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रविवार, मार्च 16, 2014

हमाई ठठरी बांधत बांधत बे सुई निपुर गये

रमपुरा वारे कक्का जू
                      रमपुरा वारे कक्का जू की का कहें दद्दा बे हते बड़े ताकत बारे . नाएं देखो तो माएं देखो तौ जिते देखो उतै... जो मिलो बा ई की ठठरी बांध देत हते .बूढ़ी बाखर के मालक कक्का जू खौं जे दिना समझ परौ के उनको मान नै भओ तौ बस तन्नक देर नईयां लगत है ठठरी बांधबे में. एक दिना में कित्तन की बांधत है  बे खुदई गिनत नईंयां गिनहैं जब गिनती जानै. न गिनती न पहाड़ा जनबे वारे कक्का रोजई ग्यान ऐसों बांटत फ़िरत हैं कि उनके लिंघां कोऊ लग्गे नईं लगत ...!!
    चुनाव नैरे आए तौ पार्टी ने टिकट दै दई और कक्का जू खौं खुलम्मखुला बता दओ कि  कोऊ की ठठरी न बांधियो चुनाव लौं. जा लै लो टिकट चुनाव लड़ लौ.. कोऊ कौ कछु कहियो मती, झगड़्बौ-लड़बौ बंद अब चुनाव लडौ़ समझे.. !
कक्का जू :- जा का सरत धर दई .. हमसे जो न हु है.. 
        पार्टी लीडर बोलो :- कक्का जू, तुम जानत नईं हौ, जीतबे के बाद तुमाए लाने मुतके मिल हैं.. सबकी बांध दईयो . रहो लड़बो-झगड़बो तो दरबार मैं जान खै माइक तोड़ियो, मारियो, कुर्सी मैकियो, जो कन्ने हो उतई करियो दद्दा मनौ जनता से प्यार-दुलार सै बोट तौ लै लो .
           कक्का जू  खौं कछु समझ परौ बस बे मान गए . नाम टी वी पै सुनखैं पेपरन मै देख कक्का जू बल्ली घांई उचकन लगे.  
                 डोल नगाड़े बजावा दए खूब जम खैं धूमधड़ाका भओ. कक्का की बाखर के आंगे लोग जुड़े .. धक्का मुक्की जूतम पैज़ार, नाच गाना , को विबिध-भारती टाईप कौ पंचरंगी कारक्रम देख बे ठठरी नै बांध सके कौनऊ की. 
जैंसे जैंसे बोट पड़बे की तारीक पास आन आन लगी कक्का जू खौं मुतके सीन दिखा दए जनता नैं. 
कोऊ बोलो कक्का.. लौंडोहीं गुण्डई सै मन भर गओ का . कक्का के मन में ऐंसी आग लगी कि कछु न पूछो..! मन मसोस के आ रह गए.. चुनाव न होते तौ बे तुरतई सबरे मौंबाज समझ जाते कि कक्का कया आयं.. मन मार खैं माफ़ी मांगी लोगन खौं अद्धी और नोट दिखान लगे .. लैबो तो दूर दूर सै देख के सबरे भाग गए. कक्का हो गए हक्का बक्का लगे मनई मन कोसबे चुनाव आयोग खौं.. ! कक्का की दसा देख चेला-चपाटी बोले -"कक्का जू कल हमाई मानों तुम हाथ जोड़िओ हम लट्ठ दिखाहैं.."
    कक्का मान गए... मनौ जनता हती कि कक्का खौं निपोरबे की जुगत लगाए बैठी .. अंगुली दिखाय के डपट दओ.. जनता नै . 
भई जा बात हती कि कल्लू की मौड़ी नै कालेज़ पढ़ाई करबे के बाद गांव खेड़न मैं "समझाऊ-कार्यक्रम" चला दओ . सरकारी दफ़तरन की मदद मिली फ़िर का भओ कि कक्का जू लोगन कौं ठठरियात रहे उनखौं पतई नैं लग पाओ कि जमानो बदल गओ .. एक मौड़ी उनखौं निपोरबे तैयार हो गई..  चुनाव भए.. बोटैं परीं.. कक्का निपुर गये.. न बे दरबार मे जा पाए न दरबारी-दंगल को हिस्सा बन पाए.. न सिरकारी भत्ता ले पाए.. 
  सच्ची बात जईया.. तुमौरे सुई न डरियो भैज्जा-भौजी.. कक्का काकी, टुरिया- मुन्ना हरौ, सब जाईयो जब बोटें परैं.
  इस आलेख में उल्लेखित चरित्र का किसी एक गांव, और कक्का जू से सम्बंध नहीं है. अगर ऐसी कोई वास्तविकता पाई जावे तो संयोग मात्र होगा . 
साभार :- राजस्थान निर्वाचन आयोग, जिला स्वीप-समिति डिंडोरी 

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