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                 इन्सान के पैरों में जूता और खोपड़ी में अक्ल एक साथ आई. कहते हैं आदिम युग में  लोग बिना जूते और बिना दिमाग के कंदराओं में लुक छिप के रहा करते थे कि एक दिन अचानक उसे आग की ताक़त का  एहसास हुआ. फ़िर चका खोजा फ़िर फ़िर पत्थर का आयुध बनाया तभी महान रचनाकार से उनकी  सहचरी ने पूछा :-"हे प्रभू मनुष्य प्रजाति अभी भी अपूर्ण है इसे पूर्ण करो वरना मैं कंद मूल फ़ल आदि खाए बिना कठोर तप के लिये वन गमन करूंगी.. " प्रभू बोले :-"हे भागवान, यदि मैने इन को तीक्ष्ण बुद्धि दे दी तो ये पहले  विकासोन्मुख होंगे फ़िर विनाश की ओर अग्रसरित होंगे " आभार अर्कजेश जी का   सहचरी ने मौन धारण कर लिया. उस समय प्रभू को लगा कि  सहचरी के बिना उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा सो बोले है ठीक है.इस तरह   नारी हट के आगे भगवान भी नि:शब्द हो गये . माया के वशी भूत प्रभू ने मनुष्य को पैरों में जूते पहने का आईडिया भेज दिया. आदिम समाज ने खड़ाऊ फ़िर जूती फ़िर उसके पुर्लिंग यानी जूते का अविष्कार किया.       प्रभू के भेजे  आईडिये से हुई खोज से आगे तक पहुंचे लोगों ने रज़त,स्वर्ण मण्डित पादुकाओं, जूत