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18.6.23

अफगानी तालिबान को बुद्ध याद आए ...!

 

 साभार गूगल फोटो 


मुल्ला उमर अब एक इतिहास बन कयामत के फैसले का इंतज़ार कर रहा है, उधर तालिबान कुछेक पुराने कामों पर पुनर्विचार कर रहा है. इस क्रम में 5वीं सदी में बने बामियान के बुद्ध इनको याद आ रहे हैं हैं. बामियान में दो बुद्ध मूर्तियाँ 2001 तक मोजूद थीं.   मूर्तियों में पहली बड़ी मूर्ती 55 फीट  जिसे सलसल कहा  गया तथा दूसरी मूर्ती समामा जो 37 फीट की  थी. इन पहाड़ियों  में अनेकों गुफाएं हैं जिनका उपयोग यात्री गण (व्यापारी एवं बौद्ध भिक्षुक तथा अन्य लोग ) आश्रय स्थल के रूप में करते थे.

इससे पहले कि हम इस विषय पर कुछ बात करें सबसे पहले बुद्ध का बामियान से सम्बन्ध कैसे बना इस इतिहास पर एक दृष्टि डालते हैं.

*बामियान में बुद्ध प्रतिमाओं का  इतिहास*

माना जाता है कि सिल्क रोड जिसकी लम्बाई 65000 किलोमीटर है  का निर्माण 130 ईसा पूर्व किया गया था.  यह मार्ग चीन से भारत होते हुए अफगानस्तान, ईरान(बैक्ट्रिया जिसे बाख़्तर या तुषारिस्तानतुख़ारिस्तान और तुचारिस्तान भी कहा गया है  ) , तुर्की होते हुए यूरोप पहुंचता है. इस मार्ग का निर्माण किसने कराया इस की पुष्टि हेतु कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं हैं.

इस मार्ग ने अंतर महाद्वीपीय संबंध को स्थापित किया है. सिल्क रुट का चीनभारतमिस्रईरानअरब और प्राचीन रोम की महान सभ्यताओं के विकास पर गहरा असर पड़ा। 

 इस मार्ग से व्यापार के अलावा,  ज्ञानधर्मसंस्कृतिभाषाएँविचारधाराएँभिक्षुतीर्थयात्रीसैनिकघूमन्तू जातियाँऔर बीमारियाँ भी फैलीं। व्यापारिक नज़रिए से चीन रेशमचाय और चीनी मिटटी के बर्तन भेजता थाभारत मसालेहाथीदांतकपड़ेकाली मिर्च और कीमती पत्थर भेजता था और रोम से सोनाचांदीशीशे की वस्तुएँशराबकालीन और गहने आते थे। हालांकि 'रेशम मार्गके नाम से लगता है कि यह एक ही रास्ता था वास्तव में बहुत कम लोग इसके पूरे विस्तार पर यात्रा करते थे। अधिकतर व्यापारी इसके हिस्सों में एक शहर से दूसरे शहर सामान पहुँचाकर अन्य व्यापारियों को बेच देते थे और इस तरह सामान हाथ बदल-बदलकर हजारों मील दूर तक चला जाता था। शुरू में रेशम मार्ग पर व्यापारी अधिकतर भारतीय और बैक्ट्रियाई थेफिर सोग़दाई हुए और मध्यकाल में ईरानी और अरब ज़्यादा थे। रेशम मार्ग से समुदायों के मिश्रण भी पैदा हुएमसलन तारिम द्रोणी में बैक्ट्रियाईभारतीय और सोग़दाई लोगों के मिश्रण के सुराग मिले हैं।

इस रोड माध्यम से एशियाई अखंड भारत से सर्वाधिक व्यापार हुआ करता था। किंतु हिंदूकुश पहाड़ी के क्षेत्र में  जनजाति कबीलो द्वारा व्यापारियों के साथ लूटपाट की जाती थी। भारतीय एवं चीनी व्यापारियों ने इन लोगों को भी अपने व्यापार का साझीदार बनाया। बौद्ध मत  के प्रचार प्रसार से प्रभावित होकर हिंदूकुश पहाड़ी के क्षेत्र में लोगों ने बुद्ध की दो बड़ी प्रतिमाएं स्थापित कर दी इससे व्यवसायिक एवं सांस्कृतिक एकात्मता का सिलसिला भी प्रारंभ हो गया। कहते हैं कि कुषाणों ने बुद्ध की प्रतिमाओं को स्थापित कराया था ताकि भारतीय एवं चीनी व्यापारियों के साथ संबंध प्रगाढ़ हो सके ।      

 विश्व धरोहर को पुन: 2022   संरक्षित करने की पेशकश करने की इच्छा नए तालिबान ने की है, जबकि तालिबान का पुरोधा मुल्ला उमर इन मूर्तियों को खत्म करके बेहद प्रसन्न हुआ था.

*क्या वजह है इस पेशकश की ..!*

दरअसल इस क्षेत्र में स्थित मैंस अनसक इलाके में  में तांबे का भंडार है. नए तालिबान अपनी सत्ता चलाने तथा रियाया के लिए रोटी की व्यवस्था करने के लिए धन जुटाना चाहता है. चीन इस के लिए विनियोजन को तैयार है अत: धन कमाने के लिए चीन के सामने तालिबान ने यह पेशकश की है.   

*कैसा  है भारतीयों के प्रति तालिबानों का नजरिया एवं व्यवहार ..!*

इसमें को दो राय नहीं कि अफगानी अवाम एवं स्वयम तालिबान भारत के साथ अपनापन रखते हैं. वे भारतीयों से जिस गर्मजोशी एवं आत्मीयता से मिलते हैं उतनी गर्म जोशी उनके दिल में पाकिस्तानियों के लिए नहीं हैं. हाल में यू ट्यूब पर कुछ भारतीय व्लागर्स के वीडियो देख कर तो यही लगा.

*कुल मिला कर श्री नरेन्द्र मोदी का रूस के राष्ट्रपति पुतिन को दी गई सलाह है जिसमें वे कहते हैं कि – “आज का दौर युद्धों के लिए नहीं है.*  

     


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