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रविवार, फ़रवरी 21, 2021

मां यह चादर वापस ले ले...!


माँ खादी की चादर ले ले
माँ, कभी स्कूल में टीचर जी ने मुझे सिखाई थी मां खादी की चादर दे दे मैं गांधी बन जाऊंगा।
उन दिनों यह कविता मुझे एक गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में सुनानी थी। शायद मैं  चौथी अथवा पांचवी क्लास में पढ़ता था कुछ अच्छे से याद नहीं है। बहुत दिनों बाद पता चला कि मुझे गांधी एक सीमा के बाद गांधी नहीं बनना है। गांधी जी के शरीर में एक पवित्र आत्मा का निवास था यह कौन नहीं जानता। बहुत दिनों तक खादी और चादर में उलझा रहा। चरखा तकली हाफ खाकी पेंट  वाली सफेद बुशर्ट गांधी बहुत दिन तक दिमाग पर इसी तरह हावी थे अभी भी हैं।
     गांधी बनने के बाद बहुत दिनों तक मूर्ख बुद्धू बनकर शोषित होते रहना जिंदगी की गोया नियति बन गई हो।
  जलियांवाला बाग सुभाष चंद्र बोस सरदार भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद यह सब तो बहुत बाद में मिले। उम्र की आधी शताब्दी बीत जाने के बाद उम्र के आखिरी पड़ाव में आकर यह सब मिल पाए हैं।
     अहिंसा परम धर्म है इसे अस्वीकृत नहीं करता कोई भी। सभी इसे परम धर्म की प्रतिष्ठा देते हैं और जिंदगी भर देते रहेंगे यह सनातनी परंपरा है ।
    परंतु हर दुर्योधनों को याद रखना पड़ेगा कि -" पार्थ सारथी कृष्ण यदि अंतिम समझौता अर्थात कुल 5 गांव के आधार पर युद्ध रोकने का अनुरोध करें और दुर्योधनों के साथ सहमति ना बन सके तो युद्ध अवश्य ही होगा।"
    याद रख दुर्योधन षड्यंत्र से मुझे फर्क नहीं पड़ेगा मैं जो अर्जुन हूं अरिंजय कृष्ण का साथ मिलते ही कुरुक्षेत्र अवश्य जाऊंगा।
   सुधि पाठकों, समझ गए ना कि क्या कह रहा हूं। अब गांधी के अलावा बाकी सब से मिल चुका हूं। सब ने सब कुछ समझा दिया है सत्य असत्य सत्य के साथ प्रयोग भी समझ चुका हूं।
     इंद्रजीत नेमिनाथ ने कृष्ण को अवश्य समझाया होगा अहिंसा का अमृत रस हमारी संस्कृति में नेमिनाथ जी के पूर्व से भी राजा मांधाता ने स्थापित कर दी थी। संपूर्ण 24 तीर्थंकर यही तो समझाते रहे हैं। हमने कभी नहीं सोचा की सत्ता का रास्ता बंदूक की नली से जाता है हम तो सत्ता का रास्ता वसुधैव कुटुंबकम की स्थापना के लिए अश्मित के जरिए तलाशते रहे। बुद्ध ने भी यही तो किया था। बोधिसत्व बनो और बुद्ध तक की जैसे की यात्रा करो रोज जन्मो रोज मारो हर नए जन्म में नया चिंतन लेकर आओ अंततः बुद्ध बन जाओ। युद्ध नहीं करना है मत करो। पर युद्ध ना करने से अगर लाखों भारतीय मारे जाते हैं तो युद्ध ना करना हिंसा ही है। तुम विश्व को समाप्त करने के लिए विषाणु भेजते हो हम दुनिया को बचाने के लिए टीके भेज रहे हैं कभी सोचा है तुम अपनी मूल प्रवृत्ति के इर्द-गिर्द हो।
  तुम बाएं बाजू चलते रहो मैं दाएं बाजू चलता रहूंगा। तुम चिड़िया चूहे गिलहरी खरगोश मारते रहो हम चिडियों से चीटियों तक चुग्गा चुगाते रहेंगे ।
     आओ ना तुम भी दाएं बाजू आ जाओ । 


गुरुवार, सितंबर 02, 2010

कर्म योगी के बगैर भारत...! सम्भव न होता


कृष्ण के रूप में आज जिसे याद किया वो बेशक एक अदभुत व्यक्तित्व ही रहा होगा युगों युग से जिसे भुलाये न भुला पाना सम्भव हो सच जी हां यही सत्य है जो ब्रह्म है अविनाशी है अद्वैत है चिरंतन है . सदानन्द है.. वो जो सर्व श्रेष्ठ है जिसने दिशा बदल दी एक युग की उसे शत शत नमन





वो जो सब में है वो जिसमें सब हैं यानि एक ”सम्पूर्णता की परिभाषा” वो जिसे आसानी से परिभाषित कैसे करें  हमारे पास न तो शब्द हैं न संयोजना सच उस परम सत्य को हम आज ही नहीं सदा से कन्हैया कह के बुलाते हैं . सन्त-साधु, योगी,भोगी, ग्रहस्थ, सभी उसके सहारे होते हैं , सच उस परम तत्व को शत शत नमन
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स्वर: रचना, प्रस्तुति :अर्चना, आलेख: मुकुल
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शुक्रवार, अगस्त 14, 2009

विश्व के सबसे पहले कामरेड कृष्ण का कर्मवाद चिर स्थाई है

मेरे कवि अग्रज घनश्याम बादल ने कहा था अपने गीत में
"यहाँ खेल खेल में बाल सखा तीनो तिरलोक दिखातें हैं
रणभूमि में भी शांत चित्त गीता उपदेश सुनातें है "

Janmashtami
वही बृज का माखन चोर से महान कूटनितिज्ञ,प्रेम का सर्वश्रेष्ठ आइकान बने कृष्ण को अगर भारत और विश्व अगर सर्वकालीन योगेश्वर कह रहा है तो उसमें मुझे कोई धर्मभीरुता नज़र नहीं आ रही. कृष्ण को यदि भगवान कहा जा रहा है तो गलत नहीं है. कर्म योगी का सबक तत्-समकालीन परिस्थितियों के बिलकुल अनुकूल था. और तो और यह सबक भी उतना ही समीचीन है जितना कल था । जहाँ तक द्वापर काल की ग्रामीण व्यवस्था की कल्पना करें तो प्रतीत होता है कृष्ण के बगैर तत्-समकालीन ग्राम्य-व्यवस्था की पीर को समझने और मज़दूर किसान को शोषण से मुक्ति दिलाने का सामर्थ्य अन्य किसी में भी न था।कृष्ण का कंस शासित मथुरा को गांवों से सुख के साधन वंचित कराने की सफल कोशिश सिद्ध करती है - कि आज से 5100 सौ वर्ष पूर्व भी वो दौर आया था जब सर्वहारा को ठगे जाने की प्रवृत्ति व्याप्त थी योगेश्वर कृष्ण ने गोकुल की श्रमिकों को विलासी मथुरा से विमुख रखने का प्रयास किया, ठीक उसी तरह आज भी गाँवों से पल रहे शहरों ने गाँवों की उपेक्षा की है और स्वयं का विकास को जारी रखने की कोशिश की है किंतु कृष्ण के समान नेतृत्त्व क्षमता के कोई आइकान दृष्टिगोचर नहीं होते। माखन चोरी का नाता साफ़ तौर पर गाँव के उत्पादों का गाँव के अकिंचनों के लिए गाँव में ही रोकने से था। ताकि विकास समान रूप से आकार ले। सर्वहारा वर्ग शक्तिवान उनके बच्चे सामर्थ्य वान बनें ।
महान राजनैतिक क्षमताओं के धनी श्रीकृष्ण द्वारा कंस वध करने के उपरांत द्वारिका में राज्य स्थापना करने का अर्थ है समकालीन राजनैतिक ढाँचे में लोक-शक्ति की स्थापना करना । जो द्वापरयुग के लिए एक अत्यावश्यक घटना थी।
फ़िर कुरुक्षेत्र में 5 भाइयों को 100 पर विजय दिलाने की घटना कृष्ण के उस कार्य को उजागर करती है जिसे "आज हम शोषण के विरुद्ध आवाज़ कहतें हैं "कृष्ण ने नस्ल वर्ण वर्ग धर्म किसी बिन्दु पर भी विचार कर आध्यात्मिक /राजनीतिक /सामाजिक संरचना का प्रयास करते तो निश्चित ही कृष्ण सर्व कालीन सर्व मान्य नेता नहीं होते। आज की विश्व भर की राजनैतिक व्यवस्थाएँ जो धारण/वर्ण/वर्ग/जाति पर आधारित कृष्ण कालीन व्यवस्था से लोक हित में सीख सकतीं है।
उसी विश्व नायक उर्द्वरैता (नैष्ठिक-ब्रह्मचारी) के जन्म दिवस पर सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं

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(सभी फोटो वेब दुनिया से साभार)


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