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17.6.16

दशरथ मांझी को समर्पित गीत / गीतकार मुकुल

आभार सहित :- प्रशांत ब्लागवर्ल्ड 
1934 में बिहार में जन्में दलित श्री दशरथ मांझी एक संसाधन हीन गाँव अतरी के निवासी थे.  उनके गाँव की ज़रूरतें  पास के कस्बे वजीरगंज से पूरी होतीं थीं. जहां जाने के लिए  गहलोर पर्वत  पार करना करना था । दशरथ मांझी की पत्नी फागुनी एक दर्रे में गिर गईं इलाज़ के लिए जरूरी दवाएं लाने में विलम्ब की वज़ह से उनकी पत्नी की मौत हो गई, इस घटना से दशरथ बेहद दुखी हुए और  फिर  संकल्प लिया कि वह अकेले दम पर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता बनाएंगें  अपने गाँव  अतरी को  वजीरगंज कस्बे से जोड़ेंगे .1960  से वे लगातार श्रम करते रहे और उनका संकल्प 1982 में पूर्ण हुआ.  360 फ़ुट-लम्बा यानी 110 मी, 25 फ़ुट-गहरा (7.6 मी) 30 फ़ुट-चौडे  (9.1 मी) रास्ते के निर्माण में उनके जीवन के महत्व-पूर्ण 22 बरस लगे. दशरथ जी का निधन 17 अगस्त 2007  में हुआ. ऐसी महान हस्ती को नमन के साथ – ये गीत समर्पित है .
      जब संकट हो जाएँ परबत
               मन चाहे हो जाऊं दशरथ !
               उठा हथोड़ा चीरूं  सीना
               राह में बाधा रुकीं हैं कबतक !!

बाँध के चिंता ताक पे रख दूं
रोटी ऊँची शाख पे रख दूं ..?
नई राह का निर्माता हूँ  –
खुद को खुद की आग पे रख दूं  !!
अब सीने में आग यही है 
देखें खुलता रास्ता कबतक !!
           उठा ...........
रोटी सूखी प्याज नमक संग 
हरी मिर्च का स्वाद, गज़ब रंग !
कुत्ते को इक रोटी देकर  -
किया है पुख्ता , साथी का संग !! 
घर के भीतर जब तक दशरथ -
कूँ कूँ करे द्वारे को तकतक !!
         उठा ...........
पागल हो तुम कुछ कहते थे 
कुछ चुप रह कर कुछ कहते थे 
था मैं प्रियतम का अपराधी -
क्यों सुनता वो क्या कहते थे ?
उठा हथौड़ा काटूं वो परबत -
जिसने रोका साँसों का पथ !
         उठा.............
जो हंसते थे साथ हुए वो 
छठ पूजन परसाद हुए वो .
बहुतेरों ने साथ दिया फिर -
संगसंग जागे परभात हुए वो !!
कजरी-आल्हा-बिरहा गाके -
तोड़ा मिलजुल परबत का मद !! 
         उठा.............
सुन फगुनी बाईस बरस में 
रास्ता छीन लिया परबत से .
अतरी से अब बजीरगंज तक -
पहुंच सकेंगे सब के सब झटपट !!
छठ-मैया अब मुझे उठा ले -
हुआ पूर्ण जीने का मकसद !!
         उठा.............
  



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