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ब्लागिंग पर राष्ट्रीय कार्यशाला आधिकारिक रपट

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सलेट लिये चार : अर्थ निकालने की स्वतंत्रता सहित   दिनांक 01/12/2010 को जबलपुर की होटल-सूर्या में "हिंदी ब्लागिंग विकास और सम्भावना" विषय पर केंद्रित पंकज स्वामी गुलुश ने कार्यशाला के प्रारम्भ में विषय प्रतिपादन-अभिव्यक्ति में कहा :- तेज़ी से विकसित हो रही ब्लागिंग के भविष्य को समृद्ध एवम सशक्त निरूपित करते हुए कहा कि ’नागरिक-पत्रकारिता के इस स्वरूप (ब्लागिंग) को’ पांचवे स्तम्भ का दर्ज़ा हासिल हो ही चुका है सबने ब्लागिंग की ताक़त को पहचाना है . महानगरों से लेकर कस्बाई क्षेत्रों तक हिंदी ब्लागिंग नेट की उपलब्धता पर निर्भर करती है. जिन जिन स्थानों पर नेट की उपलब्धता सहज रूप से सुलभ है वहां तक ब्लागिंग का विस्तार हो रहा है. विकास के इस दौर में हिन्दी में ब्लाग लेखन कई कई कारणों से ज़रूरी और आवश्यक है. बाधा हीन  स्वतंत्र-अभिव्यक्ति संवाद की निरन्तर सीधी एवम सुलभ सुविधा  पाडकास्टिंग,वेबकास्टिंग, के लिये नई सुविधाओं की उपलब्धता अखबारों,समाचार-माध्यमों में नागरिक अभिव्यक्ति के लिये स्वतन्त्र स्थान का अभाव  हिन्दी में अधिकाधिक पाठ्य सामग्री  की  नेट पर आवश्यक्ता  अखबारों की मदद  स

ढाबॉ पे भट्ठियां नहीं देह सुलगती है .

यहाँ भी एक चटका लगाइए जी इक पीर सी उठती है इक हूक उभरती है मलके जूठे बरतन मुन्नी जो ठिठुरती है. अय. ताजदार देखो,ओ सिपहेसलार देखो - ढाबॉ पे भट्ठियां नहीं देह सुलगती है . कप-प्लेट खनकतें हैं सुन चाय दे रे छोटू ये आवाज बालपन पे बिजुरी सी कड़कती है मज़बूर माँ के बच्चे जूठन पे पला करते स्लम डाग की कहानी बस एक झलक ही है बारह बरस की मुन्नी नौ-दस बरस की बानो चाहत बहुत है लेकिन पढने को तरसती है क्यों हुक्मराँ सुनेगा हाकिम भी क्या करेगा इन दोनों की छैंयाँ लंबे दरख्त की है