मंहगा हुआ बाज़ार औ'जाड़ा है इस क़दर- किया है रात भर सूरज का इंतज़ार.!!
हमने उनको यक़ीन हो कि न हो हैं हम तो बेक़रार चुभती हवा रुकेगी क्या कंबल है तारतार !! मंहगा हुआ बाज़ार औ'जाड़ा है इस क़दर- किया है रात भर सूरज का इंतज़ार.!! हाक़िम ने फ़ुटपाथ पे आ बेदख़ल किया - औरों की तरह हमने भी डेरा बदल दिया ! सुनतें हैं कि सरकार कल शाम आएंगें- जलते हुए सवालों से जाड़ा मिटाएंगें ! हाक़िम से कह दूं सोचा था सरकार से कहे मुद्दे हैं बहुत उनको को ही वो तापते रहें....! लकड़ी कहां है आप तो - मुद्दे जलाईये जाड़ों से मरे जिस्मों की गिनती छिपाईये..!! जी आज़ ही सूरज ने मुझको बता दिया कल धूप तेज़ होगी ये वादा सुना दिया ! तू चाहे मान ले भगवान किसी को भी हमने तो पत्थरों में भगवान पा लिया !! कहता हूं कि मेरे नाम पे आंसू गिराना मत फ़ुटपाथ के कुत्तों से मेरा नाता छुड़ाना मत उससे ही लिपट के सच कुछ देर सोया था- ज़हर का बिस्किट उसको खिलाना मत !! गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"