वाला पवित्र धवल लिबास में आया वो व्यक्ति मुझे अच्छी तरह याद हैजो मेरे मातहत गाँव में काम करने वाली कर्मचारी से रूष्ट था।
उसकी विजय हुई यह जानकार कि मैं उसकी ''शिकायत उर्फ चुगली`` पर ध्यान दूँगा।
स्वयं गाँव का भ्रमण करने पर पाया कि 'धवल से पवित्र वस्त्र पहनने वाले व्यक्ति के अलावा सारा गांव उस विधवा महिला को देवी की तरह पूजता है और यही उसकी चुगली का मूल कारण है। कारण जो भी हो- चुगली एक खतरनाक रोग है। यदि इसे आप पनपने नहीं देना चाहते ''एण्टी-चुगली-ड्राप`` की दो बूंदे अवश्य देनी होगी।
कैसे पिलाएँ चुगली की दो बूंदे-''सबसे पहले लक्ष्य को पहचानेंउसे कांफिडेन्स में लें`` और उसका मुँह खुलवाएँ। बेहतर ढंग से सुने। जिसकी चुगली की जा रही है-उसे उसके सामने ले आएँ। फिर हौले से चुगलखोर की कही बातों में से दो बातें बूँदों की तरह सार्वजनिक करने की शुरूआत करें।``
इससे चुगलखोर के वस्त्र स्वयम् ही ढीले पड़ने लगेंगें। हाथ पाँव का फूलनासर झुका लेनामाथा पकड़ना या हड़बड़ाकर ''हाँ...हाँ...हाँ....नहीं...नहीं..`` की रट लगाना बीमारी की समाप्ति के सहज लक्षण होते हैं।
मित्रोंदफ्तरों मेंबैठकों मेंफोरमस् मेंइस प्रयोग को करने से बड़े-बड़े की चुगलखोरों की चुगलखोरी का अंत सहज ही हो जाता है। चुगली कमीने पन गुप का जीवाणु हैजिसने कईयों को तख्त से उठा फेंका है। इसका वाहक बेहद मीठाआकर्षकप्रभावशाली व्यतित्व वाली मानवीय काया का धारक हो सकता है। चुगली को कानूनी जामा भी पहनाया गया है।
सियासत का तो मूलाधार है ये। जहाँ सौभाग्यशाली लोगों को इससे बच सकने का मौका मिलता है। क़मोबेस सभी इस ''चुगली`` के शिकार हो ही जाते हैं। उधर समाजी रिवायतों की तो मत पूछिए - ''चुगली के बिना संबंध बनते ही नहीं। रहा तंत्र का सवाल सो - ''चुगली को शासन के हित में जारी सूचना की शक्ल में पेश करने वाले अधिकारी कर्मचारीसफल एवं श्रेष्ठ समझे जाते हैं।
सुधिजनोंअगर एक बार हिम्मत दिखा दी जावे तो सैकड़ों चुगली से प्रभावित ''जीव`` सुरक्षित हो जाऐगें।
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यह आलेख उन चुगलखोर अधिकारीयों कर्मचारियों को समर्पित है जिनका गुज़ारा चुगलियों के बिना नहीं हो पाता .
  1.  

शनिवार, नवंबर 20, 2010

अंतरजाल के ज़रिये एलियन्स से मेरे रिश्ते हैं..?

"मेरा मित्र एलियन के साथ कानाफ़ूसीरत "
          पिछले कई दिनों से अंतर्ज़ाल पर सक्रियता के कारण मेरी पृथ्वी से बाहर ग्रहों के लोगों से दोस्ती हो गई है.  अंतरजाल पर मेरा बाह्य सौर मण्डल के गृहों पर बढ़ते सम्पर्क को देख कर मेरे सहकर्मीं मित्रों छठी इन्द्री  में हलचल हुई. तो उसने विस्परिंग शुरु कर दी कुत्ते की तरह इधर उधर से मेरे बारे में जानकारीयां सूंघता सूंघता एक बार जब वो एक जगह घुस  जहां एलियन मित्र- "कारकून " अपना रूप बदल के बैठा था . चुगली न कर पाने की वज़ह से दुनिया जहांन की बात करते करते भाई के दक्षिणावर्त्य में गोया  दरद महसूस होने लगा . चुगल खोरी जिस गृह की सांस्कृतिक  विरासत में वहां के संविधान में, धर्म में शुमार है से आया था यह जंतु सो मेरे मित्र के मानस में उभरी तरंगों  को पकड़ लिया. सो मित्र से मित्रता गांठ ली और कुछ खिला पिला के अपना साथी बना लिया. और निकल पड़ा उसे लेकर तफ़रीह के बहाने. चलते-चलते भाई लोग कम   आवाजाही  वाले क्षेत्र में पहुंच गये. एलियन ने कुछ और तरंगे पकड़ मित्र के दिमाग की सो बस लगा मेरे मुतल्लिक बात करने -’भई, ककऊ जी, आप किस विभाग के नौकर हैं..?
ककऊ:- (अपमानित सा होकर )नौकर नही हूं, अफ़सर हूं.
कारकून:-  जी माफ़ करना, अफ़सर जी किस विभाग के हो..?
ककऊ:-    "XYZ" विभाग-में  ABO हूं 
कारकून:-  अरे इस में तो फ़ला भी है
ककऊ:- जी, वो साला है पर आप को क्या बताऊं..? अरे, बहुत नाकारा, बेहूदा और गंदा आदमी है..उसकी वज़ह से मेरी तो नाक में दम है.?
कारकून:-  क्यों क्या हुआ ?
ककऊ:-    अरे, छोड़िये भी..? यहां साली दीवारों के भी कान होते हैं 
कारकून:-  (ककऊ को जाल में फ़ंसा देख ) कभी किन्ही जानवरों की आपसी बातैं सुन आपने...?
ककऊ:- न
कारकून:- तो ज़रा आंख बंद करो 
       कारकून से मोहित ककऊ ने आंख बंद कीं अगले ही पल खुद को कुत्ते के रूप में पाया.  लगा चीखने ककउ की चीख पिल्लै की कूं-कूँ सी निकली कारकून को न देख घबराया सो कारकून जो बाजू में ही कुत्ते की तरह था बोला घबराओ मत देखो मैं  खुद एक कुत्ता बना हूँ . ये तो सब आभासी है. वर्चुँल है घबराओ मत .कारकून की बात पर  भरोसा एवं कारकून को स्वयं की तरह कुत्ते के रूप में  देख मेरे मित्र का भय कम हुआ . ककऊ के  विश्वास के आते ही कारकून ने अपने एक देशीय गृह के बारे में सब कुछ बताया.फिर मेरे यानी फलां के बारे में ज़िक्र छेड़ा और गहरी सांस लेकर पूछा -   
कारकून :- अब फलां की बुराई बताओ
ककऊ:- अरे ये जो फलां है न उसका ढिकानी के साथ गहरा चक्कर है. कूब कमाता है भ्रष्ट है स्साला .
कारकून:-  ये ढिकानी तो ठीक है. पर भष्ट माने...?
ककऊ:-   भ्रष्ट माने हराम की कमाई खाने वाला है स्साला ?
कारकून:-  हराम की कमाई न ये शब्द क्या हैं ?
ककऊ:-   तो तुम किसी दूसरी दुनिया से आए हो ?
कारकून:- हां मैं , चुगल-गृह वासी एलियन हूं .
ककऊ:-   जी , तभी तो तुम को मालूम नहीं.
कारकून:- तो आगे बताओ "फलां" के बारे में  ककऊ:-    फलां हमेशा......(इसके साथ ही उसने मेरे बारे में खूब लगाईं बुझाई की यह शिखरवार्ता लगभग दो घंटे चली.   )
कारकून:- भाई बहुत हो गया अब चलूँ ...?
ककऊ:-    मन तो नई भरा पर क्या करें आपको भी जाना है मुझे भी कालो आते रहना पर जाते-जाते मुझे आदमी बना दो
कारकून:-  जब, आदमी के रूप में तुम कुत्ते का सा व्यवहार करते हो तो बेहतर है कि वही बने रहो !
ककऊ:-   अरे , भाई ये क्या लगभग रोता हुआ  एलियन के कदमों में लोट गया. 
कारकून:- अरे हमारे गृह पर तो चुगली एक ऐसा आचरण जिसके ज़रिये किसी के विरुद्ध कोई हिंसा षडयंत्र नहीं करते तुम तो "फलां" जो मेरा नेटियामित्र कई उसी की कबर खोद रहे हो कुत्ते थे कुत्ते बने रहो 
ककऊ:-  तुमको चुगलदेव  की सौगंध
कारकून:- अब तुमने चुगलदेव  की सौगंध दी है है तो माफ़ किये देता हूं        ककऊ को :कारकून ने आदमी का रूप वापस दे दिया और फुर्र से गायब  . कल देर रात कारकून  से चैट  के दौरान घटना का विवरण मिला. सदमें में  हूँ साथियो  उसी सदमें में ये लिखा है कोई भी मित्र इसमें अपने को .......

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