मित्रो मेरे ब्लॉग मिसफिट पर प्रकाशित "प्रभावी रहा पेडों को राखी बांधने में छिपा संदेश" शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट जो बालभवन में आयोजित पेड़ों को राखी बांधने के कार्यक्रम पर केन्द्रित थी को 65 हज़ार से अधिक पाठकों ने क्लिक किया. जिसका यू आर एल निम्नानुसार है http://sanskaardhani.blogspot.in/2017/08/blog-post_5.html इसके अलावा "भारत के राष्ट्रवाद को हिन्दू राष्ट्रवाद कहना चीन की सबसे बड़ी अन्यायपूर्ण अभिव्यक्ति" ( http://sanskaardhani.blogspot.in/2017/07/blog-post_26.html ) को 7791 पाठक मिले .
हिन्दी ब्लागिंग की शुरुआत मैनें 2007 से की थी . चिट्ठाकारी एक स्वांत: सुखाय रचना कर्म है फिर भी हमें सबसे रिलिवेंट एवं सामयिक विषयों पर लिखना होता है . मुझे इतनी सफलता घर बैठकर उत्तराखंड के खटीमा में हो रही ब्लागर्स मीट की लाइव वेबकास्टिंग के लिए मिली थी . परन्तु हिन्दी में टेक्स्ट ब्लागिंग को 5 अगस्त 17 को लिखने के 4 दिन बाद इतने पाठक मिलना मेरे लिए रोमांचक खबर है. लेखकों को समझना होगा कि इंटरनेट पर टैक्स्ट कन्टेंट की ज़रूरत है ताकि भाषानुवाद एवं भाषा के विकास को पर्याप्त वैश्विक स्तर पर अवसर सुलभ हैं. साथ ही इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि हिन्दी भाषा अब केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं रह गई है उसे तकनीकी के इस वैश्विक स्वरुप की आवश्यकता भी है.
हिन्दी के मशहूर ब्लागर श्री रविशंकर श्रीवास्तव जिनको हम रविरतलामी के नाम से जानते हैं गूगल की विज्ञापन नीति से से उत्साहित हैं । उनका मानना है कि भविष्य में ब्लागिंग रोजगार का जरिया हो सकती है । इस सिलसिले में उनसे हुई बातचीत का पॉडकास्ट सुनिए .....
दो तीन दिन के लिए कल से प्रवास पर हूँ अत: ब्लागिंग बंद क्या पूछा न भाई टंकी पे नहीं चढा न ही ऐसा कोई इरादा अब बनाता बस यात्रा से लौटने तक . न पोस्ट पढ़ पाउंगा टिपिया ना भी मुश्किल है. सो आप सब मुझे क्षमा करना जी . निकला तो कल था घर से किंतु एक अपसगुन हो गया. सच्ची एक अफसर का फून आया बोला :-"फलां केस में कल सुनवाई है आपका होना ज़रूरी है. कल निकल जाना ! सो सोचा ठीक है. पत्नी ने नौकरी को सौतन बोला और हम दौनों वापस . सुबह अलबेला जी का फून आया खुशी हुई जानकर कि उनसे जबलपुर स्टेशन पे मुलाक़ात हो जाएगी. किंतु अदालत तो अदालत है. हमारे केस की बारी आई तब तक उनकी ट्रेन निकल चुकी थी यानी कुल मिला कर इंसान जो सोकाता है उसके अनुरूप सदा हो संभव नहीं विपरीत भी होता है. श्रीमती जी को समझाया. वे मान गईं . उनकी समझ में आ गया. आज ट्रेन से हरदा के लिए रवानगी डालने से पेश्तर मन में आया एक पोस्ट लिखूं सो भैया लिख दी अच्छी लगे तो जय राम जी की अच्छी न लगे तो राधे राधे
तो "ब्लॉगर बाबू बता रए हैं कि "Image uploads will be disabled for two hours due to maintenance at 5:00PM PDT Wednesday, Oct. 20th" सो आप सब ने देख ही लिया होगा.
आज
तुम मैं हम सब जीत लें
अपने अस्तित्व पर भारी
अहंकार को
जो कर देता है
किसी भी दिन को कभी भी
घोषित "काला-दिन"
हाँ वही अहंकार
आज के दिन को
फिर कलुषित न कर दे कहीं ?
आज छोटे बड़े अपने पराये
किसी को भी
किसी के भी
दिल को तोड़ने की सख्त मनाही है
कसम बुल्ले शाह की
जिसकी आवाज़ आज भी गूंजती
हमारे दिलो दिमाग में
सर, और सर के चम्मच जो सर के खाने के सहायक उपकरण होते हैं को मेरा हार्दिक सलाम मैं….. आपका दास जो आपको नहीं डालता घास,इसलिएक्योंकि आप कोई गधे थोड़े हैं॥ आप आप हैं मैं आपका दास इतना दु:साहस कैसेकरूँ हज़ूर । आप और आपका ब्रह्म आप जानिए मेरा तो एक ही सीधा सीधा एक हीकाम है.आपकी पोल खोलना . आपकीमक्कारियों की पाठशाला में आपको ये सिखाया होगा कि किस तरह लोगों को मूर्खबनाया जाता है..किन्तु मेरी पाठशाला में आप जैसों को दिगंबर करने का पाठबडे सलीके से पढाया गया मैंनें भी उस पाठ को तमीज से ही पढा है.तरकशका तीर कलम का शब्द सटीक हों तो सीने में ही उतरते हैं सीधे ॥ तो सर आपअपने स्पून सम्हाल के रखिये शायद ये आपके बुरे वक़्त में काम आ जाएँ ।परंतु ऐसा कतई नहीं . होगा सर आप अपने सर से मुगालता उतार दीजिए । कि कोईचम्मच खाने के अलावा कभी और उपयोग में लाया जा सकता है॥
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एक ऑफिस में बॉस नाम की चीज़ भेजी जाती है…..लोग समझते हैं कि बॉस ऑफिस चलाताहै। यहाँ आपको बता दूं - ऑफिस तो चपरासी जिसका नाम राजू आदि हों सकता है… वोही तो ऑफिस खोलता सुबह समय पर तिरंगा चढाता है। शाम उसे निकालता है … आवेदन लेता है साहब को बाबू के हस्ते आवेदन देता है । आवेदक को काम केरस्ते बताता है…! बेकार फ़ाइल जिससे कुछ उपजने की उम्मीद ना हों ऎसीनामुराद नास्तियों को बस्ते में सुलाता है।अब भैया ! आप हीबताओ न ! ऑफिस कौन चलाता है….?
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आप को इस बात को समझाता हूँ -”सरकार में लोग बाग़ काम करतें हैं काम होना तो कोई महत्वपूर्ण बात है हीनहीं महत्त्व तो काम नहीं हों तब दीखता है “अबदेखिए न….. दफ्तर में बाबूलाल की अर्जी के खो जाने का ठीकरा मैने जांच केबाद राजू भृत्य के सर फोड़ दिया बाबूलाल भी खुश हम भी खुश ।जिम्मेदारीतय करने जब लोग निकले हजूर पाया गया छोटी नस्ल के कर्मचारी दोषी हैं ।भैया दोषी वोही होता है जो सबसे ज्यादा ज़िम्मेदार हों जैसे मेरा चपरासीराजू …!भैया ! देखा सबसे छोटा सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार है ” देश में “बाकी आप खुद समझ दार हैं ……आगे क्या लिखूं …. आप समझ गए न ।
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तो भाई इस लम्बी कहानी में मैं हूँ,आपहैं हम सभी तो हैं… चालू रहेगा ये उपन्यास जो राग दरबारी वाले आई.ए.एस.कीतर्ज़ पर तो नही पर उनसे प्रभावित ज़रूर होगा अगर ये आपकी आत्म कथा है तोआन लाईन कमेन्ट दे देना शायद मेरे काम आ जायेगी
आपकी बात……ऊपर जो लिखा सो लिखा उसे भूल जाना वो तो यूँ ही लिख दियाकहानी शुरू होती हैअब सो सुन भाई साधौ ….टूटे फूटे घर में रहने वाला राजूचपरासी घर से परेशान होता तो भगवान् से अपने घर को सर्किट हाउस साबनाने की नामुरादअपील करता !
अपील तो सब करतें हैं सबकी अपील अलाऊ हो ये कैसे संभव है .सर्किट हाउस जब अच्छे-अच्छों को को लुभा सकता है तो वो राजू को क्यों नहीं लुभासकता . आपको याद होगा अब्राहम लिंकन को सफ़ेद-घर पसंद आया वो अमेरिका केसदर बने थे न.? यदि वे सपना देख सकते हैं तो अपने राजू ने देखा तो क्याबुरा किया।
आजकल मेरे शहर के कई लोग मुझसे पूछ रहें हैं “भाई, क्या नया कुछ लिखा “जींख़ूब लिख रहा हूँ …!क्या ..गद्य या गीत …?अपुन को उपर से नीचे सरकारी अफसर हुआ देख उनके हरी लालकाली सारी मिर्चियां लग गईँ … कल्लू भैया हमसे पूछ बैठे:-” क्या चल रहा है ?”
हमारे मुँह से निकल पड़ा जो दिल में था , हमने कहा-”भाई,आजकल हमारी बास से खट पट चल रही है…वो शो- काज लिख रहे हैं और अपन उसका ज़बाव !”
ये तो आप राज काज की बात कर रहे हो… मैं तोआपकी साहित्य-साधना के बारे मैं पूछ रहा .?
मैंनें कहा - “भाई,साहित्य औरजीवन के अंतर्संबंधों को पहचानों “लोग बाग़ मेरी बात में कुंठा को भांपतेकन्नी काटते । हमने भी लोगों के मन की परखनली में स्प्रिट लैंप की मदद सेउबलते रसायन को परखा , अब जो हमको साहित्य के नाम पे चाटता तो अपन झट रागसरकारी गाने लगते , जो सरकारी बात करता उसको हम साहित्यिक-वार्ता में घसीट लेते.
कोई अपने दर्द के अटैची लेकर आता मेरे पास तो मैं अपनी मैली-कुचैली पोटली खोलने की कोशिश करता !इससे - वो लोग मेरे पास से निकल जाते कुछतो समझने लगे जैसे मैं बदबू दार हूँ…!”और अपन बेमतलब के तनाव से दूर..!!
हजूर ! रजनीश और गिरीश दौनों ही एक ही शहर के पर्यावरण से सम्बंधित हैं…अब देखिए ! सामर्थ्यकी चाबी को लेकर ओशो दिमागी तौर पर लगभग बेहद उत्साहित हो जाते थे । अपने राम भी ऐसे लोगों को जो "सामर्थ्यकी चाबी " लेकर पैदा हुए मामू बना देते हैं , जेइच्च धंधा है अपुन का….!
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ओशो से अपना गहरा नाता रहा है वो वक्ता थे अपन भी वक्ता है डेरों प्रमाण हैं इसके खूब शील्डैं जीतीं थीं हमने उषा त्रिपाठी के संग डी एन जैन कालेज के लिए भैया धूम थी अपनी उनदिनों ओशो के लगभग 25 साल बाद .जब हम अपने वज़न से भारी रजत वैजयंती लेकर आए ....प्राचार्य .प्रोफेसर .विनोद अधौलिया जी रो पड़े थे पिता स्व.भगवत शरण जी को याद करके .जी उस दौर में मेरी तरक्की सदाचार के लिए मेरेगुरुदेवों ने आशीर्वाद दिए थे. माँ-बाबूजी भी मुझे लेकर चिंतनरत होते .
सब कुछ बड़ों के आशीर्वाद से ही घटा है जीवन में . अफसरी मिली भले छोटी नस्ल के बड़ी भी मिलतीतो क्या वही सब कुछ करता जो आज कर रहा हूँ.
साँसजोलीजातीहै चाहेअनचाहे जीनेकेलिऐ जी हाँ इन्हीं साँसों के साथ अंतस मे मिल जाती है विषैली हवाओं में पल रहे विषाणु उगा देते हैं शरीर में रोग इसे विकास कहते हैं जो जितना करीब है पर्यावरण से उतना सुरक्षित है कम-अस-कम बीमार देह लेकर नहीं मरता पूरी उम्र मिलती है उसे मान के सीने से चिपका बंदरिया का बेटा कल मैंने उसे चूसते देखा है "मुनगे की फली " बेटी ने कहा :-"पापा,आज पिज्जा खाना है...!" मैंने कहा :-"ज़रूर पर बताओ बन्दर का बेटा, क्या खा रहा है ? " झट जबाब मिला:-"मुनगा " आप को पसंद नहीं है॥? न तो आपने मुझे चश्मा लगाए देखा है न ? हाँ,पापा देखा है.....!पर ये सवाल क्यों..........? मेरे अगले सवाल पे हंस पडी बिटिया ''बन्दर,को कभी चश्मा लगाऐ देखा बेटे...?'' पापा.ये कैसा सवाल है बेटे,जो प्रकृति के जितना पास है उतना ही सुरक्षित है । इसका अर्थ बिटिया कब समझेगी इस सच से बेखबर चल पङता हूँ , बाज़ार से पिज्जा लेने [ कविता:मुकुल/चित्र:प्रीती]
अमिय पात्र सब भरे भरे से ,नागों को पहरेदारी
गली गली को छान रहें हैं ,देखो विष के व्यापारी,
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मुखर-वक्तता,प्रखर ओज ले भरमाने कल आएँगे
मेरे तेरे सबके मन में , झूठी आस जगाएंगे
फ़िर सत्ता के मद में ये ही,बन जाएंगे अभिसारी
..................................देखो विष के व्यापारी,
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कैसे कह दूँ प्रिया मैं ,कब-तक लौटूंगा अब शाम ढले
बम से अटी हुई हैं सड़कें,फैला है विष गले-गले.
बस गहरा चिंतन प्रिय करना,खबरें हुईं हैं अंगारी
..................................देखो विष के व्यापारी,
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लिप्सा मानस में सबके देखो अपने हिस्से पाने की
देखो उसने जिद्द पकड़ ली अपनी ही धुन गाने की,
पार्थ विकल है युद्ध अटल है छोड़ रूप अब श्रृंगारी
..................................देखो विष के व्यापारी,
आप के दिमाग में हिन्दी के लिए जो ज़हर भरा है उसके लिए हम आपको साफ़ तौर पर बता देना उचित समझतें हैं कि-"भारत-माता की छवि आप जैसे महानुभावों की वज़ह से विश्व में कितनी ख़राब हो रही है उसका अंदाज़ आपको नहीं है "भारत की महान धरती पर आप जैसों की नकारात्मक विचार धारा कितने दु:खद पलों को जन्म दे रही है इसका अंदाज़ आपको नहीं हैं राज जी मराठी मानस और शेष भारत के मानस में आप कोई फर्क कैसे कर सकतें हैं ? यह हक आपको किस ने दिया ये आम भारतीय सोच रहा है.साफ़ तौर पर आप को समझना ज़रूरी है कि भारत की अखण्डता पे किसी की भी उद्दंडता का दीर्घ प्रभाव नहीं होता,सम्पूर्ण सकारात्मकता की पुख्ता बुनियाद पर बनी "भारतीयता" किसी भी एक भाषा,जाति,रंग,वर्ण,से सदा ही अप्रभावित रहती है ,
आप जिस देश में रहतें हैं वो भारत है जो शिवाजी का देश है जो लक्ष्मी बाई ,दुर्गावती,तुलसी,कबीर,मीरा का देश है यहाँ का गांधी,आज भी विश्व को एक चिंतन देता है, यहाँ का दीनदयाल आज भी अन्त्योदय का माइल-स्टोन बन गया,यहाँ गालिब,दादू,ज्ञानेश्वर,नानक जैसों ने बिना ख़बर रटाऊ चैनल'स के सामने आए गाँव गाँव तक अंगूठा छाप किसान,मजूरों के दिल में ज़गह बना ली .............ये भारत ऐसे सकारात्मक ऊर्जा वानों का भारत है न कि किसी एक प्रदेश,यथा तमिलनाडु, महाराष्ट्र,बिहार,गुजरात,उत्तरांचल,आदि ,प्रदेशों का ..............मित्र मेरा भारत आपकी भाषाई राजनीति का शिकार हो यह कोई भी कब तक और कैसे सहेगा . आपको ईश्वर साद-बुद्धि दे , आप हिन्दी भाषियों से जितना विद्वेष रूपी ज़हर रखना चाहें रखें भारतीय औदार्य आपको एक सीमा तक क्षमा करेगा वरना इस देश के संविधान में सारी व्यवस्थाएं हैं , जिसने आप को अपनी वाणी से विचार व्यक्त करने की अनुमति दी है न कि ज़हर उगलने की, फ़िर आप तो महाराष्ट्र के विद्वान वक्ता हैं ये जानते ही होंगें कि ज़हर किस प्राणी की किस ग्रंथि में संचित रहता है . और कब तक "हाँ,तब तक संचित रहता है जब तक किसी यायावर सपेरे की नज़र उस जीव पर नहीं जाती "
जो जिया वो प्रीत थी ,अनजिया वो रीत है शब्द भरम को तोड़ दे ,वोही तो मेरा गीत है ###################### प्रीत के प्रतीक पुष्प -माल मन है गूंथता भ्रमर बागवान से -"कहाँ है पुष्प ?" पूछता ! तितलियाँ थीं खोजतीं पराग कण पुष्प वेणी पे सजा उसी ही क्षण ,! कहो ये क्या प्रीत है या तितलियों पे जीत है…….? शब्द भरम को तोड़ दे ,वोही तो मेरा गीत है ! ###################### सुबह,-"सुबह" उदास सी,उठी विकल पलाश सी चुभ रही थी वो सुबह,ओस हीन घास सी हाँ उस सुबह की रात का पथ भ्रमित सा मीत है शब्द भरम को तोड़ दे ,वोही तो मेरा गीत है ! ###################### तभी तो हम हैं हम ज़बाँ को रात में तलाशते
मिल गए तो खुश हुए,मिले न तो उदास से
यही तो जग की रीत है हारने में जीत है
शब्द भरम को तोड़ दे ,वोही तो मेरा गीत है ! ######################