काव्यलोक से साभार |
मृत्यु ऐसी भयावह नहीं |
आदरणीय पाठकों ने अंतिम कविता 01 एवम अंतिम कविता 02 देख कर जाने क्या क्या कयास लगा लिये होंगे मुझे नहीं मालूम पर इतना अवश्य जानता हूं कि - भाव अचानक उभरे कि शब्दों में पिरोकर लिख देने बाध्य करता है मेरे मन का कवि केवल कवि है. जाने अनजाने दवाव डालता है तो लिख देता हूं- आप किसी के जीवन पर गौर करें तो पाएंगे वो जन्म से मृत्यु तक एक अनवरत असाधारण कविता ही तो है. पूरे नौ रसों से विन्यासित मानव-जीवन में सब कुछ एक कविता की मानिंद चलता है वास्तव में मेरी उपरोक्त दौनों कविताएं एक स्थिति चित्रण मात्र है जिसे न लिखता तो शायद अवसादों से मुक्त न होता कुल मिलाकर हर सृजन के मूलाधार में एक असामान्य स्थिति सदा होती ही है. प्रथम कविता यदि क्रौंच की कराह से उपजी थी तो पक्के तौर पर माना जावे कि हर असाधारण परिस्थिति के सृजन को जन देती ही है. जो जीवन के रस में मग्न हैं उनके लिये "मृत्यु" एक दु:ख और भय कारक घटना है. लेकिन वो जो असाधारण हैं जैसे अत्यधिक निर्लिप्त (महायोगी संत उत्सर्गी जैसे भगत सिंह आदि )अथवा अत्यधिक शोकाकुल अथवा निरंतर पराजित उसे मृत्यु में सौन्दर्य का एहसास होता है. :-
सच बेहद खूबसूरत हो
नाहक भयभीत होते है
तुमसे अभिसार करने
तुम बेशक़ अनिद्य सुंदरी हो
अव्यक्त मधुरता मदालस माधुरी हो
बेजुबां बना देती हो तुम
बेसुधी क्या है- बता देती हो तुम
तुम्हारे अंक पाश में बंध देव सा पूजा जाऊंगा
पलट के फ़िर
कभी न आऊंगा बीहड़ों में इस दुनियां के
ओ मेरी सपनीली तारिका
शाश्वत पावन अभिसारिका
तुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा
नाहक भयभीत होते है
तुमसे अभिसार करने
तुम बेशक़ अनिद्य सुंदरी हो
अव्यक्त मधुरता मदालस माधुरी हो
बेजुबां बना देती हो तुम
बेसुधी क्या है- बता देती हो तुम
तुम्हारे अंक पाश में बंध देव सा पूजा जाऊंगा
पलट के फ़िर
कभी न आऊंगा बीहड़ों में इस दुनियां के
ओ मेरी सपनीली तारिका
शाश्वत पावन अभिसारिका
तुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा
यह अभिव्यक्ति किसी की भी हो सकती जो घोर नैराश्य से घिरा हो या महायोगी संत उत्सर्गी हो. महा मिलन को बस ये दो ही प्रकार लोग सहज स्वीकारतें हैं.सामान्य नहीं. यह वो बिंदु है जहां से "आत्म-हत्या शब्द को अर्थ मिलता है महायोगी संत उत्सर्गी यह कृत्य नहीं करते वे भी नहीं करते जो घोर नैराश्य भोग रहे हों केवल वे ही ऐसा करतें हैं जो क्षीण और विकल्पहीन हो जातें हैं. मुझे हुआ है मृत्यु में सौंदर्य का बोध अब भय नहीं खाता पर संघर्ष मेरी आदत है और प्राथमिकता भी सो जो मित्र मेरी कविताओं से कुछ अर्थ निकाल रहे थे वे इससे समझें मुझे
14 टिप्पणियां:
सच बेहद खूबसूरत हो
नाहक भयभीत होते है
तुमसे अभिसार करने
तुम बेशक़ अनिद्य सुंदरी हो
अव्यक्त मधुरता मदालस माधुरी हो
बेजुबां बना देती हो तुम
बेसुधी क्या है- बता देती हो तुम
तुम्हारे अंक पाश में बंध देव सा पूजा जाऊंगा..
behetreen rachna !
.
शुक्रिया
आभार
बेहतरीन रचना...
सुन्दर रचना.
sundar rachna
अवसाद से बाहर निकलो तात
संसारिक सौदर्य क्षण भंगुर है
अंतर के सौंदर्य का पान करो
संसार में एक वही अजर है।
एक बेहद गहन अभिव्यक्ति जहां शब्द खुद बोल रहे हैं……………लाजवाब रचना।
इतनी सुन्दर भी हो सकती है, कमाल है..
बेह्तरीन !!
आप का ब्लॉग स्वस्त ही नहीं अति स्वस्त है.
अर्थपूर्ण मनोभाव को समेटे है हर शब्द..... बेहतरीन प्रस्तुति.....
सौन्दर्य बोध कराने का आभार......
Kya Bat hai
मृत्यु में सौन्दर्य का बोध...जब हम जिंदगी और मौत के अंतर्संबंधो से सही अर्थों में परिचित होते है, तो मन मौत में भी सौदर्य खोज लेता है. जैसे बीज को मिट्टी में मिलकर अंतत: मरना पड़ता है तभी वो हरियाली का स्वप्न बन कोई पौधा या पेड़ बन जन्मता है. आभार.
सादर,
डोरोथी.
एक टिप्पणी भेजें