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3.1.21

ज्योतिर्मय चिंतक : माँ ज्योति बा फुले आलेख प्रोफेसर आनंद राणा इतिहासकार

          ज्योतिर्मय चिंतक 
        माँ ज्योति बा फुले 
आधुनिक भारत की प्रथम महिला शिक्षक, मराठी आदिकवयित्री,नारी शिक्षा और सुधार की प्रथम महानायिका -वीरांगना सावित्री बाई फुले 🙏🙏 "या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थिता..विद्या रुपेण संस्थिता..सावित्री रुपेण संस्थिता.. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:" अवतरण दिवस पर शत् शत् नमन है 
     लेखक प्रो. आनंद राणा
    🙏 🙏 🙏🙏🙏🙏🙏
19वीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाने वाली देश की पहली महिला शिक्षिका को जानते हैं? ये थीं महाराष्ट्र में जन्मीं सावित्री बाई फुले जिन्होंने अपने पति दमित चिंतक समाज सुधारक ज्योति राव फुले से पढ़कर सामाजिक चेतना फैलाई. उन्होंने अंधविश्वास और रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ने के लिए लंबा संघर्ष किया. आइए जानें सावित्री बाई फुले के जीवन के बारे में कि किस तरह उन्होंने अपने संघर्ष से मंजिल पाई। सावित्रीबाई ने छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल और विधवा विवाह निषेध के खिलाफ पति के साथ काम कियाखुद पढ़ीं ज्योतिबा राव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले, नारी शिक्षा की अग्रणी बनींसावित्रीबाई ने लड़कियों के लिए तब स्कूल खोले जब बालिकाओं को पढ़ाना-लिखाना सही नहीं माना जाता था। 19वीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाने वाली देश की पहली महिला शिक्षिका को जानते हैं? ये थीं महाराष्ट्र में जन्मीं सावित्री बाई फुले जिन्होंने अपने पति दलित चिंतक समाज सुधारक ज्योति राव फुले से पढ़कर सामाजिक चेतना फैलाई. उन्होंने अंधविश्वास और रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ने के लिए लंबा संघर्ष किया. आइए जानें सावित्री बाई फुले के जीवन के बारे में कि किस तरह उन्होंने अपने संघर्ष से मंजिल पाई.सावित्रीबाई फुले 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थ‍ित नायगांव नामक छोटे से गांव में पैदा हुई थीं. महज 9 साल की छोटी उम्र में पूना के रहने वाले ज्योतिबा फुले के साथ उनकी शादी हो गई. विवाह के समय सावित्री बाई फुले पूरी तरह अनपढ़ थीं, तो वहीं उनके पति तीसरी कक्षा तक पढ़े थे. जिस दौर में वो पढ़ने का सपना देख रही थीं, तब दलितों के साथ बहुत भेदभाव होता था. उस वक्त की एक घटना के अनुसार एक दिन सावित्री अंग्रेजी की किसी किताब के पन्ने पलट रही थीं, तभी उनके पिताजी ने देख लिया. वो दौड़कर आए और किताब हाथ से छीनकर घर से बाहर फेंक दी. इसके पीछे ये वजह बताई कि शिक्षा का हक़ केवल उच्च जाति के पुरुषों को ही है, दलित और महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करना पाप था. बस उसी दिन वो किताब वापस लाकर प्रण कर बैठीं कि कुछ भी हो जाए वो एक न एक दिन पढ़ना जरूर सीखेंगी.
वही लगन थी कि एक दिन उन्होंने खुद पढ़कर अपने पति ज्योतिबा राव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. बता दें, साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश का सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना की थी. वहीं, अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला गया था. उन्‍होंने 28 जनवरी, 1853 को गर्भवती बलात्‍कार पीड़ितों के लिए बाल हत्‍या प्रतिबंधक गृह की स्‍थापना की.स्कूल के लिए निकलीं तो खाए पत्थर! 
बताते हैं कि ये वो दौर था कि सावित्रीबाई फुले स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे. उन पर गंदगी फेंक देते थे. सावित्रीबाई ने उस दौर में लड़कियों के लिए स्कूल खोला जब बालिकाओं को पढ़ाना-लिखाना सही नहीं माना जाता था. सावित्रीबाई फुले एक कवयित्री भी थीं. उन्हें मराठी की आदि कवयित्री के रूप में भी जाना जाता था.कुरीतियों के खिलाफ उठाई आवाज
सावित्रीबाई ने 19वीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया. सावित्रीबाई ने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलीवरी करवा उसके बच्चे यशंवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया. दत्तक पुत्र यशवंत राव को पाल-पोसकर इन्होंने डॉक्टर बनाया.
सावित्रीबाई फुले के पति ज्‍योतिराव फुले की मृत्यु सन् 1890 में हुई थी, तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कामों को पूरा करने के लिए संकल्प लिया था. उसके बाद सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च, 1897 को प्लेग के मरीजों की देखभाल करने के दौरान हुई. उनका पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता. उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने- लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने और ब्राह्मणवादी ग्रंथों को फेंकने की बात करती थीं.उनकी शिक्षा पर लिखी मराठी कविता का हिंदी अनुवाद पढ़ें
"जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती
काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो
ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते हैं
इसलिए, खाली ना बैठो,जाओ, जाकर शिक्षा लो
दमितों और त्याग दिए गयों के दुखों का अंत करो, तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है
इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो "🙏 🙏
सत्यशोधक समाज की स्थापना की! 
सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा ने 24 सितंबर, 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की. उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी शुरू की और इस संस्था के द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसम्बर 1873 को कराया गया. 28 नवंबर 1890 को बीमारी के चलते ज्योतिबा की मृत्यु हो गई थी. ज्योतिबा के निधन के बाद सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले पर आ गई. उन्होंने जिम्मेदारी से इसका संचालन किया. सावित्रीबाई एक निपुण कवयित्री भी थीं. उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत भी माना जाता है. वे अपनी कविताओं और लेखों में हमेशा सामाजिक चेतना की बात करती थीं. सावित्री बाई फुले इस देश की पहली महिला शिक्षिका होने के साथ साथ अपना पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर स्त्री और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में देने के लिए हमेशा याद की जाएंगी... अवतरण दिवस पर शत् शत् नमन है 🙏 🙏 प्रेषक - डॉ आनंद सिंह राणा, इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत 💐 💐

28.4.18

“बालभवन ने संस्कारधानी को गौरवान्वित किया है : मनीष शर्मा ”


“बालभवन ने संस्कारधानी को गौरवान्वित किया है : मनीष शर्मा  
                                         
                                             
महिला बाल विकास विभाग द्वारा संचालित संभागीय बालभवन की उत्तरोत्तर बढ़ती गतिविधियों एवं टीम बालभवन के प्रयासों से बालभवन के प्रतिभाशाली  बच्चों की संख्या  अब प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय पर क्रमश: बढ़ रही है. विशाल भारत के प्रतिभाशाली बच्चों में देश भर के 700 बच्चों में बालभवन के 8 बच्चों एवं बालभवन से सम्बद्ध जबलपुर संभाग मंडला, नरसिंहपुर सिवनी  एवं शहडोल संभाग के अनूपपुर एवं सिंगरौली जिलों के  7 बच्चों को हार्दिक शुभकामनाएं . तदाशय के विचार श्री मनीष शर्मा ने बालभवन में आयोजित प्रोत्साहन समारोह में व्यक्त किये

अध्यक्षीय उदबोधन में श्री सुशील शुक्ला  (अध्यक्ष बाल भवन सलाहकार एवं सहयोगी समिति )   ने कहा कि- बालभवन जिस प्रकार से सृजनशीलता को प्रोत्साहित कर रहा है उससे बिनोवाजी द्वारा जबलपुर  को दिए  नामकरण  संस्कारधानी की सार्थकता प्रमाणित हो रही है. बच्चों में सृजन की प्रवृत्ति का पोषण बिरले लोग एवं संस्थान करते हैं. बालभवन अब मिशन मोड में कार्य कर रहा है तभी तो राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों ने महाकौशल का नाम रौशन किया है.

विशिष्ट अतिथियों क्रमश:  श्रीमती श्रद्धा शर्मापुनीत मारवाह सहायक संचालक एस.सिद्दीकी मुख्य निर्देशक आंगनवाड़ी ट्रेनिंग सेंटर , गीतकार  इरफान झांस्वी, नाट्य निर्देशक  संजय गर्ग, वरिष्ठ कला साधक अरूणकांत पाण्डेय आदि ने गुरुजनों को श्रेय देते हुए बच्चों एवं उनके अभिभावकों को बधाई दी .   कार्यक्रम का कुशल संचालन बाल विदुषी कु. उन्नति तिवारी ने किया जबकि कार्यक्रम की उपादेयता पर बाल वक्ता अरिंदम उपाध्याय ने प्रकाश डाला .  
राष्ट्रीय बालश्री एवार्ड हेतु 21 से 24 अप्रैल तक नई दिल्ली में आयोजित अंतिम चयन शिविर में जबलपुर से 8, अनूपपुर से 1, मंडला 2, नरसिंहपुर 1, सिंगरौली 1, सिवनी 2, कुल 15 बच्चे शामिल हुए थे  । प्रोत्साहन निधि  पाने वाले बच्चों में जबलपुर से कुमारी वैशाली बरसैंया (साहित्य संवाद), अंकित बेन  (संगीत तबला) देवांशी जैन  (साहित्य कहानी) बीनस खान (साहित्य आलेख), शिखा पटेल (कला हस्तकला ),  साक्षी साहू (संगीत गायन),  अंकुर विश्वकर्मा (कला मूर्तिकला), राजश्री चौधुरी (विज्ञानमॉडल), मंडला से क्रमशकु.  अजिता रूपेश  (साहित्य  संवाद ), कुसिमरन श्रीवास्तव (साहित्यकविता), सिवनी से क्रमशप्रतीक सनोडिया (साइंस मॉडल), ओसीना शर्मा (विज्ञान परियोजनाकार्य), अनूपपुर से राहुल कोल (संगीत गायन),  नरसिंहपुर  से कुसपना पटेल  (साहित्य गद्य)  सिंगरौली से मेराज अहमद ( विज्ञान मॉडल मेकिंग )  आदि शामिल हैं  जिन्हें रूपए 75 हज़ार की राशि की प्रोत्साहन राशि , मैडल्स, प्रमाणपत्र   प्रदान किए गए  .
कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती पूजन एवं अतिथि सत्कार से हुआ . इस अवसर पर बालकला साधकों द्वारा गीतकार इरफान झांस्वी रचित गीत  “हम बच्चे हिन्दुस्तान के हैं....!* की प्रस्तुति की गई . कार्यक्रम में संगीत गुरु डा. शिप्रा सुल्लेरे श्रीमती रेणु पांडे, सोमनाथ सोनी, देवेन्द्र यादव , नृत्य गुरु इंद्र पाण्डेय की विशेष भूमिका रही .
    
गिरीश बिल्लोरे

21.3.18

रेड फिल्म की दादी पुष्पा जोशी की जिंदादिली से चमका उनका सितारा ....!!


किसी ख़ास मुकाम पर पहुँचने के लिए कोई ख़ास उम्र, रंग-रूप, लिंग, जाति, धर्म, वर्ग का होना ज़रूरी नहीं जिसके सितारे को जब बुलंदी हासिल होनी होती है तब यकबयक हासिल हो ही जाती है. ये बात साबित होती है जबलपुर निवासी होसंगाबाद में सामान्य से परिवार जन्मी  85 वर्षीय बेटी श्रीमती पुष्पा जोशी के जीवन से . हुआ यूं कि उनके मुंबई निवासी पुत्र रवीन्द्र जोशी { जो कवि संगीतकार, एवं कहानीकार हैं, तथा हाल ही में बैंक से अधिकारी के पद से रिटायर्ड हुए हैं}  की कहानी ज़ायका से . श्री जोशी की कहानी “ज़ायका” उनकी पुत्र वधु हर्षिता श्रेयस जोशी, ने निर्देशित कर तैयार की जिसे  आभास-श्रेयस  यूँ ही यूट्यूब पर पोस्ट कर  दी. एक ही दिन में ३००० से अधिक दर्शकों तक  यूट्यूब के ज़रिये पंहुची फिल्म को बेहतर प्रतिसाद मिला. उसी दौरान फिल्म रेड की निर्माता कम्पनी के सदस्यों ने देखी . और जोशी परिवार को खोज कर रेड में अम्मा के किरदार के निर्वहन की पेशकश की . दादी यानी श्रीमती जोशी जो जबलपुर से मायानगरी  बैकबोन में दर्द का इलाज़ कराने पहुँची थी ने साफ़ साफ़ इनकार कर दिया. निर्माता राजकुमार गुप्ता एवं परिवार के समझाने पर बमुश्किल राजी हुईं . मुंबई से लखनऊ फिर लखनऊ से सडक मार्ग दो घंटे की दूरी पर स्थित रायबरेली जनपद में स्थित शिवगढ़ के किले तक का सफर कर 15 दिनों तक शूटिंग के दौरान श्रीमती जोशी की मृदुल मुस्कान बरबस टीम की ज़रूरत सी बन गई थी. कुछ दिनों में वे छोटे टीम सदस्यों से लेकर अजय देवांगन तक  की अम्मा जी बन गईं . अपनी सादगी और  सहज बर्ताव घर में भी ठीक ऐसा ही है. सामाजिक पारिवारिक कार्यों में पुष्पा जी की मौजूदगी और उनके चुटीले संवाद बरसों से सब को मुस्कुराने के लिए मज़बूर कर  देतें हैं.
उनकी एक पौत्री निष्ठा बताती है कि- हमारे मित्र मिलने हमसे आते हैं पर मिलते बतियाते दादी से हैं. युवाओं के साथ युवा बच्चों के साथ बच्चे की तरह ढलने वाली दादी नार्मदीय ब्राह्मण समाज से सम्बंधित हैं जहां उनको बेहद सम्मान दिया जाता है.
किटी पार्टी की शान हैं – नार्मदीय ब्राह्मण समाज की  महिलाओं की किटीपार्टी में उम्रदराज़ दादी की गैरमौजूदगी से इस समाज की बहूएँ परेशान हैं.. श्रीमती सुलभा बिल्लोरे बतातीं हैं कि पूरे उत्साह के साथ वे हमारे समागम में शामिल हुआ करतीं हैं. उनका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर, चुटीले अंदाज़ में जीवन के मूल्यों को समझाना उनकी एक और विशेषता है.
सत्यसाई सेवा समिति, जबलपुर की सक्रीय कार्यकर्ता के रूप में वे गुरुद्वारे में लंगर, वृद्धाश्रम कुष्ठाश्रम, एवं विक्टोरिया हॉस्पिटल में भेजने  के लिए खुद जब तक हिम्मत थी भोजन बना कर  भेजतीं रहीं.उनके हाथों बने लड्डू, नारायण-सेवा { भोजन वितरण जिसे  समिती की भाषा में नारायण-सेवा कहा  जाता है } की खासियत है.
श्रीमती जोशी के पति स्वर्गीय श्री बी आर जोशी (रिटायर्ड उप जिलाध्यक्ष ) का तबादला हर तीन चार साल में प्रदेश में कई स्थानों में हुआ करता था बच्चों के भविष्य को बनाने वे स्थाई रूप से 1971 से जबलपुर में ही रहीं.  उनकी सभी 06 संतानें कला साधक एवं उच्च शिक्षित एवं उच्च पदस्थ हैं.
इंटरनेट पर रोज़ प्रसारित होने वाले मूवी रिव्यू में हीरो अजय देवांगन इलिना , सौरभ शुक्ला , अमित की भूमिकाओं की सराहना के साथ 85 वर्षीय अम्मा जी को विशेष सराहा जा रहा है.

2.6.17

जबलपुर स्टेशन पहुँचे जय-वीरू...... : ज़हीर अंसारी

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जय और वीरू आज अचानक जबलपुर रेलवे स्टेशन पहुँच गए। दोनों को शायद राजधानी जाना था, कौन सी राजधानी की ट्रेन तत्काल मिलेगी, यह जानने के लिए वो सीधे प्लेटफ़ार्म नम्बर एक पर पहुँच गए। इनके पास कोई लगेज नहीं था, न ही साथ में कोई दो-पाया साथी। दोनों ने पहले इधर-उधर देखा फिर बेधड़क प्लेटफ़ार्म स्थित एकीकृत क्रू लॉबी में घुस गए। दोनों इतने हट्टे-कट्टे थे कि किसी की हिम्मत ही नहीं हुई उन्हें रोकने की। उलटे जो लोग लॉबी में काम कर रहे थे, उनमें कुछ डर के मारे बाहर भाग खड़े हुए।
जय और वीरू शान से अंदर गए, चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई। शायद जानना चाह रहे थी कौन सी ट्रेन राजधानी जाएगी। दोनों दो-तीन मिनिट वहीं खड़े रहे। भाषा प्रोब्लम होने की वजह से उनका किसी ने न तो अभिवादन किया, न किसी से उन्हें रिस्पांस दिया। वहाँ मौजूद कुछ कर्मचारी उनकी डील-डौल देखकर घबरा गए। ये दोनों मुस्तंडे 'खेलने दो वरना खेल बिगड़ेंगे' की तर्ज़ पर थोड़ी देर खड़े रहे, जब कोई रिस्पांस नहीं मिला तो उनमें एक ने गंदगी फैला दी।
आप सोच रहे होंगे कि यहाँ शोले फ़िल्म के जय और वीरू की बात हो रही है मगर ऐसा नहीं है। यहाँ दो हष्ट-पुस्ट बैलों की बात हो रही है। गुरुवार की रात नौ बजे दो तंदूरुस्त बैल प्लेटफ़ार्म नम्बर एक पर कहीं से घुस आए। ये किधर से आए, ये तो रहस्य है। आते ही दोनों पहले डाक आफिस में घुसने का प्रयास किया, वहाँ से हकाले गए तो बाज़ू वाली क्रू लॉबी में घुस गए। एक बैल ने अंदर खड़े-खड़े गोबर कर दिया। लगा कि उसे 'ज़ोर' से आई थी। लॉबी से ये दोनों बाहर निकले तो यात्री ऐसे तितर-बितर हुए जैसे आतंकवादी घुस आए हों। हालाँकि की बैलों की हरकतें कुछ इसी तरह की थी।
वहाँ से भगाए तो प्लेटफ़ार्म पर टहलने लगे। इसी प्लेटफ़ार्म पर मुंबई जाने वाली महानगरी आने वाली थी लिहाज़ा वहाँ मौजूद यात्रियों ने हिम्मत करके उन्हें भगाया तो ये दोनों बैल मस्त टहलते हुए सिग्नल की तरफ़ निकल गए।
बैलों की हरकतों से तो ऐसा महसूस हुआ कि जैसे इन्हें ट्रेन में बैठकर फ़ौरन दिल्ली जाना है और वहाँ जाकर पशुओं को लेकर बनाई जा रही नीति के सिलसिले में कोई ज्ञापन देना है।

3.11.14

कलेक्टर श्री रूपला ने मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार की राशि कैंसर ग्रस्त मरीजों की मदद के लिये दी

रीवा जिले में कृषि उत्पादन में वृद्धि के प्रयासों में मिली जबरदस्त कामयाबी के लिए कलेक्टर शिवनारायण रूपला को आज भोपाल के लाल परेड ग्राउण्ड पर आयोजित मध्यप्रदेश स्थापना दिवस के राज्य स्तरीय समारोह में मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार से नवाजा गया है । मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने इस समारोह में श्री रूपला को यह पुरस्कार प्रदान किया ।  पुरस्कार के रूप में उन्हें प्रशस्ति पत्र और पचास हजार रूपए की राशि का चेक प्रदान किया गया ।
                ज्ञात हो कि श्री रूपला ने रीवा जिले का कलेक्टर रहते हुए कृषि के क्षेत्र में कई ऐसे अनूठे प्रयोग किये थे जिनकी वजह से इस जिले के कृषि उत्पादन में महज तीन साल में साढ़े तीन गुना की वृद्धि दर्ज की गई । रीवा जिला जो खाद्यान्न की अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए दूसरे जिलों पर निर्भर रहा करता था वह महाराष्ट्र को भी गेहूं और चांवल की आपूर्ति करने लगा ।
                कृषि के क्षेत्र में रीवा जिले के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए श्री रूपला ने कृषि विभाग के अमले और कृषि वैज्ञानिकों को साथ लेकर अपने प्रयासों की शुरूआत वर्ष 2011-12 से की ।  उन्होंने पिछड़ेपन के कारणों का पता लगाने के लिए न केवल गांवों का सर्वे किया बल्कि खेत-खलिहानों तक पहुंचकर किसानों से सीधे संवाद कायम किया और उनकी समस्यायें जानी । श्री रूपला ने किसानों को कृषि की नवीनतम तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया और अच्छी किस्म के बीजों, उन्नत कृषि यंत्रों एवं संतुलित खाद का उपयोग करने की सलाह दी ।
                श्री रूपला ने अपने प्रयासों को केवल यहां पर ही विराम नहीं दिया । बल्कि उन्होंने गांव-गांव में कृषक संगोष्ठियों एवं कृषक प्रशिक्षण के कार्यक्रमों का आयोजन किया ।  उन्होंने रीवा जिले के कृषकों को मालवा जैसे उन क्षेत्रों के भ्रमण पर भी भेजा जो कृषि की दृष्टि से उन्नत माने जाते हैं । श्री रूपला ने रीवा जिले में सिंचाई के साधनों से विकास की कार्ययोजना तैयार की और उसका क्रियान्वयन भी किया । बड़ी संख्या में किसानों के क्रेडिट कार्ड बनवाये और उन्हें शासन की नीतियों के तहत कृषि ऋण उपलब्ध कराया । मिट्टी का परीक्षण कराकर मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनवाये और किसानों को बीज एवं उर्वरकों का संतुलित उपयोग करना सिखाया ।
श्री रूपला ने गांव-गांव में कृषकों की कार्यशाला कराई और किसानों को छिटकवा पद्धति की जगह कतार से बुआई करने, देर से नहीं समय पर बोनी करने, खेत को पड़ती नहीं रखने, गहरी जुताई करने, अंतरवर्ती फसल लेने, समय पर फसल की कटाई करने, बुआई के लिए रिज-फरो एवं एस.आर.आई. पद्धति अपनाने, मंूग उड़द की खेती खरीफ में नहीं करके जायद में करने, परंपरागत खेती की जगह खेती की वैज्ञानिक पद्धति अपनाने, जैविक खेती अपनाने, बीज उपचार करने एवं फसलों को रोग मुक्त रखने, वर्षा जल का संचय करने, नलकूप और नहरों के पानी को व्यर्थ न जाने देने, सूक्ष्म सिंचाई पद्धति को अपनाने और गेहूं एवं धान की फसल को उपार्जन केन्द्रों पर ही बेचने जैसे कई संकल्प दिलवाये ।
कलेक्टर के इन सब प्रयासों का परिणाम यह निकला कि रीवा जिले ने वर्ष 2010-11 की तुलना में वर्ष 2013-14 तक खरीफ फसलों में 313 और रबी फसलों के उत्पादन में 195 फीसदी की वृद्धि दर्ज की । कीमत के रूप में देखा जाये तो इस जिले का कृषि उत्पादन जो वर्ष 2010-11 में 676 करोड़ रूपये का हुआ करता था वह 330 फीसदी बढ़कर वर्ष 2013-14 में बढ़कर 2 हजार 231 करोड़ रूपये का हो गया ।  धान की उत्पादकता में 175 फीसदी और गेहूं की उत्पादकता में 122 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई । रीवा जिले में पहली बार 2012-13 से ग्रीष्मकालीन मूंग और मक्का की खेती प्रारंभ की गई ।

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कलेक्टर श्री  रूपला ने मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार की राशि  कैंसर ग्रस्त मरीजों की मदद के लिये दी 
                                                 कलेक्टर श्री शिवनारायण रूपला ने आज यहां मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार के रूप में उन्हें प्राप्तपूरी राशि कैंसर पीड़ितों के इलाज और देख-रेख के पुनीत कार्य के लिए समर्पित की। वे अपनी धर्मपत्नी एवं बेटी के साथ कैंसर पीड़ितों के इलाज के लिए ख्यात विराट हास्पिस पहुंचे थे । श्री रूपला ने ब्राहृर्षि मिशनसमिति द्वारा रामपुर तिराहा के समीप दीक्षित इन्क्लेव में संचालित विराट हास्पिस के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. अखिलेश गुमाश्ता को 27 हजार 727 रूपए की पुरस्कार राशि का चेक प्रदान किया। उल्लेखनीय है किगत 1 नवम्बर को राज्य स्तरीय मध्यप्रदेश स्थापना दिवस समारोह में मुख्यमंत्री ने कलेक्टर श्री रूपला को मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार प्रदान किया था ।


साध्वी ज्ञानेश्वरी दीदी द्वारा स्थापित इस चिकित्सा संस्थान में मुख्यत: ऐसे कैंसर पीड़ितों की चिकित्सा और देख-रेख की जाती है जो हर दृष्टि से निराश और निरूपाय हो जाते हैं। यहां मरीजों को भोजन  एवं रहवास की नि:शुल्क सुविधा मुहैया कराई जाती है । यही नहीं संस्थान द्वारा मरीजों को रेडियोथेरेपी एवं अन्य इलाज के लिए संस्थान के खर्च पर नाम-चीन चिकित्सालयों को भी भेजा जाता है । आठ बिस्तरों से आरंभ हुए इस संस्थान में बीते डेढ़ वर्षों में बिस्तरों की संख्या दोगुनी हो गई है । जाहिर है गंभीर रूप से कैंसर ग्रस्त मरीजों की मदद का जज्बा दूसरों के लिए भी प्रेरक बनता है । निश्चय ही कलेक्टर श्री रूपला द्वारा अपने जन्मदिन पर कैंसर पीड़ितों को राशि समर्पित करना समाज के अन्य संवेदनशील लोगों को भी प्रेरित करेगा ।

6.5.13

त्रिपुरी के कलचुरि : ललित शर्मा

त्रिपुर सुंदरी तेवर

सहोदर प्रदेश छत्तीसगढ़ के मशहूर घुमक्कड़ ब्लागर श्री ललित शर्मा ( जो पुरातात्विक विषयों पर ब्लाग लिखतें है) का संक्षिप्त ट्रेवलाग  बिना कांट छांट के प्रस्तुत है -जो उनके ब्लाग ललित शर्मा . काम  से लिया गया है-  गिरीश बिल्लोरे मुकुल   )
          आज का दिन भी पूरा ही था हमारे पास। रात 9 बजे रायपुर के लिए मेरी ट्रेन थी। मोहर्रम के दौरान हुए हुड़दंग के कारण कुछ थाना क्षेत्रों में कर्फ़्यू लगा दिया गया था। आज कहीं जाने का मन नहीं था। गिरीश दादा को फ़ोन लगाए तो पता चला कि वे मोर  डूबलिया कार्यक्रम में डूबे हुए हैं। ना नुकर करते 11 बज गए। आखिर त्रिपुर सुंदरी दर्शन के लिए हम निकल पड़े। शर्मा जी नेविगेटर और हम ड्रायवर। दोनो ही एक जैसे थे, रास्ता पूछते पाछते भेड़ाघाट रोड़ पकड़ लिए। त्रिपुर सुंदरी मंदिर से पहले तेवर गाँव आता है। यही गाँव जबलपुर के ब्लाग-लेखक श्री विजय तिवारी जी का जन्म स्थान एवं पुरखौती है। हमने त्रिपुर सुंदरी देवी के दर्शन किए और कुछ चित्र भी लिए। मंदिर के पुजारी दुबे जी ने बढिया स्वागत किया। 

तेवर का तालाब
ससम्मान देवी दर्शन के पश्चात हम तेवर गाँव पहुंचे। राजा हमे सड़क पर खड़ा तैयार मिला। तेवर गाँव में प्रवेश करते ही विशाल तालाब दिखाई देता है। कहते हैं कि यह तालाब 85 एकड़ में है। अभी इसमें सिंघाड़े की खेती हो रही हैं। तेवर पुरा सामग्री से भरपूर गांव है। जहाँ देखो वहीं मूर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं। कोई माई बाप नहीं है। खंडित प्रतिमाए तो सैकड़ों की संख्या में होगी। इससे मुझे लगा कि यह गाँव कोई प्राचीन नगर रहा होगा। तालाब के किनारे पर शिवालय दिखाई दे रहा था और एक चबुतरे पर शिवलिंग के साथ कुछ भग्न मूर्तियाँ भी रखी हुई थी। ग्राम के मध्य में एक स्थान पर खुले में उमा महेश्वर की प्रतिमा रखी हुई है, यहाँ कुछ लोग पूजा कर रहे थे। ढोल बाजे गाजे के साथ कुछ उत्सव जैसा ही दिखाई दिया।

तेवर की बावड़ी
इससे आगे चलने पर एक विशाल बावड़ी दिखाई देती हैं। इसके किनारे पर एक मंदिर बना हुआ है, इस मंदिर में एक शानदार पट्ट रखा हुआ है जिसमें बहुत सारी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इस मंदिर के ईर्द गिर्द सैकड़ों मूर्तियाँ लावारिस पड़ी हुई हैं जिनका कोई माई बाप नहीं है। इसके बाद राजा हमें एक घर में मूर्तियाँ दिखाने ले जाता है, वहां पर सिंह व्याल की लगभग 5 फ़िट ऊंची प्रतिमा है, जिसे रंग रोगन लगा दिया गया है और उसके साथ ही दर्पण में प्रतिबिंब देखते हुए श्रृंगाररत अप्सरा की सुंदर प्रतिमा भी दिखाई थी। पास ही चौराहे पर उमामहेश्वर की एक बड़ी भग्न प्रतिमा रखी हुई है। राजा यहाँ से हमें झरना दिखाने ले चलता है। 

झरने में गड्ढे
4-5 किलो मीटर कच्चे रास्ते पर जाने के बाद एक स्थान पर झरना दिखाई देता है। इस स्थान के आस-पास बड़े टीले हैं और टीलों के बीच के मैदान में गाँव के बच्चे क्रिकेट खेलते हैं। उम्मीद है कि इन टीलों में भी कोई न कोई मंदिर या भवन के अवशेष अवश्य ही दबे पड़े होगें। झरने का जल निर्मल है, हमने यहीं पर बैठ कर भोजन किया और झरने के निर्मल जल पीया। झरने की तलहटी में लगभग 1 फ़ीट त्रिज्या के कई गड्ढे बने हुए हैं और यहीं पर शिवलिंग भी विराजमान है। साथ ही एक दाढी वाले बाबा की मूर्ति भी रखी हुई है जिसे विश्वकर्मा जी बताया जा रहा है। अवश्य ही यह किसी राजपुरुष की प्रतिमा होगी। विजय तिवारी जी ने बताया था कि त्रिपुर सुंदरी मंदिर के रास्ते में खाई में महल के अवशेष भी दिखाई देते हैं। 
विशाल मंदिर का मंडप
हम महल के अवशेष देखने के लिए खाई पर पहुंचे, वहाँ सब्जी बोने वालों ने अतिक्रमण कर रखा है। कहते हैं कि सड़क निर्माण के दौरान यहाँ से बहुत सारी पुरासामग्री निकली है और मिट्टी के कटाव में बहुत सारे मृदा भांड के अवशेष हमें भी दिखाई दिए। झाड़ झंखाड़ के बीच हम खाई में उतरे और मंडप तक पहुंचे। यह किसी विशाल मंदिर का मंडप है। गर्भगृह के स्थान पर एक गड्ढा बना हुआ है, खजाने के खोजियों ने यहाँ पर भी अपना कमाल दिखा रखा है। इस गड्ढे को लोग सुरंग कहते हैं। बताया जाता है यहाँ से रास्ता महल तक जाता था। खाई में सैकड़ों की संख्या में बिल दिखाई दे रहे थे ऐसी अवस्था में अधिक देर हमने ठहरना मुनासिब न समझा। क्योंकि यह स्थान सांपों के लिए मुफ़ीद स्थान है। 
अप्सरा
अब तेवर के ऐतिहासिक महत्व की चर्चा करते हैं, पश्चिम दिशा में भेड़ाघाट रोड पर स्थित वर्तमान तेवर ही कल्चुरियों की राजधानी त्रिपुरी है जो कि शिशुपाल चेदि राज्य का वैभवशाली नगर था। इसी त्रिपुरी के त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करने के कारण ही भगवान शिव का नाम ‘त्रिपुरारि‘ पड़ा। यहाँ स्थित देवालयों एवं भग्नावशेषों से ही ज्ञात होता है कि कभी यह नगर वैभवशाली रहा होगा। तेवर की प्राचीनता हमें ईसा की पहली शताब्दी तक ले जाती है। तेवर जिसे हम त्रिपुरी कहते हैं यह चेदी एवं त्रिपुरी कलचुरियों की राजधानी रहा है।  गांगेय पुत्र कल्चुरी नरेश कर्णदेव एक प्रतापी शासक हुए,जिन्हें ‘इण्डियन नेपोलियन‘ कहा गया है। उनका साम्राज्य भारत के वृहद क्षेत्र में फैला हुआ था। सम्राट के रूप में दूसरी बार उनका राज्याभिषेक होने पर उनका कल्चुरी संवत प्रारंभ हुआ। कहा जाता है कि शताधिक राजा उनके शासनांतर्गत थे।
भग्नावशेषों का निरीक्षण करते हुए
जबलपुर के पास ही गढ़ा ग्राम पुरातन "गढ़ा मण्डलराज्य' के अवशेषों से पूर्ण है। गढ़ा-मण्डला गौड़ों का राज्य था गौड़ राजा कलचुरियों के बाद हुए हैं। जबलपुर के पास की कलचुरि वास्तुकला का विस्तृत वर्णन अलेक्ज़ेन्डर कनिंहाम ने अपनी रिपोर्ट (जिल्द ७) में किया है। प्रसिद्ध अन्वेषक राखालदास बैनर्जी ने भी  इस विषय पर एक अत्यन्तअंवेष्णापूर्ण ग्रंथ लिखा है। भेड़घाट और नंदचंद आदि गाँवो में भी अनेक कलापूर्ण स्मारक हैं। भेड़ाघाट में प्रसिद्द "चौंसठ योगिनी' का मंदिर। इसका आकार गोल है। इसमे ८१ मूर्तियों के रखने के लिए खंड बने हैं। यह १०वीं शताब्दी में बना है। मन्दिर के भीतर बीच में अल्हण मन्दिर है।
हमारा त्रिपुरी दर्शन पूर्णता की ओर था। राजा को गाँव में छोड़ कर हम जबलपुर वापस आ गए, मुख्यमार्ग में कर्फ़्यू लगे होने के कारण कई घुमावदार रास्तों से गुजरते हुए हम सिविल लाईन पहुंचे। यहाँ से स्टेशन थोड़ी ही दूर है, 9 बजे हमारी ट्रेन का टाईम था और अमरकंटक एक्सप्रेस हमारी रायपुर वापसी थी। नियत समय पर ट्रेन पहुंच गई और जबलपुर की यादें समेटे हुए चल पड़ा अपने गंतव्य की ओर नर्मदे हर नर्मदे हर का जयघोष करते हुए।

19.4.12

कलेक्टर गुलशन बामरा ने बिना शर्त माफी मांगी



जबलपुर, 18 अप्रैल, 2012
          पिछले दो दिन से समाचार पत्रों में 16 अप्रैल 2012 को गेहूँ खरीदी के संबंध में ली गई मीटिंग तथा उसके बाद मीडिया प्रतिनिधियों को दिये गये वक्तव्य के संबंध में कलेक्टर गुलशन बामरा ने अपने जिले के किसानों से बिना शर्त माफी मांगी है।
          इस संबंध में कलेक्टर ने कहा है कि मेरी याददाश्त और समझ के अनुसार मेरे द्वारा जिले के किसानों के संबंध में किसी प्रकार के अपशब्द नहीं कहे गये हैं। उन्होंने कहा है कि कतिपय गेहूँ खरीदी केन्द्रों में गेहूँ की गुणवत्ता ठीक नहीं होने की सूचना मिलने के उपरांत इस संबंध में मेरे द्वारा किसानों से अपील की गई थी किसमर्थन मूल्य पर खरीदा गया गेहूँ सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से आंगनवाड़ियों में बच्चोंगर्भवती माताओंस्कूलों में मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम तथा पीला एवं नीला राशन कार्ड के माध्यम से गरीबों कोसार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से वितरित किया जाता है। मेरे द्वारा यह भी कहा गया था कि कतिपय किसान  बिना गुणवत्ता का गेहूँ खरीदी केन्द्र पर लाकर किसानों की अन्नदाता की छबि खराब कर रहे हैं तथाआवश्यकता पड़ने पर ऐसे किसानों पर खाद्य अपमिश्रण अधिनियम के तहत कार्यवाही की जानी चाहिए।
          कलेक्टर ने कहा है मैं यह अनुरोध करना चाहूँगा कि मेरी मंशा किसानों के खिलाफ कार्यवाही करने की नहीं बल्कि गुणवत्ता युक्त गेहूँ केन्द्र पर लाने के संबंध में किसानों से अपील की थी। मेरे ऐसे वक्तव्य से किसानोंके आत्म सम्मान को ठेस लगीइसका मुझे खेद है।
          कलेक्टर ने जिले के किसानों की भावनाओंजनप्रतिनिधियों की भावनाओंसाथी अधिकारियों एवंकर्मचारियों की राय तथा मीडिया सार्थियों के सुझावों को ध्यान में रखते हुए मैं अपने वक्तव्य के लिये बिना शर्तमाफी मांगने के लिए प्रेरित हुआ हूँ  मेरे द्वारा प्रयोग किये गये शब्दों से संबंधितों को किसी प्रकार से ठेस लग सकती हैइस संबंध में मुझे संवेदनशील बनाने के लिए मैं समस्त किसानों , जनप्रतिनिधियोंसहयोगी अधिकारियों एवं कर्मचारियों तथा मीडिया साथियों का आभार मानता हूँ।

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