हकलाना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
हकलाना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

26.6.12

मारे खुशी के निर्भय के हिज्जे बड़े हो गए ...बस और क्या..!!

निर्भय को उम्मीद न थी की मैं  उनसे बाल कटवाने पहुँचूंगा .उस रात इंदौर जाते वक्त हरदा रुका तो लगा अपनी सोलह बरस पुराने कर्मस्थान टिमरनी  को अभिनंदित कर आऊँ जाने की वज़ह भी थी सो वापस टिमरनी पहुँचा. निर्भय की दूकान पर गाड़ी रुकते ही निर्भय अपना   आल्हाद आवाज़ में बदलने की कोशिश करने लगा  पर निर्भय के मुंह से आवाज़ न  निकल सकी .जब निकली तो  मारे खुशी के  निर्भय के हिज्जे बड़े हो गए सच .और  जब हमने कहा -"भाई निर्भय हम आए हैं आपसे बाल-कटवाने " तो फिर क्या था अब तो निर्भय के मुंह से आवाज़ निकलनी ही बंद हो गई। यानी कुल मिला कर नि:शब्द ..   दरअसल निर्भय के मन में आने वाले  विचारों और उनकी अभिव्यक्ति में अंतराल होता है। जिसे  आम बोलचाल में लोग हकलाना कहते हैं। लेकिन मेरी सोच भिन्न है मैं निर्भय को न तो  हकला  मानता  हूँ और न ही उसे किसी को हकला कहलवाना  मुझे पसंद है। मेरी नज़र में निर्भय के हिज्जे ज़रा से बड़े हो गए हैं और कुछ नहीं है। लोग  अक्सर निर्भय जैसे लोगों को  हँसने का साधन बना लेते हैं। शायद हम सबसे बड़ी भूल करते हैं किसी की दैव प्रदत्त  विकृति की वज़ह से उस पर हँसते हैं ...... हमें एक बार सोचना चाहिये किसी की विकृति पर क्यों हँसें क्या ज़रूरी है ऐसा करना ? 
      हां एक बात ज़रूर मुस्कुराने योग्य मुझे ज्ञात हुई की निर्भय के  हिज्जे बड़े होने की वज़ह से वो किसी के सेलफोन काल का ज़वाब खुद नहीं देता अक्सर अपने बेटे को पकड़ा देता है ताकि काल करने वाले का अधिक खर्च  न हो। जब वो लोगों का इतना ध्यान रखता है तो हम क्यों हँसते हैं उस पर...?
 यही सवाल है जो मुझे साल रहा है .  क्या आप देंगे इसका ज़वाब शायद नहीं ..   

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...