भाग्य

भाग्य का निर्माता कौन इस बिन्दु पर महेंद्र मिश्र जी की पोस्ट जो समय चक्र पर प्रकाशित हुई है को अन देखा करना अनुचित होगा. मिश्र जी के आलेख में लिखतें हैं:-
                                     "मनुष्य कुछ इस तरह की धातु का बना होता है जिसकी संकल्प भरी शक्ति और साहसिकता के आगे कोई भी अवरोध टिक नहीं पाता है और न भविष्य में टिक पायेगा . इस तरह से यह कहा जा सकता है की मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है . दुनिया में मनुष्य के आगे असंभव कुछ भी नहीं है . आदमी के अच्छे या बुरे होने का निर्धारण स्वयं उसके कर्म करते हैं .".........
भाग्य और अगले जन्म में गहरा अंतर्संबध है. इस बारे में स्वामी शुद्धानंद नाथ ने एक प्रवचन के दौरान कहा था नियति का नियंता स्वयम इन्सान ही होता है. जो घट रहा है वो पूर्व-जन्म में किये गये कार्यों का परिणाम है.जो अगले जन्म में घटेगा उसका मार्ग आज से बनाना है तय करो कि क्या चाहते हो आज़ के कार्य कल के भाग्य को तय करेंगें. भाग्य को कोई दैव योग कहता है तो कोई ग्रहों की स्थिति जो सच नहीं है भाग्य इस जीवन में किये गये सत-असत कर्मों का परिणाम है. भाग्य को भाषित करने भारतीय ज्योतिष प्रयासरत है "भाग्य" कभी भी परिवर्तित नहीं होता. कोई उपाय कोई प्रबंध इससे विमुक्त नहीं कर सकता सब को अपना अपना किया भोगना ही होता है. यह तय है
                                           विज्ञान  इसे नही मानता कोई बात नहीं असल में विज्ञान में केवल भौतिक-विषयों का अध्ययन कर सकता है उसकी अपनी सीमाएं हैं.जब भी  परावैज्ञानिक विषयों पर अध्ययन होने लगेगा तो तय है कि लोग भाग्य के निर्माण की प्रक्रिया को सहज ही समझ पाएंगें  संजय ने युद्ध का वर्णन किया टी.वी. की कल्पना के पूर्व लोग उसे चमत्कार मानते थे. टी.वी . के आने के बाद बस उस क्रिया को सहज स्वीकार लिया. आज़ तेज़ वायरल के बावज़ूद लिखने का मन था सो लिख दिया विषय गम्भीर है कुछ विचार अभी मन में हैं किंतु शरीर साथ नहीं दे रहा शेष फिर कभी  तब तक सुनिए अर्चना  चावजी के स्वरों में ये पाडकास्ट स्वप्न लोक पर विवेक सिंह का  आलेख 



प्रमाणपत्र  यहाँ से मिलेगा ।

टिप्पणियाँ

सदा ने कहा…
बिल्‍कुल सही कहा है आपने ........सुन्‍दर लेखन ।
मनुष्‍य अपने भाग्‍य का निर्माता स्‍वयं है .. अच्‍छी और बुरी परिस्थितियां तो सबके जीवन में आती जाती हैं .. इससे हारना कैसा??
बहुत सुंदर और प्रेरणादायी आलेख......
पाडकास्ट तो सुन नही पाया पर आलेख अच्छा लगा
भाग्य इसी को कहते हैं कि एक मजदूर दिन भर मजदूरी करता है और जिन्दगी भर निर्धन रहता है. एक मजदूर नेतागीरी सीख जाता है सात पीढ़ियां तर जाती हैं..
DR.ASHOK KUMAR ने कहा…
बहुत ही सार्थक लेख हैं, स्वस्थ होने के बाद जल्दी से पूरा कीजिए।हार्दिक आभार जी। आपकी बीमारी के लिए आपसे सुबह E-mail पर मिलता हूँ। आप शीघ्र ठीक होँ यही कामना हैँ।धन्यवाद!
समयचक्र ने कहा…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार
ZEAL ने कहा…
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नियति का नियंता स्वयम इन्सान ही होता है. ...

I agree completely.

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