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बुधवार, जनवरी 18, 2012

फिलीस्तीनियों के "वापसी के अधिकार" को समाप्त करना


डैनियल
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1967 से 1993 के मध्य पश्चिमी तट या गाजा से कुछ सैकडों की संख्या में ही फिलीस्तीनियों ने इजरायली अरब लोगों से विवाह कर (जो कि इजरायल की कुल जनसंख्या का पाँचवा भाग हैं) और इजरायल की नागरिकता प्राप्त कर इजरायल में निवास करने के अधिकार को प्राप्त किया। इसके बाद ओस्लो समझौते ने कम चर्चित परिवार पुनर्मिलन प्रावधानों के द्वारा इस छोटी सी धारा को एक नदी में परिवर्तित कर दिया। 1994 से 2002 के मध्य फिलीस्तीन अथारिटी के 137,000 निवासी इजरायल में आ चुके हैं और उनमें से अनेक छल और बहुविवाह में संलिप्त हैं।
इजरायल के समक्ष दो कारण हैं जिसके चलते उसे इस अनियंत्रित आप्रवास से चिंतित होना चाहिये। पहला, यह सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करता है। शिन बेट सुरक्षा सेवा के प्रमुख युवाल दिस्किन ने 2005 में ध्यान दिलाया था कि आतंक की गतिविधियों में लिप्त पाये गये 225 इजरायली अरब में से 25 जो कि 11 प्रतिशत है अवैध रूप से परिवार पुनर्मिलन प्रावधानों के तहत इजरायल में प्रविष्ट हुए थे। वे 19 इजरायलियों को मारने आये और 83 को घायल किया और उनमें से सबसे अधिक दुष्ट शादी तुबासी था जिसने कि 2002 में हमास की ओर से हाइफा के माज्जा रेस्टोरेंट पर आत्मघाती आक्रमण किया और 15 लोगों की ह्त्या की।
दूसरा, यह चोरी छुपे फिलीस्तीनियों के " वापसी के अधिकार" के रूप में कार्य करता है और इजरायल के यहूदी स्वरूप को कमतर बनाता है। जो 137,000 नये नागरिक इजरायल में आये हैं वे इजरायल की कुल जनसंख्या का 2 प्रतिशत हैं जो कि कम संख्या नहीं है। युवाल स्टीनिज जो कि अब वित्त मन्त्री हैं उन्होंने 2003 में ही फिलीस्तीन अथारिटी की परिवार पुनर्मिलन की नीति को इजरायल में फिलीस्तीनियों की संख्या बढाने और इसके यहूदी चरित्र को कमतर करने के प्रयास के रूप में आँक लिया था। बाद में एक फिलीस्तीनी मध्यस्थ अहमद क़ुरेयी ने इस आशंका को सही सिद्ध किया , " यदि इजरायल सीमा के सम्बंध में हमारी योजना को अस्वीकार करता है ( एक फिलीस्तीनी राज्य ) तो हमें इजरायल की नागरिकता की माँग करनी चाहिये"
इन दो खतरों की प्रतिक्रिया में इजरायल की संसद ने जुलाई 2003 में " इजरायली कानून में नागरिकता और प्रवेश" कानून पारित किया। इस कानून के अंतर्गत फिलीस्तीनी परिवारों को स्वतः ही इजरायल की नागरिकता या निवास को प्रतिबंधित कर दिया गया और इसके साथ कुछ तदर्थ और सीमित अपवाद लगा दिये गये जिसके द्वारा गृह मंत्रालय को यह प्रमाणित करना होता है कि वे स्वयं को इजरायल के साथ जुडा हुआ पाते हैं और अन्य प्रकार से सहायक हैं। काफी कटु आलोचना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने वर्ष 2005 में इस बात को दुहराया , " इजरायल राज्य को अपने यहूदी चरित्र को संरक्षित रखने और बनाये रखने का पूरा अधिकार है चाहे इसका अर्थ यह भी हो कि इससे नागरिकता की नीति पर भी प्रभाव पड्ता हो" ।
इस कानून को चुनौती देने वाले वकील सावसान जाहेर के अनुसार अपवाद के कुल 3,000 प्रार्थना पत्र में से केवल 33 को ही संस्तुति दी गयी। परिवार पुनर्मिलन के मामले में कठोर प्रावधान अपनाने वाला इजरायल अकेला देश नहीं है उदाहरण के लिये डेनमार्क में ऐसा कानून दशकों से प्रयोग में है यदि अन्य लोगों को छोड दें तो इस देश का इजरायल का पति भी नीदरलैंड और आस्ट्रिया की तरह ही एक मुकद्दमा लड रहा है।
पिछले सप्ताह इजरायल के सर्वोच्च न्यायालय ने 6-5 के बहुमत से इस मह्त्वपूर्ण कानून को स्थाई बना दिया। किसी व्यक्ति के विवाह के अधिकार को मान्यता देते हुए भी न्यायालय ने इस बात से इंकार कर दिया कि इसके साथ ही निवास का अधिकार भी प्राप्त होता है। न्यायालय के मनोनीत प्रधान अशर दन ग्रुनिस ने अपने बहुमत के निर्णय में अपने विचार व्यक्त किये , " मानवाधिकार राष्ट्रीय आत्मह्त्या का निर्देश नहीं है" ।
यहूदियों की ओर फिलीस्तीनी आप्रवास की यह परिपाटी 1882 से आरम्भ हुई जब यूरोप के यहूदियों ने अपना अलिया ( उत्थान का हिब्रू शब्द , जिसका अर्थ है इजरायल भूमि के लिये आप्रवास) । उदाहरण के लिये विन्स्टन चर्चिल ने इस बात को पाया था कि किस प्रकार फिलीस्तीन में यहूदी आप्रवास से उसी प्रकार अरब आप्रवास को उत्प्रेरणा मिली। , " उत्पीडन से कहीं दूर अरब लोग देश में बडी संख्या में भर गये और अपने को कई गुना बढाया जब तक कि उनकी जनसंख्या बढ नहीं गयी"।
संक्षेप में, आपको इजरायलवाद ( जायोनिस्ट) के उच्च स्तरीय जीवन और कानून पालक समाज का लाभ प्राप्त करने के लिये यहूदी होना आवश्यक नहीं है। इस विषय के एक छात्र जान पीटर्स का अनुमान है कि एक दोहरा यहूदी और अरब आप्रवासी " कम से कम बराबर सापेक्ष का" 1893 से 1948 के मध्य विकसित हुआ। इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है , अन्य आधुनिक यूरोपवासी जो कि कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बसे ( आस्ट्रेलिया और अफ्रीका) और ऐसे समाज का निर्माण किया जिन्होंने कि मूलवंशियों को भी आकर्षित किया।
फिलीस्तीनी अलिया की यह परिपाटी इजरायल के जन्म के समय से ही जारी है। वे इजरायलवाद विरोधी ( जायोनिस्ट विरोधी) हो सकते हैं लेकिन आर्थिक आप्रवासी, राजनीतिक विद्रोही , समलैंगिक , सूचनाकर्ता और सामान्य मतदाता जो आत्मनिर्भर हैं वे फिलीस्तीन अथारिटी या हमास के नर्क के गर्त की अपेक्षा मध्य पूर्व के विशिष्ट आधुनिक और उदार राज्य को पसंद करते हैं। और यह भी ध्यान देने योग्य है कि कुछ इजरायली अरब ही अपने विवाहित जोडे के साथ पश्चिमी तट और गाजा में रहना पसंद करते है जबकि कोई भी कानूनी बाधा उन्हें ऐसा करने से नहीं रोकती।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का एक दीर्घकालिक मह्त्व है। जैसा किIsrael Hayom में एली हजान ने लिखा है, " न्यायालय ने अघोषित और घोषित दोनों ही प्रकार से निर्णय दे दिया है कि इजरायल एक यहूदी राज्य है, और इसके साथ ही वर्षों पुरानी बहस का समाधान कर दिया है" । पिछले दरवाजे से " वापसी के अधिकार" को बंद करने से इजरायल की इजरायलवादी ( जायोनिस्ट) पहचान और भविष्य सुरक्षित हो गया।


शनिवार, जनवरी 07, 2012

दक्षिणी सूडान, इजरायल का नया मित्र


डैनियल
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द वाशिंगटन टाइम्स हिन्दी अनुवाद - अमिताभ त्रिपाठी
ऐसा प्रतिदिन नहीं होता कि जब एकदम नये देश का नेता अपनी पहली विदेश यात्रा विश्व के सबसे अधिक घिरे देश की राजधानी जेरूसलम के रूप में करे परंतु दक्षिणी सूडान के राष्ट्रपति सल्वा कीर ने अपने विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री के साथ दिसम्बर के अंत में यही किया। इजरायल के राष्ट्रपति शिमोन पेरेज ने इस यात्रा को अत्यंत " आंदोनलकारी ऐतिहासिक क्षण" बताया। इस यात्रा से इस बात को बल मिला है कि दक्षिणी सूडान जेरूसलम में अपना दूतावास स्थापित करने वाला है और ऐसा करने वाली विश्व की वह पहली सरकार होगी।
यह अस्वाभाविक घटनाक्रम एक अस्वाभाविक कथा का परिणाम है.
आज के सूडान ने उन्नीसवीं शताब्दी में स्वरूप ग्रहण किया था जब ओटोमन साम्राज्य ने इसके उत्तरी क्षेत्र को नियन्त्रण में लिया और इसके दक्षिणी क्षेत्र को विजित करने का प्रयास किया। ब्रिटेन ने काहिरो से शासन करते हुए आधुनिक राज्य का खाका 1898 में तैयार किया और अगले पचास वर्षों तक उत्तरी मुस्लिम और ईसाई –प्रकृतिवादियों वाले दक्षिणी क्षेत्र पर अलग अलग शासन किया। 1948 में उत्तरी भाग के दबाव के आगे झुकते हुए ब्रिटिश शासन ने दोनों प्रशासन को उत्तरी नियंत्रण में खारतोम के अन्तर्गत कर दिया और इस प्रकार सूडान में मुस्लिम प्रभाव हो गया और अरबी इसकी आधिकारिक भाषा हो गयी।
इसी प्रकार 1956 में स्वतन्त्रता प्राप्त होते ही यहाँ गृह युद्ध आरम्भ हो गया जब दक्षिणी क्षेत्र के लोग मुस्लिम प्रभुत्व से मुक्त होने के लिये संघर्ष करने लगे। उनके लिये यह सौभाग्य की बात थी कि प्रधानमंत्री डेविड बेन गूरियन की " क्षेत्रीय नीति" ने मध्य पूर्व में गैर अरब लोगों के लिये इजरायल के समर्थन का मार्ग प्रशस्त किया जिसमें कि दक्षिणी सूडान भी शामिल था। इजरायल की सरकार ने 1972 तक चले सूडान के गृह युद्ध में सहायता दी जो कि उनके नैतिक , कूटनीतिक सहायता और सशस्त्र सहायता का मुख्य आधार रहा।
श्रीमान कीर ने जेरूसलम में इस योगदान को सराहा और कहा, " इजरायल ने सदैव ही दक्षिणी सूडान के लोगों की सहायता की है। आपके सहयोग के बिना हमारा उत्थान सम्भव नहीं था। दक्षिणी सूडान की स्थापना में आपने हमारे साथ संघर्ष किया है" । इसके उत्तर में श्रीमान पेरेज ने 1960 के आरम्भ में पेरिस में अपनी उपस्थिति को याद किया जब उन्होंने प्रधानमंत्री लेवी एस्कोल के साथ दक्षिणी सूडान के नेताओं के साथ इजरायल के प्रथम सम्पर्क का आरम्भ किया था।
सूडान का गृह युद्ध 1956 से 2005तक रुक रुक कर चलता रहा। समय के साथ उत्तरी मुस्लिम दक्षिण के अपने साथी देशवासियों के प्रति क्रूर होते चले गये और इसके परिणामस्वरूप 1980-90 के दशक में नरसंहार , गुलामी और ह्त्याकाण्ड जैसे दृश्य सामने आये। अफ्रीका के अनेक दुखद प्रसंगों की भाँति ऐसी समस्याओं ने भी दयाभावी पश्चिमी लोगों पर कोई प्रभाव नहीं छोडा सिवाय अमेरिका के दो आधुनिक स्वतंन्त्रतावादियों के जिन्होंने असाधारण प्रयास किये ।
1990 के मध्य में क्रिश्चियन सोलिडैरिटी इंटरनेशनल के जान ईबनर ने हजारों गुलामों को मुक्त कराया तथा अमेरिकन एंटी स्लेवरी ग्रुप की ओर से चार्ल्स जेकब्स ने अमेरिका में " सूडान अभियान" चलाकर अनेक संगठनों का व्यापक गठबंधन बनाया। जैसा कि सभी अमेरिकी गुलामी को अभिशाप मानते हैं तो इन स्वतंत्रतवादियों ने दक्षिण और वामपंथ का एक अद्वितीय गठबंधन बनाया जिसमें बार्ने फ्रैंक और सैम ब्राउनबैक, अमेरिकी कांग्रेस के अश्वेत समूह और पैट राबर्टसन , अश्वेत पादरी और श्वेत धर्मांतरणवादी। इसके विपरीत लुइस फराखान पूरी तरह बेनकाब हो गये जब उन्होंने सूडान में गुलामी होने की बात को ही नकार दिया।
स्वतंत्रतावादियों के प्रयासों को सफलता 2005 में मिली जब जार्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन ने खारतोम पर दबाव डाला कि वह 2005 में व्यापक शांति समझौते पर हस्ताक्षर करे ताकि युद्ध समाप्त हो और दक्षिणी क्षेत्र के लोगों को स्वतंत्र होने के लिये मत का अवसर प्राप्त हो। उन्होंने जनवरी 2011 में पूरे उत्साह के साथ ऐसा किया और 98 प्रतिशत लोगों ने सूडान से अलग होने के लिये मत दिया और इससे छह माह पश्चात दक्षिणी सूडान गणतंत्र के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया जिसे कि श्रीमान पेरेज ने " मध्य पूर्व के इतिहास में एक मील का पत्थर बताया"।
इजरायल के लम्बे समय के निवेश का लाभ मिला है। दक्षिणी सूडान उस नयी क्षेत्रीय रणनीति में पूरी तरह उपयुक्त बैठता है जिसमें कि साइप्रस, कुर्द, बरबर और शायद एक दिन उत्तर इस्लामवादी ईरान भी शमिल हो। दक्षिणी सूडान के चलते प्राकृतिक ससाधनों पर पहुँच हो सकेगी विशेष रूप से तेल। नील नदी के जल की वार्ता में इसकी भूमिका से मिस्र पर भी कुछ दबाव बन सकेगा । व्यावहारिक लाभ से परे नया गणतंत्र अपनी निष्ठा, समर्पण और उद्देश्यके प्रति लगन के द्वारा गैर मुस्लिम जनता द्वारा इस्लामी साम्राज्यवाद के प्रतिरोध का प्रेरणाप्रद उदाहरण प्रस्तुत करता है । इस प्रकार दक्षिणी सूडान का जन्म तो इजरायल को ही प्रतिध्वनित करता है।
यदि कीर की जेरूसलम की यात्रा वास्तव में मील का पत्थर है तो दक्षिणी सूडान को अपनी दरिद्रता, अंतरराष्ट्रीय संरक्षण और बीमार संस्थाओं की स्थिति से बाहर निकल कर आधुनिकता और वास्तविक स्वतंत्रता की ओर आना होगा। इस मार्ग पर चलने के लिये आवश्यक है कि नेतृत्व राज्य के नवीन संसाधनों का शोषण करने या खारतोम को विजित कर नया सूडान निर्मित करने का स्वप्न देखने के स्थान पर सफल राज्य की नींव रखे।
इजरायल और अन्य पश्चिमवासियों के लिये इसका अर्थ कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा में सहायता प्रदान करना है और उन्हें यह सलाह देना है कि सुरक्षा और विकास पर ध्यान केंद्रित करें परंतु अपनी इच्छा के युद्ध से बचें। एक सफल दक्षिणी सूडान वास्तव में एक क्षेत्रीय शक्ति बन सकता है और न केवल इजरायल का वरन समस्त पश्चिम का एक शक्तिशाली मित्र हो सकता है।

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