मां यह चादर वापस ले ले...!
माँ खादी की चादर ले ले माँ, कभी स्कूल में टीचर जी ने मुझे सिखाई थी मां खादी की चादर दे दे मैं गांधी बन जाऊंगा। उन दिनों यह कविता मुझे एक गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में सुनानी थी। शायद मैं चौथी अथवा पांचवी क्लास में पढ़ता था कुछ अच्छे से याद नहीं है। बहुत दिनों बाद पता चला कि मुझे गांधी एक सीमा के बाद गांधी नहीं बनना है। गांधी जी के शरीर में एक पवित्र आत्मा का निवास था यह कौन नहीं जानता। बहुत दिनों तक खादी और चादर में उलझा रहा। चरखा तकली हाफ खाकी पेंट वाली सफेद बुशर्ट गांधी बहुत दिन तक दिमाग पर इसी तरह हावी थे अभी भी हैं। गांधी बनने के बाद बहुत दिनों तक मूर्ख बुद्धू बनकर शोषित होते रहना जिंदगी की गोया नियति बन गई हो। जलियांवाला बाग सुभाष चंद्र बोस सरदार भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद यह सब तो बहुत बाद में मिले। उम्र की आधी शताब्दी बीत जाने के बाद उम्र के आखिरी पड़ाव में आकर यह सब मिल पाए हैं। अहिंसा परम धर्म है इसे अस्वीकृत नहीं करता कोई भी। सभी इसे परम धर्म की प्रतिष्ठा देते हैं और जिंदगी भर देते रहेंगे यह सनातनी परंपरा है । परंतु हर दुर्योधनों को